मुझे तुम कब्र में कैद नहीं रख पाओगे

September 1999

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उस दिन पादरी डुप्रे दक्षिण अफ्रीका की केपटाॅउन स्थित राजकीय जेल में उस कोठरी में दाखिल हुए जहाँ वह कैद था। पादरी के हाथों में बाइबिल थी। पादरी को आते हुए देखकर वह अपने स्थान से उठकर खड़ा हो गये। कोठरी के द्वार पर दो सिपाही तैनात थे। कैदी युवक अपने स्थान से आगे बढ़ा और उसने पादरी के हाथ से बाइबिल ले ली और कहने लगा यह ग्रंथ मेरा जीवन है, मैं सदैव इसी के साथ जिया हूँ और मैं इसे हाथ में लेकर ईश्वर की सौगंध खाता हूँ कि मैंने पियरे विलियर्स की हत्या नहीं की। मैं एक निर्दोष और भोला भाला निरपराध व्यक्ति हूँ परंतु फिर भी मैं मृत्यु का वरण करने के लिये विवश हूँ। पादरी ने युवक के काँधे थपथपाये और वे भर्राए गले से बोले मुझे तुम पर विश्वास है मेरे बच्चे लेकिन मैं कुछ भी नहीं कर सकता। कानूनी फैसले के अनुसार आज तुम्हें फाँसी पर लटकाए जाने का निर्णय किया जा चुका है। कुछ ही देर बाद एक वरिष्ठ अधिकारी जेल बौर नियमानुसार औपचारिक दस्तावेज पढ़कर सुनाने लगा। इसमें दंडित व्यक्ति को यह स्मरण कराया गया था कि उसे यानि जॉन गेमार्ड को फाँसी पर लटकाए जाने की सजा सुनाई गई है क्योंकि उसने पियरे विलियर्स नामक एक खेतिहर मजदूर को उसका गला घोंट कर मार डाला था। क्या इस संदर्भ में तुम्हें कुछ कहना है इस पर कैदी ने उत्तर दिया हाँ मैं सर्वथा निर्दोष हूँ। परंतु उसका यह कथन सर्वथा अर्थहीन ही बना रहा और नवंबर ९८५३ की वह सुबह भी आ गई। उस दिन चारों ओर धूप खिली हुई थी। जॉन गेमार्ड नपे तुले कदमों से चलता हुआ फाँसी के फंदे के पास तक आया। उसके चेहरे पर भय की कोई भी शिकन तक ना थी। पादरी डुप्रे ने जैसे ही विधिविधान के मुताबिक़ धर्मोपदेश सुनाने आरंभ किए गेमार्ड ने उसकी ओर मुखातिब होकर कहा फादर इस काम में अपना समय बरबाद करने की तकलीफ आप ना करें, ये लोग मेरे शरीर को नष्ट कर सकते हैं लेकिन मेरी आत्मा को कोई नहीं मार सकता। इस दौरान फाँसी की कार्यवाही पुरी करने वाली ने उसे फाँसी का फंदा पहना दिया और फिर उसे कस डाला इस कार्यवाही के बाद थोड़ी देर में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये। लेकिन मृत्यु से पूर्व काले कपड़े में बँधा अपना सिर घुमाकर उसने कहा सुनो मुझे किसी भी कब्र में कैद नहीं रखा जा सकता समझे, किसी भी कब्र में नहीं क्योंकि मैं बेकसूर मारा जा रहा हूँ। फिर जैसे ही झटके के साथ रस्सा छोड़ा गया गेमार्ड का शरीर अधर में झूल गया। लगभग दो घटे बाद उसके सारे डॉक्टरी परीक्षण किये गये और नियमानुसार यह सुनिश्चित किया गया कि कानून द्वारा दी गई सजा के मुताबिक़ उसकी मृत्यु हो चुकी है। फिर उसके शव को एक सादी सी काले रंग की शव पेटी में रखा गया। हत्या का यह मामला जिसमें जॉन गेमार्ड को मृत्युदण्ड मिला था आम लोगों में चर्चा का विषय बन गया था, अतः अधिकारी भी इस ओर विशेष ध्यान देने के लिये मजबूर हो गए थे। उन्होंने फाँसीघर में जाकर बार बार यह सुनिश्चित किया कि गेमार्ड की शव पेटी को पर्याप्त रूप से कीलें ठोककर अच्छी तरह से बंद किया गया है या नहीं। उन्होंने इसका भी निरीक्षण किया कि शवपेटी को गाड़ी में रखे जाने से पूर्व अच्छे तरह सीलबंद कर दिया था। जब वे पुरी तरह से आश्वस्त हो गए तो शव को दफनाने के लिये कैदखाने के पीछे की ओर स्थित पार्ल पर्वत के ढलान पर ले जाये गये। सुरक्षाकर्मियों ने शव को आठ फुट गहरी कब्र में रख दिया फिर उस पर