रामकृष्ण परमहंस के उपदेश

April 1942

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खाज खुजाने के समय तो बड़ा आनन्द आता है, पीछे बड़ा दर्द होता है और घाव पड़ जाते हैं। विषय भोगते समय तो बड़े अच्छे मालूम होते हैं, पर पीछे से वे नारकीय यातना में जलाते हैं।

नाव पानी में रह सकती है, पर पानी नाव में रहेगा, तो उसे ले बैठेगा। मुमुक्षु साँसारिक मनुष्यों में रह सकता है, पर यदि उसके मन में साँसारिक विषय रहेंगे, तो वह पतन की ओर चला जाएगा।

सोने से अनेक प्रकार के आभूषण , लोग अपनी रुचि के अनुसार बना लेते हैं, पर सोना-सोना ही रहता है। मनुष्य अपनी बुद्धि के अनुसार ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों की कल्पना कर लेते हैं। वह सभी भावों में समान रूप से रहता है।

घड़े में एक बार पानी भरकर यदि फिर उसे कहीं यों ही रखा रहने दो तो कुछ दिन में पानी सूख जायेगा; किन्तु यदि पानी के भावर ही वह घड़ा रखा रहे तो पानी कभी न सूखेगा। यदि एक बार सत्य मार्ग का अवलम्बन करके फिर उस ओर से उदासीन हो जाओ तो परिश्रम व्यर्थ चला जाएगा; किन्तु यदि उस पथ पर सदैव आरुढ़ रहो तो जीवन उसी तत्व से ओत-प्रोत हो जायेगा।

मक्खियाँ किसी स्वच्छ स्थान पर बैठी हों उन्हें कहीं मैले का टोकरा दिखाई पड़ जाए, तो वह उस स्वच्छ स्थान को छोड़कर मैले पर ही बैठेंगी; परन्तु शहर की मक्खियाँ ऐसा नहीं करतीं, वे फूलों को छोड़कर दूषित वस्तुओं पर दृष्टिपात नहीं करतीं। विषयी पुरुष सत्कर्मों को छोड़कर वासनाओं की गन्दगी में भटकते फिरते हैं; किन्तु धैर्यवान् पुरुष प्रभु-प्रेम के अमृत को पाकर दूसरी ओर आँख भी नहीं उठाते।

गुबरैला कीड़ा गोबर में ही रहना पसन्द करता है। कोई उसे अच्छे स्थान पर बिठा दे, तो भी वह उड़कर वहीं पहुँचेगा! दुष्ट मनुष्यों की सत्संग में रुचि नहीं होती, वे तो पाप कर्मों में ही खुश रहते हैं।

निराशा नास्तिकता है।


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