लाला जी अपने समय के माने हुए वकील व काँग्रेस के नेता थे। संध्याकाल ताँगे में जरूरी काम से जाना था। कोचवान ताँगे की बत्ती जलाने लगा। असावधानी के कारण माचिस की तीन तीलियाँ बुझ गयी। लाला जी ने कोचवान को डाँटा और कहा-इतनी फिजूल खर्ची करते हो, पैसे की कीमत नहीं समझते। लाहौर में अनाथालय बन रहा था। कमेटी के सदस्य लाला जी चंदा माँगने आये थे। दो कारणों से झिझक रहे थे-एक तो वे जाने की तैयारी में थे, दूसरे इतने किफायतसार कि तीन तीलियों को खर्चने भर का ध्यान रख रहे थे। पास खड़े लोगों से आने का कारण पूछा, तो उनने अनाथालय खुलने और उसके लिए चंदा एकत्रित करने की बातें कर दी। लाला जी ने दस हजार रुपये का चेक काट दिया। माँगने वालों में से एक ने आश्चर्य व्यक्त किया। आपकी तीन तीली जलने पर डाँटने की कंजूसी से हमें अचम्भा हो रहा था कि आप कुछ दे पायेंगे कि नहीं। पर आप ने तो इतनी बड़ी राशि दे दी। लाला जी ने कहा-ऐसी किफायतसारी स्वभाव में लाने के कारण कि इतना बचा पाया कि आपकी कुछ सेवा हो सकी।