गीत संजीवनी-14

होली खेलो रे आज मिल

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होली खेलो रे आज मिल ऐसी होली, होली खेलो रे।
होली खेलो रे, होली खेलो रे, आज मिल ऐसी होली...॥

बालक हो बूढ़ा हो सुन्दर जवान हो।
नर हो या नारी हो कोई इन्सान हो॥
सबमें उमंगे जगा दो रे, होली खेलो रे॥

फेरी का ठेला या ऊँची दुकान हो।
भारी हवेली या कच्चा मकान हो॥
हमदर्दी सबमें जगा दो रे, होली खेलो रे॥

अक्खड़ जवान हो या फक्कड़ किसान हो।
भोला मजदूर हो या नेता महान हो॥
अपनापन सबमें जगा दो रे, होली खेलो रे॥

कोई हो जात- पाँत दूर या करीब हो।
धन का कुबेर हो या बिल्कुल गरीब हो॥
सबको गले से लगाओ रे, होली खेलो रे॥

हिन्दू ,यहूदी हो चाहे ईसाई हो।
गुरु का हो बन्दा या इस्लामी भाई हो॥
मानवता सबको सिखा दो रे, होली खेलो रे॥

चोरी की होरी को भ्रष्ट मुफ्तखोरी को।
दुष्ट- धूर्त शोषण को स्वार्थ जमाखोरी को॥
अपने ही हाथों जला दो रे, होली खेलो रे॥

प्रह्लादी निष्ठा को नरसी की साख को।
बलिदानी माटी की होली की राख को॥
अंग- अंग में आज रमा लो रे, होली खेलो रे॥

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