लोबेल फिल्मोर
“आज की दुनिया में जब मनुष्य और राष्ट्र अपनी क्षुद्र सीमाओं में घुट रहा है, तुच्छातितुच्छ स्वार्थ को लेकर पशुता को लज्जित कर रहा है और संहार पर तुला हुआ है। इस बात की और भी आवश्यकता है कि हम अपने भीतर दैवी विभूतियों का दान-दम अभय का विकास करें और इस प्रकार विश्व-कल्याण में अपना सच्चा हार्दिक योग प्रदान करें। भयत्रस्त, आपद् ग्रस्त मानवता की वास्तविक मुक्ति का एक-मात्र यही मार्ग है। हममें से कुछ के भीतर भी यदि इन दैवी गुणों का सही-2 विकास हो सका तो संसार की काया पलट जाएगी। अभाव और कष्टों से घिरी मानवता एक बार खुली हवा में सुख की साँस लेगी। सद्धर्म की एक धारा हवा में सुख की साँस लेगी। सद्धर्म की एक धारा सी छूट पड़ेगी और उसमें हमारे भीतर जो कुछ भी खोटापन होगा, संकीर्णता होगी, सब बह जाएगी और संसार के परदे पर जो आज गर्दा जम गया है, वह सब एक झटके में झड़ जाएगा। इस प्रकार आत्माहुति के साधनों की संख्या ज्यों-ज्यों बढ़ेगी, त्यों-त्यों संसार से युद्ध का नामोनिशाँ मिट जाएगा, दुःख, अवसाद, अन्याय, उत्पीड़न, पूँजीवादियों के अत्याचार, सब के सब सदा के लिये मिट जायेंगे और फिर जेल और पागलखाने की जरूरत भी न रहेगी। परन्तु इस उच्च आदर्श की प्राप्ति तब तक हो ही कैसे सकती है, जब तक हम में से एक-एक अपने आपको और अपने सर्वस्व को भगवत्कार्य और भगवत्संकल्प को सिद्ध करने में होम न कर दे। समाज में परिवार में एक व्यक्ति जहाँ इस शुभ योजना में लग जाएगा वहाँ संक्रामक की तरह वह चीज़ आस-पास के व्यक्तियों और वातावरण को प्रभावित किये बिना न रहेगी। इसलिये समय और सुयोग की प्रतीक्षा न कर हमें इस पवित्र अनुष्ठान में अविलम्ब लग जाना चाहिये, इसी में हमारा और विश्व का वास्तविक कल्याण है।”