जलयानों के प्रेतों के पीछे छिपे रहस्य

September 1999

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जड़ पदार्थों के भी प्रेत होते हैं क्या? इस संबंध में आए दिन चर्चा होती रहती और यह तर्क दिया जाता है कि मनुष्यों का प्रेत उसकी प्राणचेतना के कारण होता है। स्थूलशरीर के न रहने पर उसका प्राणिक शरीर ही प्रकट-प्रत्यक्ष होकर अपनी उपस्थिति का आभास दिलाता है। जड़ पदार्थ जब प्राणहीन है, तो उसका प्रेत कैसे हो सकता है?

इस प्रकार की दलील देने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि जड़ पदार्थ भी सर्वथा चेतनाविहीन नहीं होते। उनमें भी एक प्रच्छन्न चेतना मौजूद है। यही, स्थूल तत्वों के न रहने पर आकार ग्रहण करती ओर मूल संरचना की भ्राँति पैदा करती है। आए दिन इस प्रकार के कितने ही प्रसंग प्रकाश में आते और उपर्युक्त तथ्य को प्रमाणित करते रहते हैं।

ऐसी ही एक घटना एक डच जहाज से संबंधित है। कहा जाता है कि एक बार हेंड्रिक वानडर डेकन नामक डच कप्तान अपने जहाज को लेकर एम्सटरडम से ईस्टइंडीज के लिए रवाना हुआ। उसका उद्देश्य वहाँ जाकर व्यापार में आना भाग्य आजमाना था। गुड होप अंतरीप तक सब कुछ ठीक-ठाक रहा। इसके बाद उसका जहाज एक भीषण तूफान में फँस गया, जिससे उसके पाल के चीथड़े उड़ गए और जलयान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। इसके उपरांत वह देर तक तैरता न रह सका और डूब गया, उसके साथ ही कप्तान की भी मौत हो गई। तब से लेकर अब तक अनेक लोगों ने अनेक अवसरों पर उस जलयान को तूफान में घिरा, थपेड़ों से जूझता हुआ देखा है। दृश्य इतना जीवंत होता है कि कई बार लोग उसे सचमुच का जहाज समझकर सहायता के लिए बढ़ते देख गये हैं, किंतु दूसरे ही पल सब कुछ सामान्य नजर आता है और लोग हैरान रह जाते हैं। उनकी समझ में यह नहीं आता कि कुछ क्षण पूर्व जो कुछ दिखाई पड़ा, वह भ्रम था या वास्तविकता? ऐसी मान्यता है कि यान का यह प्रेत जिस किसी को दिखलाई पड़ जाता है, जल्द ही वह संकट में फँस जाता है।

उक्त दृश्य को ब्रिटिश जहाज एच. एम. एस. इलकाँन्सटैंट के नाविकों ने भी देखा था, जिसे तब लॉग बुक में दर्ज कर लिया गया। उसके साथ के दो और जलयानों ने भी उसे देखा था। इनमें से एक, जिसे उस यानप्रेत के बारे में जानकारी नहीं थी, सहायता के लिए जब उस ओर बढ़ा, तो देखते-देखते सब कुछ ओझल हो गया। कहते हैं कि इस जहाज के कप्तान को उसके तुरंत बाद अचानक मौत हो गई।

यों तो दुर्भाग्यग्रस्त यान का वह भूत अक्सर दिखाई पड़ता रहता है, पर अब तक वह सिर्फ समुद्री यात्रियों को ही दृष्टिगोचर होता रहता था, लेकिन सितंबर १९४२ में वह पहली बार स्थल के लोगों को दृष्टिगोचर हुआ। केपटाउन के मॉल प्वाइंट स्थित मकान में ग्लेन मिलर अपने तीन मित्रों के साथ बालकनी में बातचीत कर रहे थे, तभी उनकी दृष्टि समुद्र की ओर गई। उनने देखा कि एक बहुत पुरानी किस्म का जहाज लहरों में उलझकर बुरी तरह हिचकोले खा रहा है। जाल की धज्जियाँ उड़ गई हैं और यान भी सुरक्षित नहीं बच पाया है। उसके कई हिस्से टूट चुके हैं तथा वह टेबल की खाड़ी की ओर बढ़ रहा है। वे लोग उसे लगभग १५ मिनट तक देखते रहे। उसके बाद वह अकस्मात् न जाने कहाँ अदृश्य हो गया।

