दीर्घसूत्री मत बनो

November 1997

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उसकी कारीगरी दूर-देर तक प्रसिद्ध थी। जो भी उसके बनाए जूते पहनता, हमेशा-हमेशा के लिए उसका ग्राहक बन जाता। सामान्यजन ही नहीं स्वयं महाराज भी उसके काम पर मोहित थे। सचमुच चमड़े का काम करने में कोई भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता था। दूसरे राज्य के राजा तथा धनवान् लोग भी अपने जूते उसी से बनवाया करते थे। वह था तो अपने काम में बेहद होशियार, पर उसमें एक बुरी आदत थी। वह बहुत आलसी तथा भुलक्कड़ था। जैसे उसे समय की और कीमत की पहचान ही न थी। अपनी इसी आदत के कारण वह अपना कार्य समय पर कभी भी पूरा नहीं कर पाता था। उसकी इस आदम से सभी लोग उससे तंग थे। परन्तु सभी की मजबूरी थी, आखिर उससे अच्छा और कोई कारीगर भी तो न था। इसलिए कोई कुछ भी बोला पाने में समक्ष न था।

एक दिन स्वयं महाराज को नए जूते पहनने की इच्छा हुई। उन्होंने उसको बुलवाया और कहा, “कारीगर तुम मुझे अतिशीघ्र बढ़िया जूते बनाकर दे सकते हो ?” उसने राजा से पूछा, “महाराज कब तक बनाकर दे दूँ। “ राजा उसकी आदत के बारे में सुन चुका था। तभी वह मुसकराते हुए बोले “ तुम्हीं बताओ कारीगर, तुम कब तक बनाकर दे सकते हो?” कारीगर बोला, “महाराज! आज से एक दिन छोड़कर आपके लिए जूते बनाकर दे दूँगा। “ राजा ने फिर चेताया, “कारीगर सोच लो, फिर से एक बार, अपने कहे के अनुसार बना पाओगे ?” वह कहने लगा-महाराज मेरे बारे में लोगों ने अनेक तरह का भ्रम फैला रखा है, पर मैं वैसा हूँ नहीं । फिर यह तो मेरे लिए बहुत मामूली काम है। आपको अवश्य ही समय पर जूते तैयार मिलेंगे।” उसकी इस बात पर राजा हँस दिया और बोला, “जाओ कारीगर और समय पर आना।”

वह घर पर आया और सोचने लगा, अभी तो पूरे दो दिन हैं। मैं कल से ही काम पर लग जाऊँगा। यह सोचकर वह सो गया। दूसरे दिन उसने एक जूता तैयार कर लिया। जब एक जूता बन गया तो सोचने लगा, एक जूता तो बन ही गया है, दूसरा कल आराम से बना लूँगा। अपनी इसी सोच को लेकर वह आराम करने लगा। दूसरे दिन भी वह देर से उठा और राजा के जूते बनाने की बात भूलकर, बाज़ार घूमने निकल गया। वह शाम को वापस घर आया, तो उसकी पत्नी ने उसे राजा के लिए जूते बनाने की याद दिलाई। पत्नी की बातें सुनते ही वह घबरा गया। उसी समय जल्दी-जल्दी उसने अपना काम शुरू किया। जैसे-तैसे उसे आज जूते बनाकर देने ही थे। लेकिन काम पूरा होते-होते आधी रात हो आयी। काम समाप्त करके भागता-भागता वह राजा के महल में पहुँचा।

महल के सैनिकों ने उसे सुबह तक प्रतीक्षा करने को कहा। मरता-क्या न करता, वहीं बाहर बैठकर सारी रात गुजारनी पड़ी। सुबह होते ही राजा को खबर दी गयी। राजा आया, उसने जूते पहनकर देखे और कारीगर से कहा - जूते तो बहुत सुन्दर बनाए हैं, लेकिन तुमने समय पर तैयार नहीं किए। उसने डरते-डरते कहा, “क्या करें महाराज। हमसे भूल हो गयी।” राजा को समझ में आ गया कि यह सीधे तरह से अपनी आदत नहीं छोड़ सकता। वह सोचने लगे, इतना हुनरमन्द इनसान, अनेकों सद्गुणों के होते हुए अपने इसी दुर्गुण के कारण स्वयं भी परेशानी भुगतता है और औरों को भी परेशान करता है। वह विचार कर रहे थे, कैसे इसे समय की कीमत समझायी जाए ? कैसे इसको समय का मोल बताया जा ?

