बलवान बनने के लिए

April 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

“बहुमूल्य भोजन से विशेष बल” यह एक बड़ी ही गलत धारणा है। मक्खन और मलाई आप को कितना बलवान् बना सकती हैं, यह बताना कठिन है। हो सकता है कि खीर, पुआ खाकर आपकी देह मोटी हो जाए और पेट पर चर्बी झूलने लगे; परन्तु क्या यह मोटापा आप को बलवान् बना सकता है? इस प्रकार दण्ड, बैठक करने वाले और कुश्ती लड़ने वाले को हम बलवान नहीं कह सकते।

शक्ति का मूल स्रोत हमारे सूक्ष्म जीवन में छिपा हुआ है। ईश्वरपरायण, निष्कपट हृदय वाला एवं पवित्र आचरण करने वाला मनुष्य ही वास्तव में बलवान कहा जा सकता है। सच्चा मनुष्य सिंह की तरह विपत्तियों के पर्वत पर निर्भीकतापूर्वक चढ़ता चला जाता है और विरोध एवं कठिनाइयों की प्रचंड धारा को काटता हुआ मछली की तरह अपने इच्छित मार्ग पर कदम बढ़ाता है, क्या ऐसा करना पापी हृदय वालों के लिए संभव है? सुख के लिए वे पपीहे की तरह प्यास की रट लगाते फिरते हैं और दुखों की छाया देखते ही घिग्घी बाँध कर रोते-चिल्लाते हैं।

आपको यदि जौ का सत्तू मिलता हो, तो खुशी, खुशी खाइए। हम कहत हैं कि वह षट्रस व्यंजनों के बहुमूल्य थाल की अपेक्षा आपको अधिक बल प्रदान करेगा। धर्म पूर्वक से कमाई हुई रोटी आरोग्य एवं आयुष्य की वृद्धि करती है, किन्तु अधर्म का पैसा पारे की तरह फूट-2 कर बाहर निकलता है, वह बुरे स्थान से आया था। इसलिए वेश्यालय, मद्यालय, धूतग्रह, डॉक्टर की दुकान, वकील की जेब, चोर की थैली या राज दंड उगाहने वाले के पास चला जाता है, देह को पीड़ा और मन को पश्चाताप यही वस्तुएं पीछे के लिए अपनी निशानी छोड़ जाता हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles