सिद्धिदात्री सामर्थ्य है सविता देवता की साधना में

November 1997

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शास्त्रों में उल्लेख आता है कि एक बार देवताओं ने प्रजापति ब्रह्मा के पास जाकर प्रश्न किया कि पितामह! टाप कहते हैं कि गायत्री उपासना करने वालों के सब साँसारिक कष्ट दूर हो जाते हैं तथा उसे लोक परलोक में सुख शान्ति तथा सद्गति मुक्ति प्राप्त होती है पर आपने यह नहीं बताया कि इस प्रकार की महान सामर्थ्य वाली सत्ता कौन है?

इसके उत्तर में प्रजापति कहते हैं -हे देवताओं ! यह जो अनेक प्रकार के अनुदान वरदान देने वाली गायत्री महाशक्ति है उसे तत सावित्री अर्थात् सविता देवता से उद्भासित होने वाला ज्ञान जानों। संक्षेप में वहाँ सृष्टि विज्ञान की भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही प्रक्रियाओं का स्पष्ट संकेत किया गया है। और भी शास्त्रों में कई स्थानों पर ऐसा उल्लेख आता है कि गायत्री प्रकाश तेज अग्नि और शक्ति रूप है । तीनों काल उसी की शक्ति से गतिशील है। इस महाशक्ति के सम्बन्ध में कहा गया है।

स्विता सर्वभूतानाँ सर्वभावाष्च सूयत। सर्वनात्प्रेरणाच्चैव सविता तेन चोत्यते॥

अर्थात् समस्त तत्वों सभी प्राणियों और समस्त भावनाओं की प्रेरणा देने के कारण ही उस शक्ति को सविता कहा गया है। प्रतीक रूप में सविता देवता की प्रतिमा को सूर्य माना गया है। यह सविता देवता का स्थूल प्रतीक है। सविता उससे भी सूक्ष्म है। उसकी शक्ति सामर्थ्य और विशेषताओं को समझने के लिये सूर्य के सम्बन्ध में जान समझ लेना आवश्यक होगा। सर्वविदित है कि सूर्य ही तत्व रूप से सम्पूर्ण भौतिक और जागतिक पदार्थों की गति तथा सक्रियता का कारण है। उस प्रतीक में सविता देवता के भावना रूप और प्राण रूप होने की भावना भी स्थापित की गयी है और बताया गया है कि वहीं सम्पूर्ण प्राणियों एवं मनुष्यों को शक्ति प्राण और प्रकाश देकर भावनात्मक विकास में सहायक होती है। इस सम्बन्ध में कुछ अधिक जानने विश्लेषण करने का प्रयत्न नहीं किया गया अन्यथा प्रतीत होता कि ऋषियों और तत्वदर्शियों की यह गवेषणाएं पूर्ण वैज्ञानिक एवं सत्य है। जा बातें उन्होंने लाखों वर्श लिख दी थी, विज्ञान भी आज उनकी सत्यता की साक्षी देने लगा है।

सविता देवता के स्थूल भाग का बहुत थोड़ा भाग ही वैज्ञानिक अभी जान पाये है पर जो कुछ जाना जा सका है। वह भी भारतीय मान्यताओं के प्रतिपादन की दृष्टि से कम नहीं है। स्थूल दृष्टि से सूर्य आग का एक विराट तप्त गोला दिखाई देता है। अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार नदी के तेज प्रवाह में जिस प्रकार भंवर पड़ते हैं उसी प्रकार सूर्य के गरम द्रव्य में भी तेज भंवर पड़ते हैं ओर उससे हजारों मील लम्बी आग की लपटें सोलर फ्लेयर्स उठती है सूर्य के उसी प्रकाश पुँज से पृथ्वी में जीवित प्राणियों व वनस्पतियों को जीवित रहने के लिये आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है तथा पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य ग्रह गोलकों का वातावरण व परिस्थितियाँ विनिर्मित होती है।

