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May 1941

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मूर्ख मेंढक नालियों का गन्दा पानी पीकर टर्राता है, किन्तु मधुर मक्षिका कमल-पुष्पों का मधुर रस पान करके भी घमंड नहीं करती।

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बहुत मित्रों से सुख मिलता है, गुरुजनों की सेवा से बुद्धि बढ़ती है, प्रयत्न से सिद्धि प्राप्त होती है और धर्म में प्रवृत्त होने से धर्म का मार्ग खुल जाता है।

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यदि दुनिया तुम्हारे कार्यों की प्रशंसा करती है, तो इसमें कुछ भी बुरा नहीं, खतरा तब है, जब तुम प्रशंसा पाने के लिए किसी काम को करते हो।

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धर्म का महान महत्व केवल दो शब्दों में निहित है। वे शब्द हैं ‘दया और प्रेम।’

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केवल धर्म-धर्म रटने के बातूनी जमा खर्च से कुछ भी लाभ नहीं। यदि तुम प्रदर्शन के लिए धर्म का आडम्बर करते हो, तो उससे रत्ती भर भी आत्मोन्नति न होगी, इसकी अपेक्षा तो शारीरिक व्यायाम करना और हँसना, खेलना धर्म के अधिक निकट हैं।


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