श्रेष्ठ-आचरण

May 1941

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री 108 बाबा गोपाल दास जी महाराज)

मनुष्य जीवन में सदाचार का बहुत ऊंचा स्थान है। व्यावहारिक जीवन में जिस मनुष्य के आचार ठीक नहीं हैं, वह चाहे कितना ही गुणी, धनी और विद्वान क्यों न हो, समाज में आदर प्राप्त न कर सकेगा। शास्त्रों का आदेश है कि हम दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें, जैसा कि अपने लिये चाहते हैं। कोई मनुष्य यह नहीं चाहता कि दूसरे लोग मेरे साथ अपमानजनक, अशिष्टता का, रूखा या छल कपट आदि का व्यवहार करे। फिर उसे स्वयं दूसरों के साथ वैसा व्यवहार क्यों करना चाहिए?

संसार कुएं की आवाज की तरह उत्तर देता है। किसी पक्के कुएं के मुँडेर पर बैठ कर तुम जैसे शब्दों का उच्चारण करोगे उसमें से वैसी ही प्रतिध्वनि वापिस आवेगी। गालियाँ दोगे तो कुआँ भी तुम्हें फौरन वैसी ही गाली देगा। यदि तुम लोगों के साथ बेईमानी, धोखेबाजी या निष्ठुरता का व्यवहार करोगे तो वैसे ही अवसर तुम्हारे सामने आवेंगे। यह हो सकता है कि जिस आदमी को तुमने सताया है, वह स्वयं उसका उत्तर देने में समर्थ न हो, परन्तु परमात्मा अन्य प्रकार से उसके सामने देर सवेर में वैसे ही दृश्य उपस्थिति कर देगा।

प्रेम, आदर, और उदारता का स्वभाव एक अनमोल खजाना है। सदाचारी मनुष्य अपनी सहज उदारता के कारण दूसरों के साथ भलाई करता रहता है, मानो वह अपने खेत के जो जगह बोता फिरता है। उसका बीज अकारथ नहीं जाता बल्कि सौगुना होकर लौट आता है। जिस मनुष्य के हृदय में दया है, वह चाहे जहाँ चला जाए उस पर सब जगह दया होगी। जो दूसरों का आदर करना जानता है वह परदेश में भी आदर प्राप्त करेगा। जो दूसरों के दुख में मदद देता है, वह अपनी विपत्ति में भी दूसरों की सहायता पाता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles