सत्संग का महत्व

April 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले.—ऋषि तिरुवल्लुवर)

यह एक बड़े सौभाग्य की बात है कि किसी मनुष्य को महान पुरुषों का सत्संग, प्रेम या समीप रहना प्राप्त हो। योग्य व्यक्तियों को तुमने यदि अपना मित्र बना लिया, तो सचमुच ही तुमने एक शक्ति संपादित कर ली, जो बहुत मूल्यवान् और महत्वपूर्ण है। तुम्हें ऐसे व्यक्तियों का प्रेम-पात्र बनने का सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए, जो कष्ट पड़ने पर तुम्हारी सहायता कर सकते हैं और बुराइयों से बचाने की एवं निराशा में आशा का संचार करने की क्षमता रखते हैं।

खुशामदी और चापलूसों से घिर जाना आसान है। मतलबी दोस्त तो पल भर में इकट्ठे हो सकते हैं, पर ऐसे व्यक्तियों का मिलना कठिन है, जो कड़ुई समालोचना कर सकें, जो खरी सलाह दे सकें। राजा और साहूकारों की मित्रता मूल्यवान् समझी जाती हैं, पर सब से उत्तम मित्रता उन धार्मिक पुरुषों की है, जिनकी आत्मा महान है। जिसके पास पूँजी नहीं है, वह कैसा व्यापारी? जिसके पास सच्चे मित्र नहीं हैं, वह कैसा बुद्धिमान? उन्नति के साधनों में इस बात का बड़ा मूल्य है कि मनुष्य को श्रेष्ठ मित्रों का सहयोग प्राप्त हो। बहुत से शत्रु उत्पन्न कर लेना मूर्खता है, पर उससे भी बढ़कर मूर्खता यह है कि भले व्यक्तियों की मित्रता को छोड़ दिया जाए।

निर्मल बुद्धि और श्रम में श्रद्धा, यही दो वस्तुएं तो किसी मनुष्य को महान बनाने वाली हैं। उत्तम गुणों को अपनाने से नीच ऊँचे बन सकते हैं और दुर्गुणों के द्वारा बड़े-छोटे हो जाते हैं। निरन्तर की लगन, सावधानी, समय का सदुपयोग छोटे को बड़ा बना सकते हैं, हीन मनुष्यों को कुलीन कर सकते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118