गीत संजीवनी- 3

आज ऐसी कृपा आप कर

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आज ऐसी कृपा आप कर

आज ऐसी कृपा आप कर दीजिए,
प्राण में सिन्धु सा ज्वार भर दीजिए॥

प्राण में क्रांति के स्वर मचलने लगे,
भाव संवेदनाएँ उछलने लगे।

क्रांति की राह पर ये चरण चल पड़े,
और व्यवधान के शीश पर जा चढ़े॥
क्रांति में प्राण फूँके वे स्वर दीजिए॥

आत्मबल हेतु आध्यात्मिक क्रांति हो,
दूर अज्ञान हो, दूर भ्रम भ्रांति हो।

दोष से दुर्गुणों से मनुज बच सके,
दुर्व्यसन का नशे का न पंजा कसे॥
ज्ञान के पुंज प्रज्ञा प्रखर दीजिए॥

क्रांति पथ पर बढ़े हैं हमारे चरण,
शक्ति सम्बल प्रभो! आपका कर वरण।

क्रांति का शंख फूँके चले जायेंगे।
पर तभी आपकी जब कृपा पायेंगे,
दूर अज्ञान का सब तिमिर किजिए॥

हम न भूलें कभी भी तुम्हारे वचन,
साधना हेतु करते रहें नित यतन।

प्रिय लगे सर्वदा प्रभु तुम्हारे चरण,
नित्य अर्पित करें भाव श्रद्धा सुमन।
इन मनों को सुमन नाथ कर दीजिए॥

मुक्तक-

श्रद्धा भरे हृदय लेकर, हम आये तेरे द्वार हैं।
चरण कमल में भाव सुमन, अर्पित करने तैयार हैं॥

भेंट हमारी रुचे अगर, स्वीकार उसे प्रभु कर लेना।
हृदय क्रान्ति से भर देना प्रभु विनती बारम्बार है॥

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