‘सत्’ के अनादि त्रिभद

April 1942

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सत्य धर्म का प्रचार करने के लिये अखण्ड-ज्योति की ओर से जो सतयुग आन्दोलन आरम्भ किया गया है, वह कोई नवीन पथ नहीं है। सृष्टि का निर्माण जिन तत्वों के आधार पर हुआ है और जिनके द्वारा निखिल विश्व ब्रह्माण्ड की समस्त क्रियायें हो रही हैं, उन्हीं को नवीन व्यवस्था के साथ उपस्थित किया गया है। वर्तमान पाप-तापों से छुटकारा पाना है तो इस त्रिवेणी में डुबकी लगा कर ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। यह शाश्वत तत्व अनादि हैं। इनका संतुलन ठीक रखने से संसार की वर्तमान अव्यवस्था दूर हो सकती है और सतयुग आ सकता है। पाठक, नीचे के कोष्ठक पर गम्भीरतापूर्वक मनन करेंगे, तो उन्हें ‘सत्’ आन्दोलन की गहरी नींव का प्रमाण मिलेगा।

सत्य प्रेम न्याय

ह्रीं श्रीं कीं

भूः भुवः स्वः

सत्चित्आनन्द

सत रज तम

सत्य शिव सुन्दर

ईश्वर जीव प्रकृति

ब्रह्मा विष्णु महेश

ज्ञान भक्ति कर्म

आध्यात्मिक आधिदैविक आधिभौतिक

योग यज्ञ तप

मन वचन कर्म

आत्मा हृदय मस्तिष्क

कर्ता कर्म क्रिया

शैशव यौवन बुढ़ापा

वात कफ पित्त

ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय

ऋग् यजु साम

गंगा यमुना सरस्वती

ब्रह्मर्षि देवर्षि राजर्षि


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