अहं ब्रह्मास्मि

October 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री हरिश्चन्द्र जी मीतल, कुँजरोद)

एक ब्राह्मण शिवजी को ब्रह्म मानकर मन्दिर में उनकी मूर्ति को पूजने नित्य जाया करता था, एक दिन वह पूजा कर रहा था कि एक चूहा निकला और मूर्ति पर चढ़ कर पूजा की सामग्री खाने लगा। ब्राह्मण ने सोचा, यह चूहा शिवजी से बड़ा है, इसलिए मुझे इसी को ब्रह्म मानना चाहिए। दूसरे दिन से वह चूहे की पूजा करने लगा। एक दिन उस चूहे को एक बिल्ली पकड़ कर खा गई, अब वह ब्राह्मण उन बिल्ली को ही ब्रह्म समझ कर पूजने लगा। कुछ दिन बाद एक मोटा ताजा कुत्ता दृष्टि बचा कर उस बिल्ली पर चढ़ दौड़ा और कई जगह से उसका माँस नोच ले गया। तब तो देवता जी को यह मानने के लिए विवश होना पड़ा कि कुत्ता बड़ा ब्रह्म है। अब तो कुत्ते का पूजन-अर्चन होने लगा।

नित्य के मधुर मिष्ठान्न मिलने से कूकर ब्रह्म की दाढ़ लापक गई और वे मौका पाकर भोजनालय के भीतर भी धावा बोलने लगे। इन हरकतों से ब्राह्मणी बुरी तरह चिड़ी हुई थी, एक दिन उसने मोटा डंडा लेकर कुत्ते की अच्छी तरह मरम्मत कर डाली। ब्राह्मण देवता कोठरी में बैठे यह दृश्य देख रहे थे, उनकी दार्शनिक बुद्धि ने यह निष्कर्ष निकाला कि कुत्ते से बलवान मेरी स्त्री है, इसलिए अब से वही ब्रह्म समझी जानी चाहिए। दूसरे दिन से देवी जी पर अक्षर, पुष्प चढ़ने लगे। ब्राह्मणी को सन्तोष हुआ कि चलो इसी बहाने अब यह घर तो रहा करेंगे। उसने आज्ञा दी कि-”देखिए देवताजी, मैं ब्रह्म हूँ, ब्रह्म की आज्ञा पालन करना आपका कर्तव्य है। देखिये, घर में कुत्ते, बिल्ली बहुत आने लगे हैं, आप इन्हें घर में न घुसने दिया करे, यह आदेश मैं आपको करती हूँ।”

ब्रह्मा की आज्ञा को न मानना पाप है। स्त्री की आज्ञानुसार ब्राह्मण देवता बड़ी सावधानी से बिल्ली और कुत्तों की रखवाली करने लगे। एक दिन एक कुत्ता किसी प्रकार घर में घुस आया। ब्राह्मण को जब पता चला, तो उन्होंने पास पड़ी हुई ईंट कुत्ते के खींच कर मारी। संयोगवश ईंट कुत्ते को तो लगी नहीं पास बैठी हुई उनकी स्त्री के सिर में लगी। माथा फूट गया, खून की धार बहने लगी।

ब्राह्मण को स्त्री की चोट का तो कुछ रंज न हुआ, पर ब्रह्म निरूपण करने लगे। मेरे द्वारा स्त्री का भी सिर फूट सकता है, इसलिए उससे तो मैं ही बड़ा हूँ। अब मैं अपने को ही ब्रह्म समझा करूंगा। दूसरे दिन से वे चारों ओर यही घोषणा करते फिरने लगे-’अहं ब्रह्मास्मि, अहं ब्रह्मास्मि, मैं ब्रह्म हूँ, मैं ब्रह्म हूँ।

अदृश्य विवेचन लेख माला-


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: