सूर्य चिकित्सा का जादू

April 1942

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(श्री मंगलचन्दजी भंडारी, अजमेर)

सन् 39 के अगस्त माह में मेरे सीधे पाँव के कूल्हे में अकस्मात कुछ दर्द हुआ। अजमेर के प्रमुख डाक्टरों और वैद्यों को दिखाया और इलाज भी करवाया, किन्तु किसी से भी लाभ न हुआ, अपितु रोग बढ़ता ही गया। बीमारी का नाम भी कोई ठीक-2 न बता सके। 3-4 एक्स-रेज भी लिये मगर सब बेकार हुये। डाक्टरों ने (T. B. Bone) बताया, वैद्यों ने बाय बतलाई, हकीमों ने अरकुनिशा बताई, पहलवानों ने पाँव उतर गया बताया, और जिन्न आदि उतारने वालों ने भूत-प्रेत की छाँह पड़ गई यह बताया। हम हैरान हो गये कि आखिर क्या बला है? अन्त में लोगों के कहने से हम एक अनजान खाती के पंजे में फँस गये। उसने पाँव उतरा हुआ बता कर पाँव को झटके आदि दिये, जिससे तकलीफ कई गुणी और ज्यादा बढ़ गई और इतनी बढ़ी कि उठना, बैठना मुश्किल हो गया। रात भर नींद नहीं आती थी।

रियासत मारवाड़ के अन्दर एक सोजत करके शहर है, जो कि मेरी जन्मभूमि है, वहाँ एक मुस्लिम प्राकृतिक चिकित्सक कासम भाई का नाम सुनकर हम वहाँ पहुँचे। छह माह कासम भाई का इलाज करवाया। इलाज सेक, मालिश और मिट्टी का ही होता था। उससे हम लकड़ी के सहारे से फिरने लग गये और रात को नींद भी आ जाती थी। कासम भाई का जितना सरल और सीधा स्वभाव था, उतना मैंने अन्य किसी मुस्लिम भाई का न देखा। वह मुझे प्यार करता था एक बच्चे की तरह। क्यों न करे वह था बुड्ढा और मैं था बच्चा।

लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था, इसमें कासम भाई का इलाज छोड़ा, जल्दी ठीक हो जाने के लोभ में इन्दौर गये और वहाँ से 4-5 माईल की दूरी पर एक देवास सीनियर नामक ग्राम में गये। वहाँ पर राबर्ट साहब का 6 माह तक इलाज करवाया, वहाँ पर हमारा स्वास्थ्य तो अवश्य ठीक हो गया, मगर पाँव की बीमारी में कोई सन्तोषजनक लाभ न हुआ। यहीं पर हमने एक अखण्ड-ज्योति की नमूने की प्रति मँगाई थी!

बस! यहाँ पर पत्रों द्वारा अखण्ड ज्योति के उदार सम्पादक पं0 श्रीराम जी शर्मा आचार्य का परिचय हो गया। पंडितजी को हमने अपने रोग का हाल लिख भेजा, पंडित जी ने ढाढ़स बँधाया और शीघ्र ही रोग से मुक्त होने का विश्वास दिलाया।

सन् 41 के दिसम्बर माह में मैं स्वयं मथुरा पहुँचा। पंडित जी के पास तीन सप्ताह से अधिक रहा हूँगा। पंडित जी ने अपने कार्य विशेष का कोई ख्याल न कर हमारी चिकित्सा का खास रूप से प्रबन्ध किया। पंडित जी ने सूर्य किरण लेने की प्रमुख रूप से हिदायत की। तीन सप्ताह किरणें लेने से हमारे पाँव में आश्चर्यजनक लाभ हुआ। दर्द में भी काफी न्यूनता हो गई। प्रायः एक घण्टे कम से कम नीले रंग के शीशे से हम सूर्य रश्मियाँ प्रयोग में लेते थे। सूर्य किरणें वास्तव में आश्चर्यपूर्ण लाभ दिखलाती हैं। अब भी हमें इतना समय नहीं मिलता है कि हम सदैव सूर्य किरणों का सेवन कर सकें, किन्तु जब कभी भी दर्द अधिक होता है, एक घंटा सूर्य रश्मियों का सेवन कर लेते हैं, जिससे दर्द कम हो जाता है।

सूर्य किरणों के सेवन करने से अब तक हमारे पाँव में जो लाभ हुए हैं वे ये हैं,—(1) चलने-फिरने से पहले काफी रुकावट होती थी, वह अब बहुत कम होती है। (2) पाँव में पहले प्रायः हर समय दर्द रहता था, वह अब बहुत ही कम रहता है। (3) पाँव को हिलाने-डुलाने में पहले काफी दर्द होता है, वह अब बिलकुल नहीं होता था। (4) पाँव पतला पड़ने लग गया था, वह पतला पड़ना अब रुक गया है। (5) पाँव की वजह से कभी-कभी कमर में भी दर्द हो जाता था, वह भी अब नहीं होता है।


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