गीत संजीवनी- 3

आज जरूरत भारत माँ को

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आज जरूरत भारत माँ को

आज जरूरत भारत माँ को, ऐसे वीर जवानों की।
परम्परा जो निभा सकें फिर, हँस- हँसकर बलिदानों की॥

नवयुग की वेला आयी है, उमड़ रही अरुणाई है।
अँगड़ाई लेती है धरती, लहराती तरुणाई है॥

गीत प्रभाती के गाकर माँ, तुमको आज जगाती है।
अग्रदूत बनना है युग का, ऐसा पाठ पढ़ाती है॥
मीठे सपने छोड़ थाम लो, डोर नये अभियानों की॥

वीर भूमि की ओ सन्तानों, पहचानों फिर अपने को।
पूर्ण करो तुम अब इस युग के, भारत माँ के सपनों को॥

शंकर, ज्ञानेश्वर, गौतम की, आत्मा तुम्हें बुलाती है।
सीता, अनुसुइया, दुर्गा की, परम्परा अकुलाती है॥
ले संकल्प पूर्ति करनी है, उन सबके अरमानों की॥

बलिदानी मिट्टी ने तुमको, भरकर आँख पुकारा है।
और हिमालय की चोटी से, ऋषियों ने ललकारा है॥

तुममें साहस हो कुछ भी तो, मोह छोड़ आगे आओ।
देवभूमि की गरिमा लेकर, भूमण्डल पर छा जाओ॥
तुम हो उनके अंश कि जिनने, गति मोड़ी तूफानों की॥

मुक्तक-


जवानी शौर्य की बलिदान की, प्रेरक कहानी है।
नये युग के सृजन में फिर, उसे जीवट दिखानी है॥

राष्ट्र की अस्मिता ने फिर, जवानी को पुकारा है।
विश्व नेतृत्व करने की, पुनः क्षमता जगानी है॥
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