कागज की महंगाई

May 1941

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अक्सर हमारे पास पाठकों के ऐसे पत्र आते रहते हैं, जिनमें अखण्ड ज्योति के पृष्ठ बढ़ाने और अच्छा कागज लगाने की सलाह होती है। उन्हें कागज की महंगाई के सम्बन्ध में साप्ताहिक स्वराज्य के 22 अप्रैल के अंक में प्रकाशित एक विज्ञप्ति से कुछ अनुभव हो जायेगा। वह विज्ञप्ति यह है—

पाठकों से प्रार्थना।

अखबारी कागज का भाव लगातार बढ़ता जा रहा है। जो कागज लड़ाई के पहिले 3 ।॥ रु . रिम के हिसाब से आता था, उसकी कीमत अब 15) रु . फीरिम हो गई है। पिछले दो महीनों में यह कीमत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। यूरोप से अखबारी कागज का आना बन्द हो चुका है। कैनेडा और अमरीका से आने वाले कागज पर नियन्त्रण है। विदेश से माल लाने की सुविधाएं भी नहीं हैं। ऐसी हालत में यदि हमें ‘स्वराज्य’ की पृष्ठ संख्या और अधिक कम करने के लिए विवश होना पड़े, तो पाठक निबाह लें।

—मैनेजर, ‘स्वराज्य’ कार्यालय, खंडवा।

इस विज्ञप्ति के बाद इन दिनों दो आना रुपया और महंगाई आ गई है! इस प्रकार कागज का मूल्य पाँच गुना चढ़ गया है। पहले यदि 100) रु ॰ का कागज लगता था, तो अब उस के लिए ही 500) रु . देने पड़ते हैं। इस पर भी कागज मिलता नहीं। इस महंगाई की वजह से अनेक पत्र बन्द हो गये, अनेक ने पृष्ठ घट दिये, कई दो-दो महीने के संयुक्त अंक निकाल रहे हैं। अखंड ज्योति अपनी शक्ति भर न तो पृष्ठ घटेंगी, न मूल्य बढ़ेगा, न बन्द होगी। और जिस दर्जे का कागज गत आठ महीने से लग रहा है, न उससे घटिया लगावेगी, पाठक इतने से ही सन्तोष कर ले। अखंड ज्योति तथा पुस्तकों में बढ़िया कागज लगाने या पृष्ठ बढ़ाने का यह अवसर नहीं है। इस समय तो कागज जैसा कुछ भला-बुरा मिल रहा है उसी से सन्तोष करें। हाँ! उपयुक्त अवसर आते ही हम अपनी सब से सस्ती पत्रिका को अधिक से अधिक उन्नत करने में किसी से पीछे न रहेंगे!

प्रेम का मूल्य प्रेम ही है। तुम दूसरों के शरीरों पर शासन कर सकते हो, परन्तु जब तक अपना हृदय किसी को समर्पण न कर दो, तब तक उसके हृदय पर अधिकार नहीं कर सकते।


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