अरुणोदय की पहली किरणें पर्वत शिखरों पर पड़ती हैं। धरती की सतह पर तो प्रकाश काफी देर बाद उतरता है। संसार में होने वाले घटनाचक्रों का ताना-बाना भी पहले चेतना के किन्हीं उच्च लोकों में बुना जाता है। उनकी परिणति तो काफी समय बाद हम सभी को ऐतिहासिक परिवर्तन के विस्मयकारी तथ्यों के रूप में देखने को मिलती है। जो अपनी चेतना के शिखरों पर आसीन हैं, ऐसे दिव्यदृष्टा मनीषी भविष्य के गर्भ में पके इन घटनाक्रमों को अपनी दिव्य क्षमताओं से भली प्रकार देख-जान लेते हैं और उन्हें जन-सामान्य के हित में प्रस्तुत भी कर देते हैं, ताकि व्यक्ति और समाज स्वयं को भविष्य के अनुरूप सँवार सकें, अपने में अपेक्षित फेर-बदल कर सकें। उनका यह कार्य मौसम के गतिचक्र को समझने वाले विज्ञानवेत्ताओं की तरह है, जो अपने ज्ञान से जन सामान्य को भूकम्प, सूखा, बाढ़ आदि के प्राकृतिक उपद्रवों से सावधान करते हैं और उन्हें खतरे की पूर्व सूचना देकर भारी हानि से बचा लेते हैं।
भविष्य-कथन आश्चर्यजनक होते हुए भी वैज्ञानिक सत्य है। जो मौसम के गतिचक्र को जानते हैं वे दिसम्बर-जनवरी की ठिठुरन भी सर्दी में भी पसीने और उमस भी गर्मी की सटीक भविष्यवाणी कर देते हैं। ठीक इसी तरह जिन्हें कालचक्र की गति का ज्ञान है उनके भविष्य-कथन समय अपने पर पूरी तरह सच और खरे साबित होते हैं। 471 वर्ष ईसा पूर्व में विख्यात चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने कहा था - “सबको बनाने वाला इतना दयालु है कि वह अच्छे-बुरे प्रतीकों से भविष्य की जानकारी हमें देता है। बुद्धिमान वे होते हैं जो इस ज्ञान से लाभ उठाकर कर्म करते हैं।” नोबुल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ.0 अलैक्सिस कैरेल तो भविष्य-ज्ञान की वैज्ञानिकता के संदर्भ में एकदम विश्वस्त थे। उनके अनुसार, मौसम विषयक वैज्ञानिक भविष्य-कथन तो अभी हमें अनदेखे समय की जानकारी कराने वाले विज्ञान का बचकाना-सा ज्ञान है और हम उसे ही सब कुछ माने हुए हैं। वह दिन भी दूर नहीं, जब भविष्य को जानकर उसमें सुधार भी किए जा सकेंगे।
जो भविष्य-कथन और भविष्यवाणियों की आलोचना करते हैं, वे भी आँशिक रूप से सही हैं। क्योंकि उन्हें इसकी वैज्ञानिकता से वास्ता नहीं पड़ा। वे मान लेते हैं कि भविष्य-दर्शन महज तुक्के है तीर नहीं। जबकि विज्ञान मानता है कि त्रिआयामी प्रतीत होने वाले संसार के उनके अज्ञात आयाम और हैं। उसमें चौथे आयाम के रूप में समय को स्वीकार भी कर लिया है। भविष्य को इसी के अंतर्गत मान्यता मिली है। वैज्ञानिकों का मानना है, तो जब ज्ञात समय का आयाम है, तो जिस अज्ञान समय के गर्भ से यह समय आता है, उनका भी वजूद जरूर होगा। हजारों वैज्ञानिक टाइम मशीन की सम्भावना पर कार्य कर रहे हैं, जिसकी मदद से भूत या भविष्य के दौर में यात्रा की जा सकेगी।
