प्रेम का अर्थ

April 1942

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(पी.जगन्नाथ राव नायडू, नागपुर)

प्रेम का अर्थ हर प्राणी भली-भाँति समझता है,उसके अनुसार हर एक प्राणी अपने-अपने कार्य किया करता है। पक्षियों में भी देखो, कितना प्रेम है। चकवी और चकवा, हंस, सारस ये पक्षी भी अपनी या दूसरी जाति के पक्षियों को दुःख नहीं दिया करते। प्रातः काल सब पक्षी मिलकर कितना सुन्दर गान गाते और किलोल किया करते हैं।

एक पक्षी अपना अण्डा कौओं के घोंसले में रख जाता है। कौआ उसे सेता है, नन्हे बच्चों को अपने बच्चे जैसा प्रेम करता है। जब उड़ने लायक हो जाता है, तब अपने जाति के पक्षी से संबंध करता है; वैसे ही टिटहरी नाम का पक्षी जब रात्रि को विश्राम करता है तब दोनों पैर ऊपर को उठाये रहता है। वह समझता है कि भगवान गिरेंगे तो अपने पैरों पर थाम लेंगे।

मनुष्य सब प्राणियों से श्रेष्ठ गिना जाता है, और कुत्तों का सा व्यवहार भी कुछ लोग करते हैं। कुत्ता दूसरों से प्रेम भी कुछ करता है, बिरादरी से संद्वेष, कुत्तों में भी अनेक स्वभाव के हैं, पनियर, बुलडाग, ताजी। जो नम स्वभाव के होते हैं, उन्हें क्रूर स्वभाव के कुत्ते ज्यादा तंग करते हैं, इसीलिए कुछ बुद्धिमान और अफसर लोग नर्म स्वभाव वाले को ज्यादा पसन्द करते हैं, उनकी इज्जत भी किया करते हैं। ऐसे ही कुछ मनुष्यों में कुत्तों के स्वभाव की प्रथा चालू है। मनुष्य होते हुए कुत्ता बनना बड़ा आश्चर्य है, कुत्तों जैसे स्वभाव वालों की संगत से अच्छा मनुष्य भी वो ही आचरण करने लगता है। इसी से कतरी कुत्ते ज्यादा हो जाने से जहर डाल कर मार डालते हैं।

मनुष्य क्या नहीं कर सकता है, अच्छे आचरण तो पक्षियों को और जानवरों को भी सिखाता है, कहीं-कहीं उनसे भी नीच कर्म किया करता है, ऐसे मनुष्यों के नाम कोई पुस्तकों में भी नहीं मिलेंगे। जैसे स्त्री, पुरुष, नपुँसक। लेकिन इन पुरुषों का नाम ही नहीं है।


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