योग साधना की सतत् उपेक्षा के कारण पनपी आधुनिक युग की विकृत जीवन शैली के कारण रोगों की जैसे बाढ़ सी आ गई है। इनमें मनोकायिक एवं मानसिक रोगों की अप्रत्याशित वृद्धि स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट का कारण बनी हुई है। इनकी जटिल एवं सूक्ष्म प्रकृति के कारण आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इनके सामने असहायपन की स्थिति में पड़ा हुआ है। इस स्थिति में चिकित्सा विज्ञानियों का योग पद्धति की ओर मुड़ना स्वाभाविक ही है। योग अपनी समग्र एवं सूक्ष्म दृष्टि के कारण समग्र स्वास्थ्य का आश्वासन दे रहा है और इस दिशा में जो अनुसंधान अन्वेषण हुए हैं व हो रहे हैं, वे भी उत्साहवर्द्धक निष्कर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
मनोकायिक रोग मन की गहराइयों में पलते हैं व शरीर के धरातल पर प्रकट होते हैं। इस श्रेणी के रोगों में कुछ हैं- दमा, पेप्टिक अल्सर, क्रोनरी थ्रोम्बोसिस, अल्सराइटिस कोलाइटिस, मधुमेह, कैंसर, एंग्जाइटी न्यूरोसिस, हाइपरटेन्शन आदि। आधुनिक चिकित्सा पद्धति मात्र शारीरिक लक्षणों के आधार पर इनका उपचार करती है व इनके निदान में असफल प्रायः रहती है। इस संदर्भ में किए गए प्रयोगों के तहत यौगिक क्रियाओं को आशाजनक सफल पाया गया है।
हाइपरटेन्शसन आज का सर्वाधिक प्रचलित रोग है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत इसका कोई सटीक इलाज नहीं है। इसके अंतर्गत केटेकोमिन स्रावों की अधिकता रहती है। के.एन. उडुप्पा ने अपने गहन शोध अन्वेषण के अंतर्गत, शवासन की सरल यौगिक प्रक्रिया द्वारा इसका संतोष जनक उपचार पाया है, कुछ अन्य आसनों (शीर्षासन, भुजंगासन आदि) तथा प्राणायामों (सूर्यभेदन, चन्द्रभेदन, उज्जयी) को साथ जोड़ने पर इसमें अद्भुत परिणाम देखे गये हैं।
क्रोनरी थ्रोम्बोसिस, हाइपरटेन्शन की विकसित अवस्था है। इसकी प्रारम्भिक स्थिति में शवासन के नियमित अभ्यास को उपयोगी पाया गया है। क्राँनिक पेप्टिक अल्सर में एसिटाइकोलिन, हिस्टाँमिन तथा प्लाज्मा कार्टिसाल की मात्रा बढ़ी चढ़ी रहती है, जो कि तनाव से उत्पन्न होते हैं। उडुप्पा के अनुसार, इसकी प्रारम्भिक अवस्था में योगासनों को उपयोगी पाया गया है। इसी तरह अल्सराइटस कोलाइटिस में यौगिक क्रियाओं को संतोषजनक लाभप्रद पाया गया है।
एन्ग्जाइटी न्यूरोसिस एक अन्य प्रचलित व्याधि है। यह प्रायः चिंता करने वाले व अत्यधिक चिंतनशील व्यक्ति में पनपता है। इसके अंतर्गत रक्त में एसिटाइकोलिन की मात्रा बढ़ी-चढ़ी रहती है। इसके उपचार में आसन (शल्भासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, हलासन, पद्मासन आदि) तथा प्राणायाम (उज्जयी, अनुलोम विलोम) को विशेष लाभदायक पाया गया है। इसके अंतर्गत प्रारम्भिक योगाभ्यास 6 मास में ही अद्भुत परिणाम देखे गये हैं।
दमा आधुनिक चिकित्सा के लिए एक अन्य लाइलाज रोग है। योग उपचार को इसमें प्रभावी पाया गया है।
मधुमेह एक अन्य प्रचलित मनोकायिक रोग है। नियमित आसन व प्राणायाम (भस्मिका) को इसमें उपयोगी पाया गया है। इनके द्वारा रक्त में केटेकोलामिन की मात्रा घटती है, जो कि रक्तशर्करा बढ़ाने में जिम्मेदार होता है। अमेरिका के ‘यौगिक ट्रीटमेंट सेन्टर’ ने 300 मधुमेह रोगियों पर विशेष अध्ययन किया है। इसमें रोगियों का योगासनों व संतुलित आहार का उपचार दिया गया। तीन माह बाद रोगियों में आशातीत परिवर्तन देखे गए। 50' रोगियों के रक्तशर्करा की मात्रा में काफी कमी हो गयी थी। इसी तरह हृदय रोगियों पर भी कुछ आरम्भिक परीक्षण किए गए व काफी उत्साहजनक परिणाम उत्पन्न हुए। मेडिकल कॉलेज मद्रास के डॉ. लक्ष्मीकांत ने हृदय रोगियों पर योगासनों के प्रभाव का विशेष अध्ययन किया है। इस संदर्भ में हलासन, सर्वांगासन व विपरीतकरणी मुद्रा उपयोगी पाई गई है। इसी तरह प्रो. जुलियन ने शवासन को हृदयरोग में भी विशेष उपयोगी पाया है। विशेष आसनों को अपनाते हुए एक वर्ष के अन्तराल में तकलीफें काफी कम हो गई थीं। शोधकर्त्ताओं ने अर्थराइटस में भी योगासनों से विशेष लाभ देखा और अनुभव किया है।
