गीत संजीवनी- 3

अपनी भक्ति का अमृत

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अपनी भक्ति का अमृत

अपनी भक्ति का अमृत पिला दो प्रभु।
पार नैया मेरी अब लगा दो प्रभु॥

मन का स्वामी हूँ मैं, मन मेरा दास है।
मन के मंदिर में भगवन्! तेरा वास है॥
अपनी ज्योति से, मन जगमगा दो प्रभु॥

हर समय ध्यान तुझमें लगाता रहूँ।
तेरे गुण अपने जीवन में लाता रहूँ॥
धर्म पथ का पथिक अब बना दो प्रभु॥

तू ही बन्धु मेरा- प्यारा सच्चा सखा।
तू ही रक्षक मेरा, स्वामी माता- पिता॥
अपनी गोदी में, अब तो बिठा लो प्रभु॥

तेरे ही ध्यान में, रहता हूँ मैं मगन।
तेरे दर्शन की मन को, लगी है लगन॥
द्वैत का अब ये, पर्दा हटा दो प्रभु॥

ज्योति की दो मुझे, एक अपनी किरण।
दीप्त हो जाये मेरा, यह अन्तः करण॥
मेरी कुटिया को, अब जगमगा दो प्रभु॥

मुक्तक-


नाथ! भक्ति का अमृत पिला दीजिए।
प्यास मन की सदा को मिटा दीजिए॥

वासना कामना का न चक्कर रहे।
प्रेम सागर में हमको डुबो दीजिए॥

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