वैज्ञानिक इसके माध्यम से समय की उन्हीं गहरी परतों को कुरेदने की कल्पना कर रहे हैं, जिन्हें कोई साधनात्मक ऊर्जा से सम्पन्न व्यक्तित्व सहज की अपने मन में प्रतिबिम्बित कर लेता है। ऐसे प्रयास हमेशा से होते रहे हैं, भले ही उनका यन्त्रीकरण न किया जा सका हो। विख्यात खगोलशास्त्री डेविडसन ने अपनी पुस्तक ‘द ग्रेट पिरामिड इट्स डिवाइन मैसेज’ में मिश्र के कतिपय उन भविष्यवेत्ताओं के भविष्य-कथनों को संकलित किया है, जो उन्होंने पिरामिडों में अंकित किए। ये अंकन प्रतीकों के रूप में हैं। डेविडसन का अपनी पुस्तक में मानना है कि इन पिरामिडों पर पृथ्वी के जन्मकाल से लेकर प्रलय तक की घटनाएँ अंकित हैं। भविष्यवाणियों के अनेक विषय हैं, जैसे विभिन्न सम्राटों, देशों तथा जातियों का भविष्य, प्रमुख क्रान्तियों तथा सामाजिक परिवर्तनों से सम्बन्धित भविष्यवाणियाँ और मानवता का भविष्य।
पिरामिड गणनाओं के अनुसार 1924 ई॰ के बाद से सही निकली भविष्यवाणियों की संख्या 63 है। इनमें से प्रमुख हैं - 1929 में विश्वव्यापी मन्दी का दौर, 1933 में हिटलर का जर्मनी पर कब्जा, 1939 में दूसरे विश्वयुद्ध का आरम्भ, 1945 में इस विश्वयुद्ध का अन्त, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी का बँटवारा, 1947 में भारत को स्वतन्त्रता और उसके साथ ही विभाजन, 1964 में इजराइल की स्थापना, 1960 में अफ्रीका के 16 देशों की स्वतन्त्रता, 1964 में अमेरिका-वियतनाम युद्ध और भारत-पाकिस्तान जंग, 1969 में चाँद पर मनुष्य का पहुँचना, 1971 में भारत में पृथक हुए पाकिस्तान का विभाजन तथा एक नये देश का जन्म, 1975 में सउदी अरब के शाह फैजल की हत्या, 1976 में विश्वव्यापी भूकम्पों से भारी जन हानि, 1977 में मिश्र के विश्व अरब देशों का गठबन्धन, 1979 में शाह इरान सत्ता च्युत तथा अयातुल्लाह खोमैनी का सत्तारूढ़ होना, 1980 में ईराक-ईरान के बीच युद्ध शुरू, तेल राष्ट्रों की उन्नति, विभिन्न देशों में राष्ट्र नेताओं की हत्याएँ, व्यापक जातीय संघर्ष और अकाल का दौर।
1924 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में डेविडसन ने पिरामिडों की भविष्य वाणियों के आधार पर निष्कर्ष में लिखा था कि एक ऐसा दौर आएगा, जब दुनिया में तेज रफ्तारी, सुविधाओं तथा आराम के अनोखे साधनों में अपनी नैतिकता तथा सामाजिक जिम्मेदारियाँ भुलाकर आपाधापी में लगे लोगों का बोलबाला होगा। तब विनाशक युद्ध की सम्भावनाएँ बढ़ेंगी, जिसमें विश्व के सभी देशों की अकल्पनीय बर्बादी और तबाही होगी। प्राकृतिक आपदाएँ कहर बरसाएँगी। मौसम आश्चर्यजनक ढंग से बदल जाएगा। यह व्यापक उथल-पुथल सन् 2000 तक चलती रहेगी। इसके बाद नए मानव धर्म का उदय होगा। यह आध्यात्मिक युग होगा। इस दौरे का रहनुमा एक संत पुरुष होगा। पूरी मानव जाति लम्बे समय तक सुख भोगेगी।