कैंसर जैसे गंभीर रोग में भी योग की महत्त्वपूर्ण भूमिका पाई गई है। अमेरिका के एम.हाल ने इस संदर्भ में विशेष शोध कार्य किया है। उनके अनुसार यौगिक क्रियाओं द्वारा कैंसर से लड़ने वाली कुछ विशिष्ट कोशिकाओं (जैसे- टी एण्ड बी लिम्फोसाइट) की सक्रियता असाधारण रूप से बढ़ जाती है। ऐसे ही निष्कर्ष एम. एरिक्सन एवं ई रोसी ने ‘सजेस्टिव थैरेपी एक्सप्लोरेटरी केसबुक’ नामक शोध कृति में प्रस्तुत किए हैं।
आस्ट्रियाई अनुसंधान परिषद के स्टीफन सैडरसन ने लम्बे अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि यदि आसनों को नियमित रूप से किया जाय तो व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकता है। सैडरसन ने आसन-प्राणायाम द्वारा अनेक दमाग्रस्त रोगियों को ठीक किया है। इसके अतिरिक्त उनके अनुसार मधुमेह, मिर्गी, उच्चरक्तचाप एवं हृदय संबंधी प्राणघातक रोगों को भी योगाभ्यास से ठीक किया जा सकता है। चैकोस्लोवाकिया के एम.राँथ ने भुजंगासन को रक्तचाप एवं मानसिक तनाव में विशेष लाभकारी बताया है।
आसन व प्राणायाम के साथ ध्यान की प्रक्रिया को भी जोड़ने से योग समग्र स्वास्थ्य का वरदान बन जाता है। तनाव जन्य रोगों एवं मनोरोगों की आँधी आज जब थमने का नाम नहीं ले रही है, ऐसे में ध्यान एक प्रभावी उपचार के रूप में सामने आया है।
वाल्टर एवं ग्रीन ने माइग्रेन एवं तनाव से जुड़े सरदर्द में ध्यान द्वारा सफल उपचार प्रस्तुत किया है। प्रयोग के अंतर्गत लिए गए रोगियों में 81' रोग मुक्त हो गए थे। मिनिसोटा के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. डेविड डब्ल्यू ओर्मेजान्सन ने ‘आँटोनोमिक स्टैबिलिटी एण्ड मेडीटेशन’ नामक अपने शोध निष्कर्ष में बताया है कि ध्यान द्वारा तंत्रिका तंत्र में एक नई चेतना आती है। इससे त्वचा की बाह्य वातावरण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है तथा इससे वातावरण के तनाव, मनोकायिक रोग एवं तंत्रिका तंत्र के रोग आदि दूर हो जाते हैं। चिकित्सक जॉनसन ने ध्यान को हाइपोकोन्ड्रिया, सीजोफ्रेनिया, एन्ग्जाइटी जैसी तनाव जन्य मानसिक बिमारियों में असाधारण रूप से लाभदायक पाया है। इसी तरह डॉ. थयोफोर ने भी अपने अनुसंधान के अंतर्गत ध्यान के असाधारण प्रभावों को देखा। उनके अनुसार ध्यान व्यक्ति को घबराहट, उत्तेजना, मानसिक तनाव, मनोकायिक रोगों, एवं संकीर्ण स्वार्थपरता जैसे विकारों से मुक्ति दिलाकर एक स्वस्थ जीवन का उपहार देने में सक्षम है।
ध्यान से रक्त में विद्यमान अम्ल रूपी विष लेक्टेट की मात्रा में भारी कटौती होती है, इससे निरोगिता के अनेकों लाभों के साथ उच्च रक्तचाप का गहरा उपचार हो जाता है। इसी तरह फेफड़े का वायु प्रदेश के प्रति प्रतिरोध 20' तक घट जाता है, जिससे दमा के रोगियों को ध्यान भारी राहत दिलाता है। उपरोक्त संदर्भ में डॉ. श्रीनिवास ने ध्यान के अंतर्गत योगनिद्रा को बहुत उपयोगी पाया है। डॉ. फ्रैंक के अनुसार ध्यान द्वारा जीवनी शक्ति बढ़ती है, जिससे ‘इम्यून सिस्टम’ सशक्त होता है। इससे संक्रामक बिमारियों से सहज ही छुटकारा मिल जाता है। एलर्जी से ग्रस्त रोगियों में अधिकाँश इससे लाभान्वित हुए हैं।
इस तरह ध्यान का नियमित अभ्यास, तनावजन्य व्याधियों का सफल उपचार करता है। इम्यून तंत्र को सशक्त कर शरीर को स्वस्थ बनाता है व शाँत तथा स्थिर मनोभूमि का निर्माण कर मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है। आज यह सुनिश्चित सत्य है कि योग अपने नाम के अनुरूप न केवल आत्मा और परमात्मा के संयोग का सूक्ष्म विज्ञान भर है बल्कि यह स्वस्थ जीवन का समग्र विधान भी है। इसकी आसन, प्राणायाम व ध्यान जैसी प्रक्रियाएँ न केवल शारीरिक रोगों का उपचार करने में सक्षम है बल्कि मनोरोगों का भी सफल उपचार करती है व स्वस्थ जीवन का आधार प्रस्तुत करती है। इसी आधार पर योग मार्ग का सूक्ष्म पथ प्रशस्त होता है, जिसके अपने अवरोध हैं व तदनुरूप इसकी अपनी सूक्ष्म निवारण-निराकरण प्रक्रिया है।