दिल्ली के तख्त पर बैठा हुआ भारत का सम्राट् टोपियाँ सीकर अपना पेट भरता था। एक दिन भोजन बनाते समय उसकी बेगम का हाथ जल गया। कई फफोले उठ आये, पीड़ा से बेचैन होकर बेगम झुँझलाती हुई बादशाह के पास आई और बहुत दुखी होकर कहने लगी। -इतने बड़े देश के मालिक होकर भी क्या आप रोटी बनाने के लिए एक दासी नहीं रख सकते? देखिए, मेरे हाथ कैसे जल गये हैं।
नासिरुद्दीन ने एक प्रेम भरी दृष्टि बेगम पर डाली और कहा-प्यारी! मुल्क का मालिक मैं नहीं। मालिक तो खुदा है। मैं तो नाचीज खिदमतगार हूँ। तुम देखतीं नहीं, टोपियाँ सीकर जो कमाता हूँ, उससे ही अपनी गुजर-बसर करता हूँ। इसमें इतना कहाँ बचता है कि दासी या नौकर रखा जा सके ।
बेगम ने कहा—खजाना तो आपका है। इसमें से खर्च करने से आपको कौन रोकता है?
नासिरुद्दीन ने उत्तर दिया—सरकारी खजाने में मेरा क्या है, यह तो प्रजा की चीज़ है और उसी के काम में खर्च होनी चाहिए। यह ठीक है कि मैं अनुचित रीति से उसमें से खर्च करूं तो आज मेरा हाथ न पकड़ेगा; किन्तु कल खुदा के सामने तो हिसाब देना ही होगा। सार्वजनिक सम्पत्ति का ट्रस्टी मैं बना हुआ हूँ। यदि इस अमानत में खयानत करूं, प्रजा के पैसे को अपने काम लाऊँ तो अल्लाह के सामने गुनहगार ठहराया जाऊँगा। बेगम अपना दुःख भूल गई और बादशाह की सच्चाई की प्रशंसा करती हुई, महल में वापिस लौट गई।