पत्थर चुनकर मजार बना दी गई। वरिष्ठ अधिकारी के आदेश के अनुसार कब्र के पास दो सुरक्षाकर्मी रात-दिन पहरे पर नियमित रूप से रहने लगे, ताकि कोई भी व्यक्ति शव को निकालने का प्रयत्न ना करे। यह पहरा लगातार दो महीने तक बिठाए रखा गया। इसी दौरान कुछ अन्य घटनाएँ उभरकर प्रकाश में आ रही थीं, जो इस असाधारण मामले को एक नया मोड़ दे रही थीं। हुआ यह कि जिस खेत में हत्या की गई थी, उसके मालिक ने मृतक पीयरे विलियर्स का बटुआ पीटरलॉरेंज नामक एक व्यक्ति के पास बरामद कर लिया था। यह व्यक्ति पशुओं की देखभाल का काम करता था। लॉरेंज ने भागने की कोशिश की तो उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया गया। जब उसके कमरे कि तलाशी ली गई तो उसके पास से मृतक की अँगूठी और घड़ी भी बरामद हुई। आखिरकार काँपते शब्दों में लॉरेंज ने स्वीकार किया कि पीयरे विलियर्स की हत्या उसी ने की थी। उसने पीयरे विलियर्स के गले में रस्से का फंदा डाल कर उसे घोट डाला था। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो गया कि न्यायालय ने एक बहुत बड़ी दुखद भूल की थी, जिसके कारण जॉन गेमार्ड को फाँसी के फन्दे पर लटकना पड़ा। इस पर गवर्नर ने आदेश दिया कि ग्रेमार्ड का नाम अपराधियों के लिस्ट से हटा दिया जाये और निर्दोष व्यक्ति की विधवा माँ को तत्काल एक हजार पाउण्ड बतौर मुआवज़ा दिया जाये और साथ ही यह भी कि जब तक वह जीवित रहे उसे १०८ पाउण्ड प्रतिवर्ष पेंशन के रूप में दिये जाएँ। गवर्नर ने यह आदेश भी जारी किये कि सरकारी खर्च पर जॉन गेमार्ड का शव कब्र से निकालकर किसी पवित्र स्थल पर दफनाने कि व्यवस्था की जाये। परिणामस्वरूप पार्ल पर्वत के उस ढलवाँ स्थल तक सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का दल पहुँचा, जहाँ केवल दो महीने पूर्व जॉन गेमार्ड का शव दफन किया गया था। उस समय दल के साथ जॉन गेमार्ड की पत्नी भी थी। सिपाहियों ने कब्र को खोद कर पत्थर हटाये। जॉन गेमार्ड कि पत्नी चुप चाप पास ही खड़ी यह सारा दृश्य देख रही थी। आखिर शवपेटी को बाहर निकाला गया। जेल के अधिकारियों ने शवपेटी का निरिक्षण किया और उसे शील बन्द पाया। फिर सुरक्षाकर्मियों ने शवपेटी को खोला तो सभी आँखें फाड़े आश्चर्य से देखते रह गये। वह खाली थी। आखिर शव कहाँ गायब हो गया? इसकी छान बीन शुरू कि गई। जाँच पड़ताल से पता चला कि दो महीने पूर्व जब उसे दफनाया गया था तब से लेकर आज तक लगातार सुरक्षाकर्मी यहाँ पहरा देते रहे। एक क्षण के लिये भी पहरा नहीं हटाया गया तब शवपेटी खाली क्यों है? क्या शव स्वयं उठ कर चुप चाप निकल गया? अथवा किसी ने जादू से उस शव को गायब कर दिया? इन्हीं प्रश्नों में उलझे कर्मचारी छान बीन करते रहे लेकिन शव का पता न चला। आखिर जॉन गेमार्ड का शव कब्र से लापता घोषित कर दिया गया। लगभग सौ वर्ष बाद १९५६ में पार्ल पर्वत के उसी ढलवाँ स्थल पर कुछ लोग पर्यटन के लिये आये तो उन्हें काफी ऊँचाई पर काले पत्थर की एक शीला नजर आयी जो उल्टी पड़ी हुई थी और उस पर कुछ खुदा हुआ था। उसे पढ़ा गया, लिखा था - जान गेमार्ड की पवित्र स्मृति, जो परमात्मा में लीन है, उस पर परमात्मा कि असीम अनुकम्पा है। यह शिला आज भी केपटाॅउन के संग्रहालय में सुरक्षित है और आज भी जान गेमार्ड के इस दावे का निरंतर स्मरण करा रही है कि उसे किसी कब्र में कैद कर के नहीं रखा जा सकता- सचमुच ईश्वर के सच्चे भक्तों के जीवन में प्रकृति कि समस्त चमत्कार सम्भव हैं।


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