गरीबी की गोद में पला हूँ

May 1941

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(अमेरिका के राष्ट्रपति की आत्मकथा)

अमेरिका के राष्ट्रपति विलसन अपनी आत्म कथा बताते हुए कहते हैं—”गरीबी मेरी माता और अभाव मेरा हिंडोला है। मेरा दिल जानता है, कि जब माता के पास रोटी न हो तब उससे माँगना, कितने दर्द से भरा हुआ होता है। दस साल की छोटी आयु में मुझे घर छोड़ना पड़ा और लगातार ग्यारह साल तक इधर उधर मजूरी करता फिरा। कहीं कोई स्थायी जगह न मिली आज इसके यहाँ तो कल उसके यहाँ। पढ़ने को बड़ा जी चाहता था पर क्या करता, लाचार था। साल भर में एक महीने किसी तरह पढ़ पाता। ग्यारह वर्षों की निरन्तर कमाई कुल मिलाकर 84 रुपये इकट्ठे कर पाया था। मुझे याद है कि कभी मैंने एक रुपया भी अपने शौक मौज के लिये खर्च नहीं किया। एक-एक पैसे को इक्कीस वर्ष की आयु तक गिनता रहा। उस समय एक रुपया मुझे इतना बड़ा दिखाई देता था जितना कि आज की रात का चन्द्रमा दिखाई देता है। मीलों पैदल चलकर काम देने के लिये अधिकारी व्यक्ति के सामने दाँत रिरियाने के समय जो पीड़ा मुझे होती थी उसे मैं ही जानता हूँ। एक काम लिये मुझे नाटिक शहर से बोस्टन शहर तक 100 मील पैदल चलना पड़ा। इतनी यात्रा में मैंने कुछ मिला कर एक रुपया छै पैसा में काम चलाया। महीनों जंगलों में रहा हूँ, खेत जोते हैं और लकड़ियाँ काटी हैं।’

इस प्रकार गरीबी में पैदा हुआ और अभावों के पालने में झूलने वाला असहाय लड़का अपने निजी प्रयत्न से क्रमशः उन्नति करके अमेरिका जैसे विशाल देश के राष्ट्रपति के पद पर पहुँचा। स्वर्गीय विलसन की आत्मा भाग्य का रोना रोने वाले युवकों से पूछती है, कि मैं बिलकुल असहाय होने पर भी अपने बाहुबल से इतनी उन्नति कर चुका हूँ, फिर तुम क्यों सहायता न मिलने का दुःख रोते हो!


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