गीत संजीवनी-5

जवानो! निरर्थक जवानी

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जवानो! निरर्थक जवानी नहीं है,
रगों का गरम रक्त पानी नहीं है।

तुम्हें दृष्टि चारों तरफ फेंकना है,
तुम्हें देश की हर दशा देखना है।
तुम्हें दैन्य- दारिद्र्य को रोकना है,
तुम्हें हर अनैतिक कदम टोकना है।

जवानी कि पुरुषार्थ की दास्तां है,
निरे कायरों की कहानी नहीं है॥

रहो तुम! रहें राष्ट्र के नयन गीले!
किसी निर्धना के न हों हाथ पीले।
मनुज दासता के न हों बन्ध ढीले!
रहें क्रूर, घातक प्रभा के कबीले॥

जवानों! तो फिर व्यर्थ है यह जवानी,
यह जि़न्दादिली की निशानी नहीं है।

लगी हैं तुम्हीं पर सभी की निगाहें,
बढ़ो थाम लो दीन- निर्बल की बाहें।
बनाना तुम्हें है नई आज राहें,
प्रगति के लिए चाहिए नव विधाएँ ॥

तुम्हीं देवता, स्वर्ग के हो सृजेता,
कि कोई कहीं देव- दानी नहीं है॥

जलाओ नहीं भोग की भट्टियों को,
गलाओ नहीं वज्र सी हड्डियों को।
करो क्षय न, अनमोल इन शक्तियों को,
जुटाओ नहीं व्यर्थ सम्पत्तियों को।

जवानों कि अनमोल है यह जवानी,
इसे कौड़ियों में गँवानी नहीं है।

रगों में तुम्हारी अमृतरस भरा है,
तुम्हीं ने तो संजीवनी रस झरा है।
चमन जिन्दगी का इसी से हरा है,
जवानों! तुम्हारा पसीना खरा है॥

तुम्हारी जवानी, नहीं ज्वार से कम,
अकारथ रगों की रवानी नहीं है।

मुक्तकः-

सुनो जवानी शक्ति स्रोत है-
तुमको इसे सफल करना है।
देश और सारी दुनियाँ की-
कठिन समस्या हल करना है॥

अलौकिक संगीत का एक दिव्य प्रवाह समूची सृष्टि में सतत संचरित होता रहता है। इसे अनाहत नाद कहते हैं।

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