देखा था मुगल साम्राज्य का सूर्य, चमचमाता हुआ, कितना वैभवशाली था, वह लक्ष्मी उसके चरण धोती थी, परन्तु कुछ ही समय पश्च
May 1941
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- तप-संगीत
- ईश्वर से माँगिए
- कागज की महंगाई
- Quotation
- धर्म द्वारा शाश्वत शान्ति
- बुद्धि बढ़ाने का साधन
- जल्दी कैसे मर जाते हैं?
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- श्रेष्ठ-आचरण
- हिन्दू धर्म ‘जड़’ नहीं है
- भारतीय योगियों की कहानी
- Quotation
- वेदों का अमर सन्देश
- लालच मत करो
- गरीबी की गोद में पला हूँ
- ईमानदारी-दिव्य गुण
- दया की देवी
- साँस कैसे लेनी चाहिये?
- Quotation
- अस्थिर-स्वप्न
- मानव! तुम जागोगे नहीं कब तक सोते रहोगे! शताब्दियाँ बीत गयीं, अब तो उठो, न जाने कितनी बार कोकिल ने अपने गान गाये—केवल
- क्या तुमने विख्यात ‘नालंदा’ को नहीं सुना? कितना विशाल था वह, उसने भी एक बार तारों को चूमना चाहा था, अपने प्रकाश से ज्
- देखा था मुगल साम्राज्य का सूर्य, चमचमाता हुआ, कितना वैभवशाली था, वह लक्ष्मी उसके चरण धोती थी, परन्तु कुछ ही समय पश्च
- प्रातः काल होते ही प्राची दिशा से बादलों के झुँड उड़ चले, कभी गुलाबी तो कभी श्वेत वस्त्र धारण करते थे, परन्तु प्रभा
- इच्छा से ईश्वर की प्राप्ति
- हँसना, सौ रोगों की दवा
- परिस्थितियों का प्रभाव
- पाठकों का पृष्ठ
- हृदयेश
- प्यार का प्रतिकार
- भ्राँति
- परलोक विद्या
- संध्योपासना की विधि
- सूचनाएँ
- कलियुग समाप्त हो रहा है