धरती ही नहीं पूरे सौरमण्डल में जिस किसी भी ग्रह नक्षत्र पर जीवन का अस्तित्व है सूर्य ही उसका आधार है। सभी प्राणी सूर्य से ही शक्ति ग्रहण करते हैं और उससे प्राप्त उस ऊष्मा के बल पर ही जीवन जीते हैं। जिस ताप क्रम पर मनुष्य तथा अन्य जीव जन्तु रहते हैं वह सूर्य के कारण ही स्थिर और सन्तुलित रहता है। प्राचीन ऋषियों ने इसलिये सूर्य को जीवन दाता और सृष्टि का प्राण कहा है वैदिक ऋषि का स्पष्ट उद्घोषक है सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुशष्च अर्थात् सूर्य समस्त संसार की जड़ चेतन वस्तुओं की आत्मा है। इस सम्बन्ध में छान्दोग्योपनिषद् 3-19-3 का कथन है आदित्यो ब्रहोत्यादेषस्स्यों पव्याख्यानम सदेवेदमग्र आसीत अर्थात् भू से द्यु तीनों लोकों को अपनी रश्मियों से जीवन देने वाले सूर्य सबकी आत्मा है। जीवनदाता और सृष्टि का प्राण सूर्य वैज्ञानिकों के अनुसार आकाश में दिखाई देने वाले असंख्य तारों में से एक है।

यों आकाश में असंख्य ग्रह नक्षत्र है और वे सभी अपनी न्यूक्लियर एनर्जी नाभिकीय ऊर्जा का सृजन अपने आप करते हैं पर मूल रूप में वे सब अपने अपने सूर्य की ऊर्जा पर जीवित है। अपने सौरमण्डल का सूर्य प्रति सेकेण्ड चार सो ट्रिलियन ऊर्जा गर्मी प्रकाश और विद्युत फेंकता रहता है। इसके भीतरी भाग का ताप दो करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड है। सूर्य के मध्यभाग में केवल नाभिक कण होते हैं और उनमें इतनी तीव्र हलचल मची रहती है कि उसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती। स्वरूप समझने के लिये कहा जा सकता है कि बाढ़ आने पर जब तेज बहते नदी के पानी में जिस प्रकार भंवर पड़ते हैं और वहाँ के पानी में जैसा मंथन होता रहता है कुछ उसी प्रकार का मंथन सूर्य के इस भाग में केवल नाभिक कण ही होते हैं ,इन पर किसी प्रकार का आवरण नहीं होता । न्यूट्रान इलेक्ट्रानों को भगाते रहते है और स्वयं प्रोट्रान अथवा धन विद्युत के आवेश में बदलते रहते हैं। इसी से द्रव्य का रूपान्तर होता है अर्थात् हाइड्रोजन हीलियम में बदलता रहता है और उससे ऊर्जा सृष्टि का संचालन करती रहती है।

इस शक्ति का हजारवाँ भाग ही पृथ्वी के प्राणियों की जीवनी शक्ति सुदृढ़ बनाने तथा पोषण करते रहने के काम आता है शेष भाग से पृथ्वी की विभिन्न गतिविधियों तथा मौसम नदियों का प्रवाह पहाड़ों की स्थिरता समुद्र और वर्षा आदि का नियंत्रण होता है। पृथ्वी पर सूर्य की किरणें एक समान नहीं पड़ती, इसलिये मौसम भी पृथ्वी के भिन्न भिन्न भागों पर भिन्न भिन्न तरह का होता है। यथा जून के महीने में उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है। उस समय उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है। उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका रहता है। इसलिये दिन रात की तुलना में अधिक लम्बे होते हैं। उत्तरी ध्रुव के निकट तो उन दिनों दिन चौबीस घण्टे तक का होता है। इसके विपरीत इन्हीं दिनों दक्षिणी ध्रुव में सदियों का मौसम होता है क्योंकि वह उत्तरी ध्रुव से एकदम विपरीत दिशा में होता है। दक्षिणी ध्रुव सूर्य से परे होने के कारण वहाँ के दिन रात की तुलना में काफी छोटे होते हैं और कई बार तो रातें चौबीस घण्टे लम्बी होती है। इस अवधि में सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्द्ध की सतह पर सीधी पड़ती है विशेषकर कर्क रेखा पर लम्बवत रूप में पड़ती हैं। मकर रेखा पर उन दिनों सूर्य की किरणें सीधे न पड़कर कोण बनाती हुई पड़ती है इससे वहाँ पर उनका ताप कम मात्रा में पहुँचती है 22 दिसम्बर को उत्तरी गोलार्द्ध में गर्मियाँ होती है इन दिनों उत्तरी ध्रुव सूर्य से हटा होता है और इस कारण उत्तरी गोलार्द्ध के दिन छोटे होते हैं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बड़े । इन दिनों दक्षिण गोलार्द्ध में मकर रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत रूप में पड़ती है और उत्तर में कर्क रेखा पर कोण बनाती है। मार्च के महीने में उत्तरी गोलार्द्ध पर वसन्त ऋतु होती है। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों ही सूर्य की ओर रात हर स्थान पर प्रायः बराबर होते हैं। इसी प्रकार पृथ्वी के झुकाव और गति के कारण जब जहाँ जिस स्थान पर सूर्य की किरणें जिस रूप में पहुँचती है उसी के अनुसार मौसम बदलता रहता है।

