तुम इस बात की चिन्ता न करो, कि तुम्हारे विषय में कोई दूसरा व्यक्ति क्या कहता है। तुम्हें इस बात में ध्यान देने की आवश्यकता है कि तुम्हारे विषय में तुम्हारी ही क्या सलाह है। हर एक मनुष्य खुद ही उचित और अनुचित निर्णय कर लेता है।
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विषयी ही बन्धन में है और त्यागी ही मुक्त है। आलस्य ही घोर नरक है। तृष्णा को त्याग देना ही स्वर्ग है।