पर उन्होंने प्रकट रूप से कुछ नहीं कहा, बल्कि हँसते हुए बोले, “कोई बात नहीं, हम तुमसे बहुत खुश हैं। अपना पारिश्रमिक शाम को आकर ले जाना।” कारीगर को अपनी जान छूटती हुई लगी। उसने राजा को अभिवादन किया और घर जाकर फिर सो गया। जब उसकी नींद खुली तो देखा रात हो गयी थी। झटपट उठते हुए उसने अपनी पत्नी से कहा - “मैं राजमहल जा रहा हूँ।” राजा को खबर दी गयी कि कारीगर अपना पारिश्रमिक लेने आ गया है। राजा आया, उसने कारीगर की ओर एक हल्की-सी मुसकान के साथ निहारा और कहा “आ गए, कारीगर ! तुमने फिर देर कर दी आन में।” कारीगर ने फिर से क्षमा माँगी । राजा ने कहा - “कोई बात नहीं। आओ आज हम तुम्हें अपना शाही बाग दिखाते हैं। जिसमें कुछ फूल रात को भी चमकते हैं।” राजा और कारीगर बाग में घूमने लगे। अचानक राजा ने कारीगर से कहा, “कारीगर, तुम बाग में घूमो हम अभी एक जरूरी काम निबटाकर आते हैं।” यह कहकर राजा महल में चले गए।

बहुत देर हो गयी। महाराज का तो पता-ठिकाना ही न था। कारीगर ने घबराकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। असलियत तो यह थी कि महाराज तो जान-बूझकर उसे अकेला छोड़ गए थे। उसकी चीख - पुकार सुनकर राजा ने अपने सैनिकों से कुछ कहा।

सैनिकों से कारीगर की जब इधर-उधर घूमते देखा तो उसे पकड़ ला और कहने लगे” चोर है इसे कारागार में डाल दो।” कुछ सैनिकों ने कहा “पहले इसकी पिटाई की जानी चाहिए।” कारीगर बुरी तरह घबरा गया। वह जोर-जोर से चिल्लाकर महाराज को पुकारने लगा। उसकी आवाज सुनकर महाराज यशोवर्मन पधारे और अनजान बनते हुए उन्होंने सैनिकों को रोका और उसकी ओर देखते हुए बोले - “अरे कारीगर तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

कारीगर रो पड़ा “महाराज आप तो थोड़े समय बाद आने की बात कहकर भूल ही गए। देखिए न आपकी भूल से मेरा क्या हाल हो गया है।” महाराज अभी भी उसकी ओर देखते हुए हल्के से मुस्कराए और कहने लगे, “कारीगर ! जब तुम समय की याद नहीं रखते और अपने काम को भूलकर लोगों को परेशान करते हो, अपना काम नियत समय पर नहीं करते तो दूूसरों को कितना परेशानी होती होगी ? इसी का अहसास दिलाने के लिए हमने जान-बूझकर यह नाटक रचा था।”

महाराज के इस कथन के साथ ही कारीगर को अपनी भूल का अहसास हो रहा था। उधर महाराज उसे समझाते हुए अभी भी कह रहे थे, “मत भूलों कारीगर ! समय नियन्ता का अनुशासन है। सभी को उसका परिपालन करना पड़ता है, जो समय के इस अनुशासन को नहीं मानते, वे जीवन की बहुमूल्य उपलब्धियों विभूतियों से वंचित रह जाते हैं।”


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