गीत संजीवनी- 3

आओ- आओ सुहागिन नारि

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आओ- आओ सुहागिन नारि

आओ- आओ सुहागिन नारि, कलश सिर धारण करो।
आओ सीता, लक्ष्मी नारि, कलश सिर धारण करो॥

कलश के मुख में विष्णु जी सोहे, कण्ठ में लगकर शंकर मोहे।
ये जी ब्रह्मा सोहे मूलाधार- कलश.., तेरी चूड़ी अमर हो जाये॥

सात समुद्रों का निर्मल जल, सात द्वीप और पृथ्वी अंचल।
गंगा, यमुना की पावन धार- कलश.., तेरो ललना अमर हो जाये॥

चारों वेद का ज्ञान भरा है, वुसधा और संसार भरा है।
ये तो मन वांछित दातार- कलश..,तेरी बिंदिया अमर हो जाये॥

आओ माता बहनों आओ, कलश गीत सब मिलकर गाओ।
ये तो गायत्री सावित्री परिवार कलश.,तेरो कंगना अमर हो जाये॥

मुक्तक-
 
कलश धारण करो बहिनों, देव सब ही समाये हैं।
सभी नदियाँ व पावन तीर्थ, इसमें उतर आये हैं॥

परम सौभाग्य है उनका, जिन्होंने शीश पर धारा।
दिव्य वरदान देवों के, सहज ही बरस आये हैं॥
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