खाई खोदी है तो है तो पाटिये ना

January 1997

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियोः यो नः प्रचोदयात्॥

उन्नति के मार्ग पर सबसे बड़ी रुकावट वह है, जिसके कारण से हमारे पैर रुक जाते हैं, प्रायश्चित की प्रक्रिया इसीलिए है, कि हमने भूतकाल में जो गलतियों की है, उनकी रोकथाम कर सके। इस संसार का यह नियम है कि जो गलतियाँ होती है, भूलें होती है, उसका दण्ड तो मिलता ही मिलता है। हमारे लिए सबसे बड़ा व्यवधान यही है कि पिछली गलतियाँ, वह रास्ता रोककर खड़ी हो जाती है और इसकी उन्नति नहीं करने देती। अगर हम अपने स्थान, तब फिर उन गलतियाँ का दण्ड कैसे मिलेगा? पापों का प्रायश्चित कैसे होगा? उज्ज्वल भविष्य तो सुख और शान्ति का हो जाये फिर पापों का क्या होगा? पाप इतनी छोटी बात नहीं है कि आप गंगा नहा करके या उसका प्रायश्चित करके, प्रार्थना करके खत्म कर सकें। वह आपके जीवन की कोई महत्त्वहीन घटना नहीं है। बुरे कामों का भी फल उसी तरह निश्चित है जैसे अच्छे कामों का। अच्छे फलों की ही फिर क्यों आशा करते है? जब आप अच्छे फलों की आशा करते हैं कि हमने यह अच्छा किया है, जब आप अच्छे फलों की आशा करते हैं कि हमने यह अच्छा किया है, तो हमारी घर-गृहस्थी चलती चाहिए। जब आप श्रेष्ठ कार्यों के बारे में यह विश्वास करते हैं कि हमको अपने कर्मों का अच्छा फल मिलना ही चाहिए, फिर आपा एक और बात क्यों भूल जाते हैं कि हमने जो बुरे कर्म किए है या भूले की है, उनका दण्ड भी मिलना चाहिए। उनके बारे में फिर क्यों उपेक्षा करते है? इसकी उपेक्षा कीजिए न कि इस खेती करेंगे नहीं, पैदा हुआ तो क्या हुआ, हम विद्या पढ़ेंगे नहीं, पढ़ना आया तो क्या हुआ। आप यह क्यों सोचते हैं कि हमारे अच्छे कर्मों का फल तो हमको मिलना चाहिए और बुरे कर्मों के बारे में इतने ज्यादा लापरवाह है, कि आप यह ख्याल कर लें कि इस राम-नाम ले लेंगे, पंचामृत भी लेंगे, गंगाजी में डुबकी मार लेंगे, फलाना कर लेंगे तो ऐसे दिल्लगी, मजाक जैसे छोटे-छोटे कारणों से आप छुटकारा पा जाएँगे? ऐसा कैसे हो सकता है? यह मुमकिन नहीं है। जहर खाया है तो आपको मरना पड़ेगा अथवा जहर को सारी नसों में से निकालना पड़ेगा। नहीं साहब जहर खा लिया है, तो क्या हुआ, प्रार्थना कर लेंगे। फाँसी लगा ली है तो क्या हुआ, प्रार्थना कर लेंगे रेल की पटरी पर बैठे करके सिर कटा लिया है, तो क्या हुआ प्रार्थना कर लेंगे। नहीं भाई साहब, ऐसी कल्पना मत कीजिए बच्चों जैसी। आप जरा समझदारों की तरह बात कीजिए। पाप भी आपके जीवन की एक इकाई हैं आपने गलतियाँ की है और अपने शरीर को कमजोर बना डाला है। आप पाप कर्म से कैसे बचेंगे? पढ़ने से इन्कार कर दिया। आप बिना पढ़े है, कर्म के दण्ड से बचिए न जरा। नहीं साहब, हम तो प्रार्थना करेंगे, भगवान की पूजा करेंगे और विद्वान हो जाएंगे। नहीं भाई साहब, ऐसा नहीं हो सकता। आप वास्तविकता की समझिए तो सही। यहाँ आकर के भी वास्तविकता को नहीं समझेंगे, आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद भी वास्तविकता और सच्चाई अगर आपकी समझ में न आ सकते, तो इसमें प्रवेश करने का क्या फायदा हुआ? आप अज्ञान में ही फँसे रहे, भ्रम में ही फँसे रहे और आप अज्ञान और भ्रमों को ही छाती से लगाए रहे, तो क्या बात बनी? आप यहाँ अध्यात्म को सच्चाई का प्रतीक मानिये और यह मानकर चलिए कि कर्मफल एक वास्तविकता है और उसमें जो भूतकाल के कर्म है, वह भी ज्यों-के-त्यों है।

