गीत संजीवनी-13

मिटायेंगे धरा पर

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मिटायेंगे धरा पर, अब अँधेरा रह न पायेगा।
खुशी से देश सारा, यह हमारा लहलहायेगा॥

युगों से पल रही आयी, अविद्या और बेकारी।
दिलों में जल रही थी, द्वेष की दुःख की महामारी॥
सुलगती आ रही, चिनगारियों को हम बुझायेंगे।
निरक्षरता, गरीबी और बेकारी, हटायेंगे॥
करो संकल्प सब मिल, फिर मनोबल जाग जायेगा॥

प्रगति उनकी रुकी रहती, भरोसे भाग्य जो रहते।
समय आलस्य में खोते, थपेड़े हैं वही सहते॥
नहीं पाते कभी मंजिल, कि जो बहते कगारों पर।
सफलता है टिकी संकल्प, साहसमय विचारों पर॥
युवक अब देश का कोई न श्रम से, जी चुरायेगा॥

समझ लो चरण विश्वासी, हमारे रुक नहीं सकते।
किसी के सामने हम चिर प्रवासी झुक नहीं सकते॥
दुहाई धर्म देता है, हमें मंजिल बुलाती है।
अनेकों दीन दुखियों की, हमें पीड़ा रुलाती है॥
अगर दो साथ तुम भी, तो चमन यह चहचहायेगा॥

मुक्तक-
चरण रुकेंगे कभी न क्षण भर, सदा बढ़ेंगे आगे।
दीप जल चुका है गुरुवर का, दुःख दुनिया से भागे॥

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