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May 1941

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हमारा व्यापार इस साल बहुत बढ़ गया है। पिछले कई वर्षों से बहुत नुकसान था, किन्तु अब स्थिति बदल गई है। पिताजी कहा करते हैं, अखण्ड ज्योति गंगाजी के समान पूजनीय है, यह ऋद्धि- सिद्धि देने वाली है वे सब घर वालों को इकट्ठा करके संध्या समय इसके कुछ पन्ने पढ़ कर सुनाया करते हैं।

—तेजबल चोरडया, झूथना।

जिस घर में हम किराये पर रहते हैं, उसमें अभी इसी मास सात व्यक्ति हैजा से मर गये। मेरे पति और पाँच वर्षीय एक मात्र पुत्र को भी हैजा हुआ था पर वे अच्छे हो गये। मैं समझती हूँ कि अखण्ड ज्योति द्वारा हमारे हृदयों में जो धर्म का अंकुर उद्भव हुआ है, उसी की कृपा से हम लोगों की रक्षा हुई है।

—विमला, विशारद, देवगढ़।

इस साल हमारा घर खुशी से फूला नहीं समाता। मेरा लड़का और भतीजा पास हो गये। घर में दो पुत्र उत्पन्न हुए हैं, बधाइयों का ताँता है। चाँदी के व्यापार में अच्छा नफा रहा। दादी अंधी हो गई थी, डॉक्टर ने उसके नेत्र ठीक कर दिये हैं। हमारा विश्वास है कि अखण्ड ज्योति घर में बरकत लाई है।

—प्रभुदयाल गर्ग, विचोड़ा

मेरा स्वभाव कुछ खिन्न सा ही रहा करता था, लेकिन जब से “अखण्ड ज्योति” पढ़ता रहा हूँ तब से मुझ में विशेष परिवर्तन हो रहा है।

—मंगल चन्द भण्डारी ‘सोजन’

मेरे एक ताऊ हैं, जिनसे कई प्रकार के प्रश्न पूछा करता हूँ और वे यथाशक्ति सब का उत्तर दे दिया करते थे, परन्तु जब से मैंने “अखण्ड ज्योति” मंगानी शुरू की-उनके उत्तरों में बड़ा भारी परिवर्तन हो गया है। अब मैं जब कभी उन से कोई प्रश्न पूछ बैठता हूँ तो वे झट कह दिया करते हैं—”अखण्ड ज्योति” के फैलाने अंक में क्यों नहीं देख लेते?” और जब मैं सचमुच उस अंक को उठाता हूँ तो मेरे सामने शान्तसाद उत्तरों का ताँता सा बँध जाता है। अब मेरे ताऊ को प्रश्नों का उत्तर देने से भी मुक्ति मिल गई है।”

—यदुनन्दन प्रसाद, पौड़ी।

अखण्ड ज्योति के पठन से अथवा भगवान की दया से प्रभु में विश्वास अखण्ड हो गया है, इससे साहस की वृद्धि हुई। नहीं तो इस साल जितनी आपत्तियाँ मुझ पर पड़ीं और कोई होता तो न मालूम क्या करता। मैं अखण्ड ज्योति को अपना परम गुरु मान कर वन्दना करता हूँ।

—प्रेम नारायण शर्मा रिगदावर कानूनगो, लश्कर

अखण्ड ज्योति पढ़ने से बुद्धि में बड़ी सात्विकता आ गई है। मन हर घड़ी प्रसन्न रहता है। साथी पूछते रहते हैं कि आजकल तुम्हें क्या मिल गया है? मैं उत्तर देता हूँ कि मैंने एक निःस्वार्थ और सच्चा सहायक मित्र प्राप्त कर लिया है।

—भगवती नन्दन वर्मा, पिपरोंदा

मुझे इस पत्रिका से बड़ी शान्ति मिलती है। जब पढ़ता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है, कि कोई धर्म गुरु सामने बैठ कर समझा रहा है। प्रतीत होता है प्रभु ने मेरे आत्म-कल्याण के लिए ही इसकी रचना की है।

—विभा नारायण, मुरादाबाद।


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