गीत संजीवनी-4

आपसे माँ! हमें यह

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आपसे माँ! हमें यह

आपसे माँ! हमें यह, विरासत मिली,
आप हमको अतुल सम्पदा दे गयीं।
भाव संवेदना से, हृदय भर गया,
मर्म की बात कुछ इस तरह कह गयीं॥

भाव संवेदना, सिन्धु की ही लहर,
जिस तरफ भी उठे, प्यार ही बाँटती।
आप जो दे गयीं, मर्म वाली नजर,
हर विकल अश्रु के, कष्ट को काटती।
नफरतों के जहर को, करेंगे दफन,
आप तो बाँटने की सुधा दे गयीं॥

गांठ में बाँध ली आपकी बात को,
मानवी पीर पीते रहेंगे सदा।
दर्द से मुक्त करने, मनुज मात्र को,
प्यार से जख्म सीते रहेंगे सदा।
आपके स्नेह के सूत्र से सब बंधे,
आप ऐसी अमर, एकता दे गयीं॥

हम जियेंगे अगर तो मिशन के लिए,
व्यक्तिगत कामना हम किसी की नहीं।
जो कहेंगे- करेंगे, मिशन के लिए,
स्वार्थ की भावना हम किसी की नहीं।
हम बहेंगे, उसी धार में माँ! सदा,
आप जिस प्यार की धार में बह गयीं॥

मातु स्वीकारिये, आज श्रद्धा सुमन,
लोकसेवी बने ही रहेंगे सदा।
ब्राह्मणोचित रखेंगे, सदा आचरण,
लोकहित में लगे ही रहेंगे सदा।
लोकहित में सहेंगे सभी कष्ट हम,
लोकहित के लिए आप जो सह गयीं॥

मुक्तक-

आपका आँचल सुखद लगता, अधिक माँ स्वर्ग से,
आपकी गोदी हमें प्रिय है, अधिक अपवर्ग से।
भाव- संवेदन जगाते, आपके ही गान हैं।
आप ही माँ! धड़कते हैं, आप ही माँ! प्राण हैं॥

जीवन का तात्पर्य मानव जीवन से है, पशु- पक्षी जीवन से नहीं और संगीत से तात्पर्य केवल शास्त्रीय संगीत ही नहीं, बल्कि भाव संगीत, चित्र पट संगीत, लोक संगीत, आदि
से भी है।
साहित्य संगीत- कला साक्षात् पशुः पुच्छ- विषाण
- भर्तृहरि
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