पिताजी ने आपके लिए कर्ज लिया था और उससे आपने डिग्री हासिल की थी। लेकिन पिताजी के माने के बाद में वह डिग्री आपको भुगतनी पड़ेगी, चाहे आपका मकान बिके या आपकी जमीन बिके। साहब हम तो क्षमा माँगेंगे, पुरानी बात तो पुरानी हो गई। पुरानी बात कैसे हो गई? बैंक से आप कर्जा लाए थे और बैंक का कर्जा बढ़ते-बढ़ते दुगुना हो गया है। अब आप चुकाएंगे कि नहीं चुकाएंगे। नहीं साहब, बैंक मैनेजर से प्रार्थना करेंगे, हाथ जोड़ेंगे, पैर छुयेंगे, पंचामृत पिलायेंगे और माफ करा लेंगे। आप यह बेकार की बात मत की कीजिए, बेकार की मत कीजिए, बेकार की बात करने से आपको भ्रमित, घृणित और अज्ञानियों की श्रेणी में में अपने आपको शामिल मत कराइए। भूतकाल के पापों से या भूतकाल की घटनाओं से आप प्रभावित है, तो भूतकाल को आप मजाक में नहीं उड़ा सकते। भूतकाल में जो आपने किया था, लड़ाई-झगड़े किए थे पर किसी आदमी का कत्ल कर दिया था, तो आप पर मुकदमा चलेगा और आप फाँसी के लिए तैयार रहिए। नहीं साहब, भूतकाल की जो मार डाला, सो मार डाला और मर गया, सो मर गया। आप यों तो कहेंगे कैसे? भूतकाल ऐसे मजाक की चीज है। पापों का प्रायश्चित एक बहुत बड़ी बात है। हिन्दु धर्म में पाप का एकमात्र उपचार प्रायश्चित ही है। गंगा में स्थान के बारे में जी कहा गया है, उसका मतलब केवल यह है कि उससे हमारी पाप करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगे, हमारा पाप करने को जो मन चलता है, वह न चले, भविष्य में हम वह सब काम न करे, जिससे हमारे अहं की प्रेरणा मिल जाय, प्रोत्साहन मिल जाय। ठीक वातावरण मिल जाय, यह मतलब है। यह मतलब नहीं है कि आप भूतकाल में जो कर चुके है, उसके दण्डों से आपकी राहत मिल जाएगी। ऐसा नहीं हो सकता। आपके ऊपर जो बुरे कामों का किया हुआ कर्ज है, उससे भी निपटिए और जिन बुरे कर्मों का वातावरण बना रखा है, जरा उसकी भी ठीक कीजिए। आपने जो-जो गलतियाँ कर रखी है, जरा उनको भी फिर से एक बार सुधारिये। नहीं सुधार पायेंगे, तो भावी उन्नति का दरवाजा बन्द है।

