बुरी आदतें

April 1942

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(ले.—प्रो. विद्याभूषण जी अग्रवाल, एम. ए.)

प्रायः हम सभी यह भली-भाँति जानते हैं कि मनुष्य में भलाई और बुराई दोनों का समावेश होता है। एक ही प्राणी में अच्छाइयाँ और बुराइयाँ दूध-पानी अथवा धूप-छाया की तरह मिली रहती हैं। कोई भी मनुष्य न तो सम्पूर्णतः अच्छा ही है और न ही सौ फीसदी बुरा। बुरे से बुरा समझे जाना वाला मनुष्य भी कभी-कभी सद्गुणों से या तो प्रभावित हो जाता है और साधु-सन्त तथा महात्माओं से भी यदा-कदा गलती हो जाती है। ऐसा भी हम सभी जानते हैं।

जब तक हम मानव हैं अथवा मानवी विकारों की सीमा में आबद्ध हैं, तब तक हममें बुराई तथा अच्छाई दोनों ही रहेंगी। बुराइयों से हमारा छुटकारा तब तक नहीं है, जब तक हम देवत्व-पद न प्राप्त कर लें। फिर भी हम बुराइयों को दूर करना चाहते हैं। जीवन का ध्येय भी यही है। यह मानव के विकास का एक साधन है। उन्नति की एक सीढ़ी है। दुर्गुणों को दूर कर सद्गुणों को ग्रहण करना चाहिए। यही सदा हमारा एक मात्र लक्ष्य होना चाहिए।

बुराइयों को छोड़ने के सम्बन्ध में एक बात दृढ़तापूर्वक मन में निश्चय कर लेनी चाहिए कि वे दूर हो सकती हैं। अक्सर लोग बुराई अथवा बुरी आदतों के शिकार होते हैं; पर उन्हें नहीं छोड़ पाते। इसका एक कारण है कि वे अपने को अपने ‘अहं’ को बुराई के सामने कमजोर मान बैठते हैं। बुरी आदतों को कभी भी अपने स्वभाव अथवा चरित्र का एक आन्तरिक अंश नहीं मानना चाहिए। दुर्गुण हमारे चरित्र का एक अंश नहीं, वह तो ऊपर का एक छिलका है, जो दूर किया जा सकता है। जो लोग बुराई को यह समझते हैं कि वह उनके व्यक्तित्व का एक अंश है, वह भूल करते हैं और वही लोग अपनी आदतों के शिकार बने रहते हैं।

दुर्गुणों से छुटकारा पाने का एक दूसरा उपाय है, दृढ़ इच्छा शक्ति। बहुधा ऐसा होता है, लोग बुराई को दूर करने में अपने मन का पूरा जोर नहीं लगाते। या वह बिना सोचे समझे झट से तय कर लेते हैं कि अमुक चीज बुरी है। मान लीजिए आप सिगरेट पीते हैं। अब इसको छोड़ने का तब तक निश्चय मत कीजिए, जब तक आपको वास्तव में यह विश्वास नहीं हो जावे कि सिगरेट एक बुरी चीज़ है। उसके सेवन से आपको हानि हो रही है और उसके सेवन को छोड़ने से आपको चरित्र लाभ होगा। बुरी आदतों से लड़ना तब तक सहज नहीं, जब तक आपने उन पर अच्छी तरह सोच-विचार नहीं कर लिया है और उससे जूझने की आपकी अदम्य इच्छा-शक्ति नहीं है; युद्ध के लिए तैयारी करनी पड़ती है। ठीक उसी प्रकार बुरी आदतों से लड़ने के लिए अनेक प्रकार की तैयारी अपेक्षित है। जहाँ तुम्हारी बुराई सब से अधिक हल्की अथवा मामूली हो वहाँ पहले आक्रमण करना चाहिए। छोटी-छोटी बुराइयों को जीत लेने से मन में विश्वास जमता है और इच्छा-शक्ति बढ़ती है। इस लिए जब कभी तुम बुराइयों पर विजय पाना चाहो तो सदा छोटी दिखने वाली बुराई से प्रारम्भ करो। वर्षों की पड़ी आदतों से एक दम लड़ना प्रारम्भ मत करो, नहीं तो तुम अपनी अशक्त इच्छा-शक्ति के कारण हार जाओगे।

बुराइयाँ दूर करने की क्रिया में एक बान अधिक मदद करती है। वह यह है कि हमें बुराई पर उतना अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए, जितना कि उसके विरोधी गुणों पर। उदाहरण के लिए मान लो, आपको क्रोध जल्दी आ जाता है। तो क्रोध की आदत को छोड़ने का सरल ढंग यह नहीं कि सदा क्रोध करने से हानि पर विचार किया जाए। क्रोध का त्याग करने में अधिक सहायता इस बात से मिलेगी कि आप “चित्त की शान्ति” पर विचार करें और उसे बढ़ाने का प्रयत्न करें। स्मरण रहे कि दुर्गुणों को दूर करने की उपेक्षा सद्गुणों का विकास करना अत्यन्त सरल है। मनुष्य स्वभावतः सद्गुणों की ओर प्रवृत्त होता है। इसलिए उन नवयुवकों को जो बुराइयों के शिकार हो रहे हैं, सदा अच्छाइयों के विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए। तभी वे अपनी बुरी आदतों को छोड़ सकेंगे। बुरी आदतों को छोड़ने के इच्छुक नवयुवकों को निम्नलिखित बातों पर सदा ध्यान रखना चाहिए—

1—बुराई मनुष्य की आत्मा का बाह्य उपकरण है; वह इच्छा-शक्ति-द्वारा छिलके के समान उतार कर फेंका जा सकता है।

2—बहुत पुरानी और तुम्हारे स्वभाव में गहरी जड़ें जमाने वाली आदतों को पहले मत छुओ। सर्वप्रथम छोटी-छोटी बुराइयों को त्यागो, फिर क्रमशः कठिन बुराइयों को दूर करने का उद्योग करो।

3—बुराइयों को दूर करने पर उतना अधिक जोर मत दो, जितना कि उनकी विरोधी अच्छाइयों के विकास पर।

4—सदा मन में इस बात का विश्वास रखो कि जो कोई कार्य अन्य कोई भी प्राणी कर चुका है, उसे तुम भी कर सकते हो। ऐसा सोचने में ही तुम्हारा कल्याण है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles