गीत संजीवनी- 3

अब तेरा दुःख दर्द

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अब तेरा दुःख दर्द

अब तेरा दुःख दर्द हृदय का- माँ! हमने पहचाना।
इसीलिए तो पहन लिया है- यह केसरिया बाना॥

बहती है अब देश- देश में, उग्रवाद की धारा।
लगता जैसे लगा दाँव पर, है अस्तित्व हमारा॥

नफरत से हर हृदय झुलसता, देता हमें दिखाई।
अरे उसी बढ़ती ज्वाला में, जलती है तरुणाई॥
हर पल बढ़ती हुई आग से, हमको विश्व बचाना॥

यह बाना तप और त्याग की, खरी प्रेरणा देगा।
इसमें सारा विश्व नये, युग की किरणें देखेगा॥

दुर्भावों से यही मनुज का, रक्षक ढाल बनेगा।
अँधियारे में यही धधकती, हुई मशाल बनेगा॥
भरी नज़र से देख रहा है, इसकी तरफ ज़माना॥

तप बल से जो तपोनिष्ठ ने, ऊर्जा यहाँ जगाई।
धरती के हर कोने में है, वह ऊर्जा बिखराई॥

बिखरी हैं जो दिव्य शक्तियाँ, उन्हें साथ है लाना।
देववृत्तियों का अब फिर से, है संगठन बनाना॥
संघशक्ति से असुर वृत्ति का, अब है दम्भ मिटाना॥

जिसके ऋषियों ने धरती को, अनुपम ज्ञान दिया था।
वैभव संस्कृति शान्ति व्यवस्था, का अनुदान दिया था॥

जिसका है आभार विश्व के, हर अणु पर हर कण पर।
है प्रभाव मानवी चेतना, पर चरित्र- चिन्तन पर॥
ध्वज हमको अब इस संस्कृति का, जग में है फहराना॥

मुक्तक-


माता हम तेरे सपूत हैं, दुनियाँ को यह दिखला देंगे।
भेद भाव की खाई पाटकर, प्रेमभाव फिर विकसा देंगे॥

सबके हित में स्वार्थ त्याग का, व्रत अब हमने ठाना है।
इसी शपथ की याद दिलाता यह केशरिया बाना है॥

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