मैं आपसे यह कह रहा था, कि आप आध्यात्मिक उन्नति के लिए पूजा करते हैं, तो आपको मुबारक। आप उपवास रखते हैं, बहुत अच्छी बात। आप यहाँ अनुष्ठान करते हैं, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। लेकिन इसके साथ-साथ यह मत भूलिये कि इनके जो मुनासिब लाभ है, वह आपको उस समय तक नहीं मिल सकेंगे, जब तक कि पिछले वाले दबाव आप पर पड़े हुए है। पिछले वाले पाप एक ऐसा वातावरण बनाते हैं, जिसे न आपकी पूजा सफल हो सकती है, न उपासना सफल हो सकती है, न आपका मन लग सकता है, न ध्यान लग सकता है। क्यों? क्योंकि आपको दण्ड मिल रहे है। दण्ड नहीं मिलेंगे तो आपका ध्यान पुनः उस ओर जाएगा, फिर पाप का दण्ड कहाँ जाएगा? इसीलिए समस्त आसुरी शक्तियाँ बराबर शुभ कर्मों में विघ्न उपस्थित करती रहती है। आसुरी शक्तियों से क्या मतलब है? आसुरी शक्तियों से कोई मतलब नहीं है, आपका किसी से बैर नहीं है, फिर कोई आपको बेकार ही हैरान नहीं कर सकता। आसुरी शक्तियाँ बेकार ही हैरान क्यों करेंगी? केवल आपके पाप कर्म ही वह आसुरी शक्तियाँ है, जो आपको हैरान कर देती है और आपको अच्छे कर्म में सफलता मिलने पर अवरोध खड़ा कर देती है उसने आपको लड़ना ही पड़ेगा। भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए आप जप करते हैं, तप करते हैं, अनुष्ठान करते है-भगवान को प्राप्त करने के लिए मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए, तो फिर उज्ज्वल भविष्य में रुकावट डालने वाले जो पिछले वाले पाप कर्म है वही है, आसुरी शक्तियाँ उन्हीं का नाम है। उन आसुरी शक्तियों से निपटने की भी कोशिश कीजिए। आसुरी शक्तियों से निपटने की कोशिश नहीं करेंगे, तो वह बार-बार हमला करेंगी, और हमला करके आपके अच्छे प्रयासों को मटियामेट करके रख देगी। खेती आपने की है। जंगली जानवर जो हमला करते हैं, तो रात भर में सारी की सारी फसल खा-पी करके बराबर कर देते हैं। आप जानवरों को रोकेंगे नहीं? कृपा करके रोकिए, नहीं तो फिर यह तो जाएगा कि आप चाहे जितना पानी लगाते रहिए, खाद लगाते रहिए, बीज बोते रहिए, फसल के नाम पर आपको कोई भी चीज हाथ लगने वाली नहीं है। तब? मैं यही कह रहा था आपसे, कि आपको इस महत्त्वपूर्ण बात के ऊपर गौर करना चाहिए।