भविष्य-कथन को वैज्ञानिक आधार देने वालों में पाँवेल और उनकी पत्नी तमारा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। 40 वर्षीय पाल्यीच पाँवेल रूसी जैव ब्रह्माण्ड आयोग के अध्यक्ष हैं और तमारा उनसे चार साल छोटी उन्हीं की प्रशासनिक सहायक है। ये दोनों दो बाद भारत आ चुके हैं। इन्होंने अपने अनेक प्रयोगों के द्वारा जाँचा-परखा और खरा प्रमाणित किया है। रोमिनिया की क्रान्ति, नेल्सन मंडेला की वापसी, सोवियत संघ का नया रूप होने सम्बन्धी इनकी भविष्यवाणियों ने विश्व के विचारशीलों को भविष्य-विज्ञान नए सिरे से सोचने के लिए विवश किया।
समूचे विश्व के घटनाक्रमों को अपनी भविष्य की तीसरी आँख से देखने वाले पाँवेल का मानना है, इस समय पृथ्वी की मीन दशा चल रही है और 2001 से से लेकर 2003 तक क्रमशः समाप्त होती चली जाएगी। कुम्भ दशा आने वाली है। कुम्भ शुभ व अशुभ का ध्रुवीकरण करता है। उनको अलग-अलग करता है। पाँवेल के अनुसार, इस दौरान अचानक और व्यापक बदलाव होंगे। मानव राज्य, राजनीति और दबावों से मुक्त होने लगेगा। राज्य का एक नया स्वरूप उभरेगा। पूरे संसार में में मान जाति की एकता की हवा चलेगी। मैत्री, कल्याण भावना, असत्य और बुराई का खात्मा और सत्य का बोलबाला-इस मानव एकता के मूल आधार होंगे। परन्तु इससे पहले संघर्ष और संकट आयेगा। उससे सारा विश्व निखरेगा। अन्तिम परिणाम के रूप में हर व्यक्ति, मानव समाज,राजनीतिक दलों, राज्यों व मानवों के आपसी सम्बन्धों में भी परिवर्तन होगा। मानवता अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँचेगी।
भारतवर्ष की प्राचीन ऋषिगणों ने भविष्य-विज्ञान सम्बन्धी जो अन्वेषण-अनुसन्धान किए हैं, हालाँकि इसके प्रभाव और तकनीक को स्पष्टता से जानने वाले कम ही हैं, फिर भी इसकी महत्ता से इन्कार नहीं किया जा सकता। भृगुसंहिता की सभी भविष्यवाणियाँ महर्षि भृगु तथा उनके बेटे आचार्य शुक्र के बीच बातचीत के रूप में हैं। जैसे श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के संवाद। हर भविष्यवाणी आचार्य शुक्र के इस सवाल के जवाब देती है।- वद् नाथ दयासिन्घो देशस्य लग्न शुभाशुभम् । येन विज्ञात मात्रेण त्रिकालज्ञो भविष्यति॥ भृगुसंहिता के विशेषज्ञों के विवरण के अनुसार मेष राशि में शनि तथा बृहस्पति की युति पूरे विश्व इतिहास पर प्रभाव डालती है। यह ग्रह दशा 28 मई सन् 2000 को पड़ेगी। इसी के बाद भारत अधिक ताकतवर होता जाएगा और विश्व के इतिहास को अपने प्रभाव से कुछ नया देने में समर्थ होगा। भारत की कुण्डली में छठा स्थान गुप्त शक्तियों का है। इसी से पुनरुत्थान, नए फैसले तथा बदलाव होते हैं। आगामी कुछ वर्षों में ही देश का प्रशासन भी आमूल-चूल रूप से क्रान्तिकारी बदलाव को लाएगा। पूरा देश किसी एक मिशन को लेकर काम करेगा। प्राचीन भारतीय चिन्तन को बढ़ावा मिलेगा।