मौसम ही नहीं पृथ्वी पर पायी और उपयोग में लाई जाने वाली विभिन्न शक्तियों का स्त्रोत भी सूर्य ही धरती पर धूप कोयला, लकड़ी या ईंधन पेट्रोलियम पदार्थ, पानी, वायु, विद्युत आदि ऊर्जा के जितने भी रूपान्तर है उन सभी का स्त्रोत सूर्य ही है । इस संदर्भ में पूर्व सोवियत रूस के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डा. जी. ए. उषाकोव ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में कुछ नये तथ्य प्रतिपादित किये है। उनका कहना है कि जीवन का आधार माने जाने वाली आक्सीजन वायु तक पृथ्वी की अपनी उपज अथवा संपत्ति नहीं है। यह सूर्य से प्राण रूप में प्रवाहित होती हुई चली आती है और धरती के वातावरण में यहाँ की तात्त्विक प्रक्रिया के साथ सम्मिश्रित होकर प्रस्तुत आक्सीजन बन जाती है यदि सूर्य अपने उस प्राण प्रवाह में कटौती कर दे अथवा पृथ्वी ही किसी कारण उसे ठीक तरह ग्रहण न कर सके तो आक्सीजन की न्यूनता के कारण धरती का जीवन संकट में पड़ जायेगा। पृथ्वी से 62 मील ऊँचाई प्राण का आक्सीजन रूप में परिवर्तन आरम्भ होता है यह आक्सीजन बादलों की तरह चाहे जहाँ नहीं बरसता रहता वरन् वह भी सीधे उत्तरी ध्रुव पर आता है और फिर दक्षिणी ध्रुव पर आता है और फिर दक्षिणी ध्रुव के माध्यम से समस्त विश्व में वितरित होता है। ध्रुव प्रभा में रंग बिरंगी झिलमिल का दीखना विद्युत मण्डल के साथ आक्सीजन की उपस्थिति का प्रमाण है।

खगोल विद्या की नवीनतम शोधों से भी अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि सूर्य से ध्रुव प्रदेशों पर बरसने वाले गति प्रवाह अत्यन्त प्रभावशाली व सामर्थ्य वान होते हैं और उनमें प्राणियों तथा पदार्थों को प्रभावित करने की प्रचण्ड क्षमता होती है। यह तथ्य उस ऋषि वाक् की पुष्टि करते हैं जिसमें कहा गया है कि सविता वै प्रसवानामीषे अर्थात् सबको उत्पन्न करने वाला परमेश्वर सविता देवता सूर्य ही है। सूर्य से उत्सर्जित होने वाली प्रचण्ड शक्ति अपने प्रभाव समेत पदार्थों में भी समासीन हो जाती है। यही कारण है कि स्वास्थ्य संरक्षण के लिये सूर्य प्रकाश के सान्निध्य में अधिकाधिक रहना आवश्यक माना गया है। विभिन्न शोध अनुसंधानों से अब यह प्रमाणित हो गया है कि स्वस्थ रहने के लिये सूर्य का प्रकाश भोजन और जल से भी अधिक आवश्यक है । शरीर को पर्याप्त धूप मिलने से रक्त में लाल कणों की मात्रा आवश्यक रूप से संरक्षित रहने लगती है। यदि ऐसा न हो सूर्य का प्रकाश न मिले तो यह मात्रा घटने लगती है और उनमें जलतव बढ़ने लगता है। फलस्वरूप रक्ताल्पता तथा रक्त सम्बन्धी अन्यान्य विकार पैदा होने लगते हैं। जीवधारियों का जीवन सूर्य प्रकाश से कितने घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध रहता है, इसका एक उदाहरण पेड़ पौधे भी हो सकते हैं। यदि किसी पौधे को सूर्य के प्रकाश से वंचित कर दिया जाय तो प्रकाश संश्लेषण के अभाव में उसकी जैविक क्रिया मंद पड़ जाती है और वह क्षीण तथा म्लान होने लगता है। इस सम्बन्ध में किये गये अध्ययन अनुसंधानों के अनुसार घिचपिच रूप से बसे शहर की सघन गलियों और संकरे प्रकाश रहित स्थानों में खुले स्थानों की अपेक्षा अधिक लोग बीमार पड़ते हैं तथा अल्पायु में ही काल कवलित हो जाते हैं।

