गीत संजीवनी- 3

अगर हम नहीं देश के

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अगर हम नहीं देश के

अगर हम नहीं देश के काम आये।
धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा?

चलो श्रम करें देश अपना संवारें।
युगों से चढ़ी जो खुमारी उतारें॥

अगर वक्त पर हम नहीं जाग पाये।
सुबह क्या कहेगी पवन क्या कहेगा?

मधुर गंध का अर्थ है खूब महके।
पड़े संकटों की भले मार चहके॥

अगर हम नहीं पुष्प सा मुस्कराये।
व्यथा क्या कहेगी चमन क्या कहेगा?

बहुत हो चुका, स्वर्ग भू- पर उतारें।
करें कुछ नया, स्वस्थ सोचें विचारें॥

अगर हम नहीं ज्योति बन झिलमिलाये।
निशा क्या कहेगी भुवन क्या कहेगा॥
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