निर्दोष ऊर्जा स्रोत

November 1997

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देश में ऊर्जा की बड़ी समस्या है। बिजली के रूप में ऊर्जा की बहुत कमी अनुभव होती है। डीज़ल, लकड़ी, कोयला आदि से ऊर्जा उत्पन्न करने की प्रतिक्रिया में वायु प्रदूषण बहुत बढ़ता दिखता है। इस दृष्टि से पशु धन से प्राप्त ऊर्जा सबसे अधिक सुरक्षित है।

घास-तृण भूसा आदि खाकर पशु पर्याप्त ऊर्जा दे सकते हैं। उक्त पदार्थों से किसी अन्य प्रकार इतनी ऊर्जा प्राप्त नहीं की जा सकती। सर्वेक्षण द्वारा लगाए गए एक अनुमान के अनुसार, आज की गिरी गुजरी स्थिति में भी बैलों के माध्यम से प्राप्त ऊर्जा लगभग 40000 मेगावाट के बराबर है।

म्ष््राीनों से ऊर्जा प्राप्त करने में ऊर्जा उत्पादन के साथ ही प्रदूषण भी बढ़ता है। पशु तृण खाकर ऊर्जा तो देते ही हैं, तृण आहार से पर्याप्त ऊर्जा देने के बाद उनके मल गोबर आदि भी उपयोगी में सक्षम होता है। यदि उसको भली प्रकार लिया जाए, तो उससे पर्यावरण बिगड़ने के स्थान पर पर्यावरण संवर्द्धन का लाभ उठाया जा सकता है।

गोबर गौमूत्र में खरपतवार को जैव खाद में बदल देने की असामान्य क्षमता होती है। वह अपने से 10 गुने खरपतवार को उपयोगी उर्वरक के रूप में बदल सकता है। रासायनिक खादों के स्थान पर जैव खाद का महत्त्व आजकल हर क्षेत्र में स्वीकार किया जा सकता है।

गोवंश विशेष

पशुपालन में गोवंश को विशेष महत्व यों ही नहीं दिया गया है। योगीराज कृष्ण ने अपने लिए गोपाल संबोधन अनायास ही नहीं स्वीकारा था गाय के दूध, दही, घृत से लेकर गोबर, गौमूत्र चर्म और हड्डियों तक में औषधीय गुण पाये जाते हैं। पर्यावरण आर्थिक स्वावलम्बन आरोग्य कृषि विकास तथा मानवीय संवेदनाओं के संरक्षण संवर्द्धन की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं।

ग्रामोत्थान, ग्रामोद्योग

देश विदेश के विभिन्न धाराओं के विशेषज्ञ अब इस भारत जैसे देश के विकास के लिए जीवन पद्धति ही अधिक लाभप्रद सिद्ध होगी। पर्यावरण संरक्षण, मानवीय संवेदनाओं के पोषण पिछड़े वर्गों की उन्नति आदि के लिए ग्रामोद्योग के विकास को ही प्रमुख आधार बनाना होगा।

उज्ज्वल भविष्य की सम्भावनाओं पर अपने विचार प्रकट करते हुये पूज्य गुरुदेव ने भी यह बात स्पष्ट की है कि सामाजिक संतुलन के लिए शहर दुबले होंगे तथा गाँवों को समृद्ध किया जाएगा। इसके लिए आवश्यक है कि ग्रामोद्योग की दिशा में प्रतिभाओं का नियोजन किया जाए। वहाँ वे धन कमा लेते हैं, पर व्यसनी भी हो जाते हैं। व्यसनों गंदगी और असंतुलित जीवन पद्धति की चपेट में वे स्वास्थ्य गँवा बैठते हैं। अपराधी प्रवृत्तियाँ में पड़कर समाज का भी परेशानी में डाल देते हैं।

ग्रामोद्योग कैसे हों

यह शहरोन्मुख होने के दोष हैं जीवन को ग्रामोद्योग बनाकर ही उक्त तमाम विडम्बनाओं से पीछा छुड़ाया जाना तथा पर्यावरण से लेकर मानवीय संवेदनाओं के पोषण में सफलता पाना संभव हो सकता है।

इन दिनों इस दिशा में प्रबुद्धजनों के प्रयास विभिन्न ढंग से चल रहे है। उनके ढेरों निष्कर्ष इसी दिशा में घूमते दिखने लगें हैं कि इस देश में गोपाल बढ़ने चाहिए। ग्रामोद्योग में गो पालन को केन्द्रीय धुरी के रूप में स्थापित किया जा सकता है। उसके साथ अनेक ग्रामोद्योग ही का ताना बाना भी सहज ही बुना जा सकता है।

ग्रामोत्थान से समग्र क्राँति

पूर्व केन्द्रीय सचिव, ऋचा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूज्य गुरुदेव के अनन्य अनुयायी श्री जगदीश चन्द्र पंत जी ने अपने शोध आलेख ग्रामोत्थान से सम्पूर्ण क्राँति में गोशाला केन्द्रित ग्रामोद्योग पर बहुत सारगर्भित योजना प्रस्तुत की है। इस सन्दर्भ में अधिक विस्तृत चर्चा अगले लेख में है। इस योजना के थोड़े से मुख्य सूत्र इस प्रकार है।

प्रत्येक 10-12 गाँवों के बीच एक ऐसी गोशाला हो, जहाँ गोवंश को दूध और मोस के व्यापार के बिना ही उपयोगी सिद्ध रखा जा सके। इस दिशा में कुछ सर्वोदयी संगठनों ने बहुत कुछ शोधकार्य कर भी लिया है।

गोशाला में जो दूध उत्पादित हो सके वह बेचा न जाए। गाँव की गर्भिणी महिलाओं गरीब बालकों तथा रोगियों को गोरस उपलब्ध कराया जाए। प्रत्येक गोशाला से जुड़े महिला मण्डल यह व्यवस्था बनाए।

गोशाला से जुड़े कार्यकर्ता तथा समयदानी गो सेवक, जल संरक्षण तथा वन सम्पदा संवर्द्धन की अनेक गतिविधियाँ ग्रामोद्योग के रूप में संचालित करे।


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