गीत संजीवनी- 3

अनुदान और वरदान प्रभो!

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अनुदान और वरदान प्रभो!

अनुदान और वरदान प्रभो, जो माँगे उनको दे देना।
गुरुदेव! हमें निज अन्तर की, पीड़ा में हिस्सा दे देना॥

यह दर्द बड़ा दुर्लभ है, ऋषियों की थाती है।
शुभ ज्योति जहाँ टिकती है, यह ऐसी बाती है।
इसके बूते ही संभव है, जग की पीड़ा को धो देना॥

सुख सुविधाओं से चाहो, भर दो जग की झोली।
आशीर्वाद की चाहो, खेलो खुलकर होली।
पर हमको आकर्षण देकर, यह माँग नहीं झुठला देना॥

इसको पाकर शूरों ने, हँस- हँस बलिदान किया।
इसको सेया संतों ने, जग का कल्याण किया।
मन नहीं चाहता है अपना, उस परम्परा को खो देना॥

अधिकार हमारा भी है, इन्कार नहीं करना।
जो हक समझो दे देना, उपकार यही करना।
इस बाजी पर रक्खा हमने, सुख, वैभव, सारा ले लेना॥

हम भले बुरे जो भी हैं, गुरुवर के कहाते हैं।
बदनाम न हो यह रिश्ता, सब भाँति मनाते हैं।
तुम पीर कहाते हो हमको, बे पीर कहाने मत देना॥

मुक्तक-


प्रभो! हम माया जनित- सुख साधनों का क्या करेंगे?
जो तुम्हारा प्रिय बनाये, साधना वह ही करेंगे?
बाँट दो उनको विपुल धन, स्वर्ग, यश जो माँगते हैं।
हम तुम्हारे हृदय की, संवेदना शुभ चाहते हैं।
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