दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ (Kahani)

November 1997

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‘लाइकेन’ जीवशास्त्रं का ऐसा शब्द है जो प्रकृति में सहजीवन को स्पष्ट करता है । देखने में तो लगता है कि कुकुरमुत्ता जिस पेड़ पर उगा है, वही उसका शरणदाता है, पर तथ्य इसके विपरीत ही है । इसके कोमल तने के अन्दर जल शैवाल नाम का कोश समुदाय निवास करता है । वह कुकुरमुत्ते के भीतर न केवल सुरक्षित रहता है, अपितु क्लोरोफिलयिहीन कुकुरमुत्ते को इस उपकार के बदले प्रकृति से जीवन तत्व खींचकर देता है, जिससे उसका भी विकास होता रहता है । ऐसा ही सम्बन्ध कर्कट ( ष्टह्ड्डड्ढ ) और सी-एनीमेन में पाया जाता है । कर्कट इन्हें पीठ पर लादे घूमता है । बदले में यह कर्कट की जीवनरक्षा में सहायक होता है । कर्कट जीव इससे बहुत दूर रहते हैं । यह परस्पर सहकार का चमत्कार है ।

यह सहयोग एवं सहकार का सद्भाव ही है, जिसके कारण परमात्म चेतना का विश्व-उद्यान हरा-भरा दीखता है। मनुष्य जैसे भावनाशील प्राणी के लिए यही उचित है कि वह अपनी संकीर्ण मनोवृत्तियों से ऊपर उठकर सबके प्रति दया, करुणा और आत्मीयतापूर्ण सम्वेदना से ओत-प्रोत हो, परमपुरुष के उद्यान को पुष्पित-पल्लवित करने में उसका हाथ बँटाए ।-दृश्य जगत की अदृश्य पहेलियाँ ( वाङ्मय क्र. 55 )


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