विलियम वेडर बर्न हिंदुस्तान में अपने पिता के साथ कोई ऊँचा सरकारी पद पाने आए। वह उन्हें मिला भी। अपनी प्रतिभा के कारण उन्हें ‘सर’ की उपाधि भी मिली, पर भारतीयों की दरिद्रता और शोषण को देखकर उनका मन पिघल गया। नौकरी छोड़ दी और जनजागरण के काम में लग गए। पहला काम उनने राष्ट्रीय काँग्रेस को जन्म देने और समर्थ बनाने का किया। वे मि. ह्यूम के दाहिने हाथ बन गए। जो काम उनने किया उसके अनुसार वे देश के मूर्द्धन्य नेता बने। उन्होंने सच्चे अर्थों में भारतीय नागरिकता स्वीकार की। इंग्लैंड की पार्लियामेंट में वे भारत के प्रतिनिधि की हैसियत से सदस्य चुने गए। काँग्रेस के दो बार अध्यक्ष रहें। अँग्रेज अपने शासन की नींव कमजोर करने वाला कहकर उन पर तरह-तरह के लाँछन लगाते थे, पर वे अपनी प्रतिज्ञा पर आजीवन अडिग रहे। उनने न्याय का पक्ष लिया, बिरादरी का नहीं। वे स्वयं को किसी देश विशेष का नहीं, समस्त विश्व का नागरिक करते थे।