इस घटना के तीन वर्ष पूर्व सन १९३९ के मार्च महीने में भी यह यान-प्रेत करीब शताधिक लोगों द्वारा देखा गया था। ये लोग केपटाउन के दक्षिण पूर्व में स्थित फाँल्स की खाड़ी में ग्लेनकेयर्न के समुद्री तट पर धूपस्नान ले रहे थे, तभी मस्तूल पाल से सुसज्जित एक जहाज खाड़ी में आत दीख पड़ा। वह वहाँ से सीधा आगे बढ़ गया। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था, मानो वह दूर के किसी पृथक तट की ओर जा रहा हो। अभी वह थोड़ी ही दूर बढ़ा था कि शाँत समुद्र में भयंकर ऊर्मियाँ उठती दिखाई देने लगीं। आश्चर्य की बात यह थी कि वह तरंगें जहाज के आसपास के थोड़े-से क्षेत्र में ही उठती नजर आ रही थीं, शेष संपूर्ण हिस्सा शाँत था। अभी वे कुछ समझ पाते कि इतने में ही वह यान गायब हो गया। इसके साथ ही जहाज के करीब के जल की अस्थिरता भी समाप्त हो गई।

इस प्रकार के यानप्रेत विश्व के दूसरे भागों में भी देखे गए हैं। यह यान-प्रेत मानवीप्रेत की भाँति ही भले-बुरे दोनों होते हैं। बुरे प्रेत दूसरों की जान के लिए खतरनाक होते हैं, जबकि अच्छी प्रकृति के यानप्रेत सिर्फ दर्शन-झाँकी देकर तिरोहित हो जाते हैं।

‘लेडी लोवीबाँण्ड’ यान का प्रेत ऐसा ही था। ब्रिटेन का यह जहाज १८ वीं सदी में १३ फरवरी के दिन गुडविन, लंदन में प्रस्थान करके ओरपोर्टो, पुर्तगाल जा रहा था। जहाज के कप्तान की अभी-अभी शादी हुई थी। उसके साथ उसकी पत्नी तथा कुछ और संबंधी थे। कप्तान का एक मित्र भी उसमें सवार था। कहा जाता है कि वह कप्तान से ईर्ष्या करता था। विवाह के बाद उसका द्वेष और बढ़ गया। उसने अच्छा मौका जानकर जहाज में उसकी हत्या कर दी और संपूर्ण जहाज को गुडविन में डुबो दिया। तब से हर पचासवें वर्ष ‘लेडी लोवीबाँण्ड’ का भूत इंग्लिश चैनल के गुडविन तट पर दिखलाई पड़ जाता है। वह पचास वर्ष के अंतराल पर ही क्यों दृष्टिगोचर होता है, यह रहस्य अभी भी अनसुलझा है। एक मान्यता के अनुसार जिस दिन यान पुर्तगालयात्रा पर जा रहा था, उस दिन उसके निर्माण के पचास वर्ष पूरे हो रहे थे। शायद इसलिए वह अपनी स्वर्ण-जयंती क याद में आधी-आधी शताब्दी पर प्रकट होता हो। इसमें कितनी सच्चाई है, कुछ कहा नहीं जा सकता।

उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार दुर्घटना के बाद यह पहली बार १३ फरवरी १७९८ में प्रकट हुआ। तब घटना के पचास वर्ष पूरे हो रहे थे। दर्शकों ने देखा कि एक तीन मस्तूलों वाला जहाज गुडविन की ओर चला आ रहा है। उसके अंदर से नाचने-गाने की आवाजें आ रही थीं, जिसमें एक स्त्री स्वर भी था। इसे उसके पीछे-पीछे आ रही मछली पकड़ने वाली नौका के मछुआरों ने स्पष्ट सुनी। नाविकों का कहना है कि वह गुडविन के बलुआही किनारे की ओर तेजी से बढ़ रहा था। कुछ देर उपराँत वह तट की बालू से जोर से टकराया और टूट गया। इसके साथ ही यान अंतर्ध्यान हो गया।

