परिस्थितियों का प्रभाव

May 1941

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(महात्मा जेम्स ऐलन)

मैं दो ऐसे मनुष्यों को जानता हूँ जो जीवन काल के आरम्भ में ही वर्षों की कष्ट से बचाई हुई सम्पत्ति खो बैठे। उसमें से एक बहुत ही दुखी हुआ और बिलकुल निराश और पागल हो गया। दूसरे ने प्रातः काल के समाचार पत्र में यह पढ़ा कि वह बैंक जिस में उसने रुपया जमा किया था, फेल हो गया और उसका सर्वस्व नष्ट हो गया। उसने शान्ति पूर्वक दृढ़ होकर कहा—”ठीक है अब तो यह हाथ से निकल ही गया। शोक से पुनः प्राप्त नहीं हो सकता। परन्तु कठिन परिश्रम से हो सकता है।” वह अपने में नवीन शक्ति का संचार कर काम पर गया और कुछ ही दिनों में फिर धनाढ्य बन गया। साथ ही पहला मनुष्य जो, अपनी द्रव्य हानि पर छाती पीटता और अपने दुर्भाग्य को कोसता था, विपत्ति का आखेट बना रहा। विपत्ति का क्यों, वास्तव में अपने निर्बल और गुलामी के विचारों का शिकार बना रहा। धन की हानि एक के लिए तो विपत्ति का कारण हुई और दूसरे के लिए उत्साह की बात हुई। क्योंकि एक ने उस घटना को अन्धकारमय और निराशा का जामा पहनाया और दूसरे ने उस घटना को शक्ति, आशा और नवीन उद्योग के भावों के आवरण से ढक दिया।

अगर परिस्थितियों में सुख-दुःख पहुँचाने की शक्ति होती तो वे सब मनुष्यों को एक ही तरह सुखी और दुखी बनाती। परन्तु एक ही परिस्थिति का भिन्न-2 मनुष्यों के लिए अच्छा या बुरा प्रमाणित होना यह बात सिद्ध करता है कि भलाई बुराई करने की शक्ति उस घटना-चक्र में नहीं है, बल्कि उस मनुष्य के मस्तिष्क में है, जिसको उसका सामना करना है। जब आप इस बात का अनुभव करने लगेंगे तो आप अपने विचारों पर शासन करने और अपने मस्तिष्क को नियमबद्ध तथा व्यवस्थित बनाने लगेंगे और परिस्थितियों से प्रभावित न होंगे।


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