ईश्वर प्राप्ति का उपाय

April 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक चोर एक बड़े महात्मा के पास नित्य जाता और उनसे बड़ी प्रार्थना करता कि कोई ऐसा उपाय बता दीजिए, जिससे मैं माया-बन्धन से छूटकर स्वर्ग का अधिकारी हो जाऊँ और परमात्मा के दर्शन कर लूँ।

महात्मा जी बहुत दिन तो टालते रहे पर एक दिन जब चोर बहुत आग्रह करने लगा, तो महात्मा जी ने उसकी प्रार्थना मंजूर कर ली और कहा-कल आना, मैं सामने वाली पहाड़ी की चोटी पर ले जा कर एकान्त में तुझे ईश्वर प्राप्त करने का सारा रहस्य समझा दूँगा।

दूसरे दिन सवेरे ही चोर बहुत खुश होता हुआ आ गया। महात्मा जी ने तीन भारी-भारी पत्थर उसके ऊपर रख दिये और कहा-मेरे पीछे-पीछे चले आओ। पत्थर बहुत भारी थे, पहाड़ी की चढ़ाई बड़ी कठिन थी, कुछ दूर चलकर चोर हाँफने लगा। उसने कहा- भगवन्, यह बोझा तो बहुत भारी है, इसे लेकर मैं आगे नहीं चल सकता। महात्मा ने कहा—अच्छा तो एक पत्थर फेंक दो और मेरे पीछे चले आओ। एक पत्थर फेंकने पर कुछ बोझा हलका हुआ और वह चलने लगा। लेकिन दो पत्थर ही क्या कम थे। दो चार फर्लांग चलकर उसके पाँव काँपने लगे, गरदन टूटने लगी। वह चिल्लाया- महाराज! यह बोझा तो मुझे मारे डालता है। साधु ने उससे एक और पत्थर फिंकवा दिया। अब कुछ सरलता हुई और चोर धीरे-धीरे चलने लगा। अभी पहाड़ी की आधी चढ़ाई ही पूरी हो पाई थी कि चोर पसीने में लथपथ हो गया, उसका दम फूल गया और थकान के मारे आगे बढ़ना कठिन हो गया। वह दुखी होकर महात्मा जी से कहने लगा—अब आगे चलना मेरे बस की बात नहीं, यह पत्थर भी तो बहुत भारी है। मैं तो थक कर चूर-चूर हो गया हूँ। शरीर में एक कदम भी आगे चलने की शक्ति नहीं। महात्मा जी ने तीसरा पत्थर भी उससे फिंकवा दिया।

तीनों पत्थरों को फेंक कर चोर हलका हो गया और साधु के साथ आनन्दपूर्वक चला गया। पहाड़ी के शिखर पर जब वे पहुँच गये, तो महात्मा जी ने पेड़ की छाया में आसन बिछाया और कहा- बेटा! मैंने तुझे ईश्वर प्राप्त करने का सारा रहस्य समझा दिया। अपने सिर पर अन्याय, स्वार्थ और असत्य के भारी-भारी पत्थर लादकर इस ऊँची चोटी पर परमपद के महान शिखर पर पहुँचने की इच्छा करने वालों के लिए आवश्यक है कि वे इन तीनों भारी पत्थरों को फेंक दें, तभी ईश्वर का दर्शन हो सकता है।

चोर समझ गया कि बुरे आचरण रखकर झूठ-मूठ पूजा-उपासना का आडम्बर रखने से मुक्ति नहीं मिल सकती। अपने को सदाचारी बनाने में ही सारी योग-साधना छिपी हुई है। चोर ने उसी दिन से बुरे कर्म करना छोड़ दिया और सत् कर्म करने लगा।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118