वही दृश्य पुनः १३ फरवरी १८४८ में देखा गया। इस बार वह गुडविन तट से कुछ दूर जलमय प्रकट हुआ और ओरपोर्टो की ओर जाता दृश्यमान हुआ। उसके पीछे लगभग आधे किलोमीटर के फासले पर एक अन्य जलपोत चला जा रहा था। करीब दस मिनट पश्चात यात्रियों ने जब पुनः उस ओर दृष्टि दौड़ाई, तो दूर-दूर तक उसका कहीं पता नहीं था। उसके डूबने के भी कोई अवशेष नहीं थे। उसकी ओर से संकटकालीन सहायता की भी माँग नहीं आई। उससे स्पष्ट है वह ‘लेडी लोवीबाँण्ड’ का ही भूत होगा, ऐसा यानयात्रियों का मत था।

१३ फरवरी १८९८ में वह फिर दृष्टिगोचर हुआ। इस समय उसकी अवस्थिति डील, केंट में थी। इंग्लैंड का यह तट गुडविन से दूर है। इस बार भी वह पूर्व की भाँति अकस्मात् विलुप्त हो गया। इसके पश्चात १३ फरवरी १९४८ को इसकी पुनरावृत्ति इसलिए नहीं देखी जा सकी, कारण कि उस रोज मौसम खराब था और गुडविन एवं आसपास के संपूर्ण क्षेत्र में धुँध छाया हुआ था। पिछले वर्ष फरवरी में एक बार फिर अपनी झाँकी दिखाकर जलपोत के प्रेत ने यह प्रमाणित कर दिया कि हर पचासवें वर्ष से उसका गहरा संबंध है।

ऐसा ही एक अन्य यानप्रेत रोड द्वीप के आसपास प्रायः दिखाई पड़ता है। कहते हैं कि यह ‘पैलेटाइन’ नामक जहाज का भूत है। १८वीं सदी के मध्य में उत्तरी अमेरिका का यह जलपोत हालैंड से चलकर फिलाडेल्फिया जा रहा था। चार दिन बाद तूफान में फँसकर रास्ता भटक तथा जहाज के कप्तान की इस विपदा में मृत्यु हो गई। यात्रीगण इस आकस्मिक विपत्ति से भयभीत हो उठे। इसी अवस्था में उनने जैसे-तैसे क्रिसमस डे मनाया। उसके दो दिन पश्चात यान ब्लैक द्वीप की एक चट्टान से जा टकराया और ज्वार-भाटों के थपेड़ों के कारण टूटने लगा तूफान की तीव्रता जब कुछ शाँत हुई, तो वह पुनः चट्टान से फिसलकर समुद्र में खिसकने लगा, लेकिन ऐसा होने से पूर्व ही स्थानीय मछुआरों ने जहाज को लूट लिया। इसके बाद सभी यात्रियों को नीचे उतारकर उसमें आग लगा दी। दुर्भाग्यवश एक महिला यात्री उसमें छुपी रह गई। यान जब आग ही लपटों से पूरी तरह घिर गया और समुद्र में बहने लगा, तो सबने देखा कि व हडेक में खड़ी होकर बुरी तरह चीख रही और सहायता के लिए मनुहार कर रही थी, किंतु उसे बचाया नहीं जा सका और पोत के साथ ही जलकर मर गई। तभी से लपटों में घिरा यान का वह प्रेत समय-समय पर न्यू इंग्लैंड के समुद्री तट पर प्रकट होता रहता है।

जो बीत गया उसे ‘भूत’ कहते हैं, फिर वह चाहे प्राणी हो या पदार्थ अथवा काल सब उसी श्रेणी में आएँगे। मनुष्यों की प्रेतस्थिति के विषय में अभी भी कइयों के मन में असमंजस है, कई उनका अस्तित्व नहीं मानते, किंतु घटनाक्रम बताते हैं कि जड़ भी निष्प्राण नहीं होते। चेतना का कुछ अंश उनमें भी विद्यमान होता है। पदार्थों के प्रेतों को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए एवं इस विधा को एक विराट परिप्रेक्ष्य में रखकर समझना चाहिए। ऐसा आज के चेतनाविज्ञानियों का मत है।


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