(ऋषि तिरुवल्लुवर)
आदमी मर जाता है, उसके साज सामान महल, तिवारे टूट फूट जाते हैं, परन्तु कीर्ति ऐसी वस्तु हैं जो युगों तक जीवित रहती है। जिसने सर्वस्व देकर यश कमाया उसने बहुत अच्छा व्यापार किया। बरसाती फूँस को बेचकर एक पक्का कोठा खरीद लेना बुद्धिमानी है। वे महान आत्मा हैं, जो अपना जीवन उज्ज्वल कीर्ति कमाने में लगाते हैं, उन अभागों के पैदा होने से क्या लाभ जो जीवन भर पेट भरते रहे और अन्त में कुत्तों की मौत मर गये। आदमी की सबसे बड़ी असफलता और बेइज्जती यह है कि वह अपने पीछे ऐसी कोई बात न छोड़ जाय, जिसके लिए लोग उसकी सराहना करे और बार बार स्मरण करें। वे जीवित रहेंगे जो पवित्र जीवन बिताते हैं और उज्ज्वल कीर्ति का सम्पादन करते हैं, जिन्हें अपने भविष्य की चिन्ता नहीं और स्मार्क का परिधि से आगे कुछ नहीं देख सकते, वे मुर्दे हैं, भले ही वे साँस लेते हों या खाते पीते और चलते-फिरते दिखाई देते हों। मूर्ख लोग धन जमा करके रख जाते हैं, ताकि पीछे वाले चन्द लोग खाएं और खुश रहें। कितना अच्छा होता, यदि वह अपने सामने ही सत्कार्यों में उसे लगाता, ताकि वह श्रेष्ठ भूमि में उगता और अपनी छाया में असंख्य प्राणियों को शाँति देता।
बेवकूफ उसे कहते हैं, जो फायदे की चीज को फेंक देता है और हानि करने वाली वस्तुओं को अपनाता है। जो कड़ुई और अनर्गल बातें अपनी जिह्वा से बकते हैं, उन्हें बेवकूफ के अलावा और और क्या कहा जाय? कोई आदमी कितना ही पढ़ा-लिखा और चतुर क्यों न हों, पर यदि वह भलाई को छोड़कर बुराई अपनाता है, तो उसे पहले सिरे का मूर्ख समझना चाहिए।
वर्णाश्रम धर्म लेखमाला-