ठस संदर्भ में अमेरिका क मूर्धन्य वैज्ञानिक डा. नील बर्नहाट ने वर्शा गहन शोध के बाद निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुये बताया है कि सूर्य के प्रकाश से मनुष्य शरीर का विद्युतीकरण होता रहता है । उनके अनुसार सूर्य की शक्तिवर्धक किरणों के संपर्क में आकर मनुष्य के शरीर में एक विद्युतमय चुम्बकीय प्रवाह बहने लगते हैं। पृथ्वी तो स्वयं एक महाचुम्बकत्व है ही।

शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले सूर्य शक्ति के प्रभाव के अतिरिक्त मनुष्य के व्यक्तित्व पर भी उसका असाधारण प्रभाव पड़ता है। कहा जा चुका है कि सूर्यलोक से जो शक्ति अपनी जिस प्रचण्डता के साथ पृथ्वी पर आती है उसी प्रचण्ड प्रभाव के साथ प्राणियों में समाहित हो जाती है मन में भी वही शक्ति होने के कारण मनुष्य प्रत्येक पदार्थ के अंतरंग से संपर्क स्थापित कर सकने और सूक्ष्म रूप में किसी भी पदार्थ की शक्ति को प्रवाहित कर लेने में सक्षम है । इस विज्ञान को पहुँचे हुये योगों जानते और उसका उपयोग करते हैं । इसी कारण उनके कितने ही क्रिया कलाप चमत्कार जैसे लगते हैं। अब जबकि पदार्थ में शक्ति की प्रचण्डता और अस्तित्व को विज्ञान ने भी स्वीकार कर लिया है तो यह सिद्धियाँ यांत्रिक रूप से भी ग्रहण की जा सकती है पर उनके मनोगत चमत्कार तो योग और साधना उपासना पद्धति से ही प्राप्त हो सकते हैं।

योगीजन साधना उपासना द्वारा सविता देवता से सूर्य की सूक्ष्म शक्ति से मानसिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं और वे ऋद्धि सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं जा लोगों को चमत्कार जैसी प्रतीत होती है लेकिन उनका आधार वैज्ञानिक ही होता है । जिस तरह अब दैनिक सौर ऊर्जा का दोहन फोटो वोल्टिक यंत्र उपकरणों के माध्यम से ऊर्जा आपूर्ति में करने लगे है ठीक उसी तरह गायत्री उपासक व योगीजन सविता देवता की शक्ति का अवशोषण व उपयोग आत्मोत्कर्ष एवं जनकल्याण में करते हैं यद्यपि यह प्रक्रिया से भिन्न है। इसे कुण्डलिनी जागरण कहा जाता है। गायत्री उपासना द्वारा सविता शक्ति का काया में अवगाहन धारण और विकास कर यह प्रयोजन पूरा किया जाता है इससे आरोग्य ओजस तेजस का और बुद्धि का विकास तो होता ही है उन अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास भी होता है जिन्हें लोग आश्चर्य अथवा ईश्वरीय अनुकम्पा मानते हैं गायत्री उपासना में गायत्री महामंत्र के जप व ध्यान द्वारा मन का सम्बन्ध सविता लोक से स्थापित किया जाता है तथा उसकी चमत्कारी क्षमताओं क्षमताओं का लाभ उठाया जाता है ध्यान की अवस्था में जब सविता के प्राण-प्रवाह से अपने मस्तिष्क मध्य स्थित ब्रह्मरंध्र का सम्बन्ध जुड़ जाता है तो उसकी शक्ति शरीर के कण कण में प्रविष्ट होती हुई चली जाती है और अपना प्राण शरीर विकसित होता हुआ सूर्य प्रकाश के समान हल्का दिव्य तेजस्वी होता चला जाता है यदि इस तथ्य को समझा और अपनाया जा सके तो हर कोई दिव्य क्षमताओं का स्वामी बन सकता है।


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