गीत संजीवनी- 3

आप क्या मिल गये

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आप क्या मिल गये

आप क्या मिल गये स्वर्ग ही मिल गया,
फिर न ऐसी घड़ी तो कभी आयेगी।
साधना सिर पटकती रहे जन्म भर,
सिद्धि ऐसी कभी भी नहीं आयेगी॥

जब हमें सिद्धि का स्रोत ही मिल गया,
साधना की जड़ें सूखने क्यों लगी।
प्राण जुड़ ही गये जब महाप्राण से,
स्नेह की शृंखला टूटने क्यों लगी॥
प्राण की साधना जुड़ महाप्राण से,
साधना क्षेत्र में और रंग लायेगी॥

सिन्धु ने बिन्दु को आज स्वीकार कर,
सिन्धु के रत्न उपहार में दे दिये।
सिन्धु ने बिन्दु से दिव्य अनुदान ये,
सिर्फ करुणा जनित प्यार में दे दिये॥
क्या किसी और की भी हृदय सम्पदा-
इस तरह से द्रवित हो पिघल पायेगी॥

बिन्दु की मात्र आकाँक्षा है यही,
सिन्धु का स्नेह वह बाँटती ही चले।
स्नेह के बिन तड़पते त्रसित जो अधर,
भावना छलछला उन अधर पर ढले॥
स्नेह के सिन्धु! क्या बिन्दु की यह ललक-
पूर्ण होकर तुम्हारा सुयश गायेगी॥

मुक्तक-

स्रोत से जुड़ गये तो धार क्या है, सिन्धु में जब मिल गये मझधार क्या है।
सिद्ध, सर्व समर्थ गुरु सत्ता हमारी, सिद्धियों का और फिर भंडार क्या है॥
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