इच्छा से ईश्वर की प्राप्ति

May 1941

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‘जो माँगेगा, उसे दिया जाएगा, जो खोजेगा वह पावेगा जो खटखटावेगा उसके लिये खोला जाएगा’।

ये शब्द अक्षरशः सत्य है, इनमें जरा भी अलंकार या कल्पना नहीं है, ये शब्द क्या हैं? ईश्वर के एक श्रेष्ठ पुत्र (महात्मा ईसा) के हृदय के उद्गार हैं। चिरकाल की साधना के फल हैं, ये शब्द एक ऐसे महापुरुष के मुख से निकले हैं, जिसने ईश्वर का अनुभव प्रत्यक्ष किया है, जिसने ईश्वर से संलाप किया है, जिसे ईश्वर के सहवास का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। वह सहवास भी एक बार या दो बार नहीं, बल्कि हम आप जितनी बार भी इस मंदिर या गिरजे का दर्शन करते हैं, इससे सैकड़ों गुना अधिकार।

प्रश्न यह है कि ईश्वर की चाह किसे है? क्या आप समझते हैं, कि संसार में जितने भी मनुष्य हैं, वे सभी ईश्वर की प्राप्ति के लिये इच्छुक हैं, किंतु उसे प्राप्त नहीं कर सकते? ऐसा नहीं हो सकता! मनुष्य के हृदय में कौन सी ऐसी इच्छा हैं, जिसका विषय बाह्य-जगत में नहीं? मनुष्य साँस लेना चाहता है, इससे उसे साँस लेने के लिए वायु सदा वर्तमान रहती है। मनुष्य को भोजन की इच्छा होती है, और उसकी भूख की निवृत्ति के लिये भोजन भी तैयार रहता है।

मानव जाति के हृदय में जितनी भी इच्छाएं उत्पन्न होती हैं, उन सभी का उत्पत्ति कारण कोई न कोई वस्तु अवश्य होती है, जो बाह्य जगत में वर्तमान हो। ऐसी परिस्थिति में मनुष्य के हृदय में जब पूर्णता प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न होती है, मनुष्य जब लक्ष्य पर पहुँचने के लिए, आवृत्ति से परे होने के लिए इच्छुक होता है, तब उसका कोई न कोई प्रयोजन अवश्य होना चाहिये।

जिस किसी के भी मन में ईश्वर को प्राप्त करने की सच्ची इच्छा जागृत हो गई, वह अपने लक्ष्य पर, मानव जीवन के विकास की सीमा पर, अवश्य पहुँच जाएगा।


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