मन की कुसंस्कारों को छुपाना (Kahani)

November 1997

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हिटलर युवावस्था में साहसी, धीर और वीर प्रकृति का व्यक्ति था, किन्तु अपनी महत्त्वाकाँक्षाओं से प्रेरित होकर जब उसने हिंसा बरतनी शुरू की, हजारों निरीह व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया, तो दूसरों का जितना अनर्थ हुआ, इससे अधिक उसने अपना पतन कर लिया । 1945 में जबकि उसे आत्मरक्षार्थ एक बंकर में भूमिगत होना पड़ा, तब उसकी स्थिति यह थी कि वह अपने बड़े से बड़े विश्वासपात्र को भी सन्देह से देखता । वह इतना भयभीत रहता था कि ताजी हवा लेने के लिए बंकर से ऊपर भी नहीं आता था । मार्शल गोरिंग को उसने जर्मन सेना का प्रधान सेनापति अपना वफादार जानकर नियुक्त किया था, उसने विद्रोह किया भी नहीं था, पर उसने ग्रीस से उसके देशद्रोही होने की बात कही । ग्रीस सारी स्थिति जानता था, पर भयवश खुद भी सच्ची बात नहीं कह सकता था । हिटलर का मानसिक सन्ताप इतना अधिक बढ़ गया था कि उसके पैर में लकवा मार गया । दो दिन पूर्व तक उसके बाल काले थे, पर एक दिन में ही उसके बाल सफेद कैसे पड़ गये ? इस बात पर स्वयं उसकी प्रेमिका इवा और गोबेल की पत्नी भी चकित हो उठी थीं । अन्ततः अपनी मानसिक स्थिति नियन्त्रण से बाहर पाई, तो हिटलर को आत्म-हत्या ही उससे बचने का एकमात्र उपाय सूझा और उसने आत्महत्या कर ली ।

मन की कुसंस्कारों को छुपाना पाप का भी पाप है । इसलिए भारतीय आचार्यों ने निष्कासन तप का सिद्धान्त बनाया था । लोगों को चांद्रायण कराते समय उनसे सारे पाप कबूल कराये जाते थे । देखने में प्रायश्चित्त कर्ता को अपना स्वाभिमान-सा नष्ट होता दीखता है, उससे औरों की हँसी का डर भी रहता है, किन्तु भूलें स्वीकार कर लेने से मन में जो गाठें पड़ सकती थीं, पड़ने से बच जाती हैं और मनुष्य एक व्यवस्थित जीवन के लिए, शुद्ध, संस्कारी जीवन के लिए तैयार हो जाता है ।

-प्रसुप्ति से जाग्रति की ओर (वाङ्मय क्र. 7)


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