अपनी चेतना के किसी उन्नत शिखर पर बैठकर भविष्य की स्पष्ट झाँकी निहारने वाले ऋषि हैं- मुनिवर याधव। याधव मुनिवर का जीवनक्रम सामान्य देहाती किसान का सा रहा है। उन्होंने न कभी तड़क-भड़की वाले कपड़े पहने, न अँगूठियाँ। उनके पास न तो कीमती मालाएँ रही और न भ्रामक शब्द जाल। अपनी चेतना के उन्नत शिखरों पर आरुढ़ होकर उन्होंने अपने ही विगत 53 जन्मों की झाँकी पायी। जीवन के तत्व बोध प्राप्त किया।
टब तक उनकी अनेकों भविष्य-वाणियाँ सही साबित हुई है। तमिलनाडु के अम्मानपुर गाँव में जन्में मुनिवर याघव के अनुसार भारत विश्व को एक नया नेतृत्व प्रदान करेगा। आगामी चौदह वर्षों में साम्प्रदायिक कट्टरता स्वयमेव समाप्त हो जाएगी। तब केवल एक मानव धर्म शेष रह जाएगा। जिसे आध्यात्मिक धर्म के रूप में सभी अपनाएँगे। लेकिन यह सब होगा अनेकों संकटों एवं परेशानियों की आग में तपकर भारत ही नहीं, समूचा विश्व अपने स्वर्णिम समय में प्रवेश करेगा।
ज्योतिष विज्ञान को अपने वैज्ञानिक प्रतिपादनों एवं बौद्धिक कुशलता से विश्वमंच पर प्रतिष्ठित करने वाले में प्रो0 बी.बी. रमन का अपना स्थान है। इनके द्वारा सम्पादित “द एस्ट्रोलाजिकल मैगजीन” में समय-समय पर अनेक भविष्य -कथनों का उल्लेख होता रहता है। जिनमें से कुछ को अवश्य सामयिक कहा जा सकता है। डॉ. रमन ने एक पुस्तक का सम्पाउन अभी हाल में ही किया है- “ नो वर्ल्ड वार इन 2000 ए डी.” में लेखक ने तरह-तरह के उदाहरणों एवं प्रमाणों से यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि तृतीय विश्वयुद्ध की कोई सम्भावना नहीं है।
ज्योतिषीय गणना को आधार बनाकर लिखे गए इस लेख के अनुसार पृथ्वी के नष्ट होने की सम्भावना कम नहीं है। विश्व स्तर पर ऐसे प्रयास होंगे जो मानवता को तीसरे विश्वयुद्ध की आग से बचाए रखेंगे। लेखक का मानना है कि भविष्य में होने वाले युद्धों की सीमाएँ और सम्भावनाएँ खाड़ी युद्धों से अधिक न होंगी, मगन 27 मई सन् 2000 से ऐसी सम्भावनाओं प्रबलता बढ़ेगी जो विश्व शान्ति, सद्भावना, एकता के किसी नए आयाम को जन्म दें इस तरह 21 वीं सदी का प्रारम्भ समूची दुनिया में शान्ति और सद्भावना का नया युग लेकर आएगा। सत्य के साथ असत्य को मिलाकर चलना प्रपंच है। सत्य को पहचानें और उसे पकड़े रहें। इतने में भी परमार्थ सध जाएगा।
भविष्य की झलक चाहे ज्योतिष के झरोखों से पायी जा रही हो, अथवा उसे अपनी चेतना के हिमालय पर बैठकर निहारा जा रहा हो, निष्कर्ष एक ही है “इक्कीसवीं सदी उज्ज्वल भविष्य”। पूर्व दिव्यदृष्टा मनीषी हों अथवा फिर भविष्य-ज्ञान को विज्ञानसम्मत प्रक्रिया मानकर चलने वाले वैज्ञानिक, इन सभी के प्रतिपादन इस तथ्य को स्वीकारते हैं। कि उज्ज्वल भविष्य का अरुणोदय इक्कीसवीं सदी के प्रारम्भ को नवयुग के नवप्रभात का रूप देगा। हमें, हम सबको इस नव-प्रभात के स्वागत की तैयारी नवयुग की नयी मान्यताओं, नवीन मानदंडों को अपनाकर करनी है। स्वयं के जीवनक्रम में तमसो मा ज्योतिर्गमय की उक्ति को सार्थक-चरितार्थ करके ही हम नवयुग में अपने भविष्य को उज्ज्वल बना पाएंगे।