आपको एक घटना सुनाता हूँ, एक बार स्वामी माधवाचार्य जी वृन्दावन रहते थे। उन्होंने तेरह साल तक गायत्री के अनुष्ठान किए। लेकिन उन अनुष्ठानों का कोई परिणाम उनको नहीं मिला। न उनको आत्मशाँति मिली, न भगवान का साक्षात्कार हुआ, न कोई मनोकामना पूरी हुई, न कोई सन्तोष हुआ, कुछ नहीं हुआ। तब? तब बड़े सन्तोष हुआ, दुखी हुए कि हमको सफलता के कोई चिन्ह नजर नहीं आते हैं, तो स्तुति करने का क्या फायदा? उन्होंने गायत्री अनुष्ठान तेरह वर्षों तक करने के बाद में वृन्दावन त्याग दिया और वृन्दावन त्यागने के बाद में बनारस चले गए। वह वहाँ काशी के मणिकर्णिका घाट पर बैठे हुए थे, आँखों भरे हुए थे, बड़े दुखी थे। एक साधक का रूप और दुखी देखकर के एक महात्मा उधर से निकले, उन्होंने पूछा-भाई क्या बात है? कैसे दुखी हो रहे है? कौन है तू? तो वह बोल-साधना करने वाले एक व्यक्ति है और तेरह वर्ष तक गायत्री की उपासना करते रहे। लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला, हम बहुत खिन्न है और यह सोचते हैं कि उपासना से कोई लाभ नहीं हैं खासतौर से गायत्री का कोई फल नहीं हो सकता, ऐसे हमारे विचार है। महात्माजी हँसने लगे। उन्होंने कहा-अच्छा एक काम कीजिए, गायत्री के बारे में तो हमारी कोई जानकारी नहीं है, हम तो ताँत्रिक और कापालिक विद्याओं को जानते हैं, तू ताँत्रिक और कापालिक विद्या को सीख ले, एक साल के अन्दर तुझे कुछ चमत्कार दीखने लगेंगे, अनुभव हो जाएगा तथा चमत्कार दीखने पर तेरा विश्वास बढ़ जाएगा। इसलिए चमत्कार दिखाने की की दृष्टि से तुझे हम एक साल की ताँत्रिक उपासना करने की सलाह देते हैं। स्वामी माधवाचार्य जी ने मान लिया। फिर उनको मणिकर्णिका घाट पर तंत्र सम्बन्धी आवश्यक ज्ञातव्य बताया और यह कहा-एक साल तक तुमको इसी मर्यादा से रहना पड़ेगा। इससे बाहर जाना मना है। इसी में नहाना है, इसी में टट्टी जाना है, इसी में खाना पकाना है, इसी में सोना, उठना, बैठना, किसी भी कीमत पर मरघट की सीमा से बाहर मत जाना। ऐसा ही उन्होंने किया। एक साल तक उनको जो भैरव का मंत्र बताया गया था, वह जपते रहे।

भैरव कभी शेर के रूप में आते, कभी औरत के रूप में आते, कभी डराते, कभी पैसा लेकर के आ जाते, लेकिन माधवाचार्य जी से उन्होंने कह दिया था कि तू अपने काम में ही लगा रहना, दुनिया की बातों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। अपनी साधना को ही सब कुछ मानकर चलना चाहिए। वैसी ही हुआ माधवाचार्य अपने गुरु के कहने के मुताबिक सब कुछ करते रहे। जो कोई आते रहे, सबको फटकारते रहे-आप लोग चले जाएँ हम तो साधना कर रहे है। एक दिन करते-करते साल जब पूरा हो गया, तब भैरव जी ने दर्शन दिए, उन्होंने कहा-”जिसका तू जप कर रहा है, वह मैं ही हूँ। हमारा नाम भैरव है और हम आ गए। अब तू हमसे वरदान माँग।” उन्होंने कहा कि “पहली माँग तो यह है कि आप मुझे यह यकीन करा दीजिए कि आप भैरव ही है। अब तक पूरी साल में यही खुराफात होती रही है कि कोई शेर बनकर आ गया, तो कोई औरत बनकर आ गया। रोज यहाँ मेरे साथ दिल्लगीबाजी होती है। अगर आप भैरव है, तो फिर मैं आपकी सूरत देखना चाहता हूँ, और यह विश्वास करना चाहता हूँ कि आज मेरे साथ दगाबाजी तो नहीं हो रही है। आप समाने आइए और प्रकट हो जाएँ, पहला वरदान यही दीजिए। फिर आपकी उपासना करूंगा, तब दूसरा वरदान माँगूँगा। आज तो बस इतना ही माँगना है।” भैरवने कहा-”हम आपकी दर्शन तो नहीं दे पायेंगे, आपकी पीठ पीछे खड़े होकर बात कर सकते हैं।” माधवाचार्य ने संदेह से पूछा कि “दर्शन क्यों नहीं दे पायेंगे?” उन्होंने कहा-”तेरे चेहरे पर गायत्री का तेजस्व चमचमा रह है और आंखों से निकल रहा है। इसलिए सामने आने की हिम्मत नहीं है। पीठ पीछे तू जो कुछ हमसे पूछना चाहता है, वह पूछ। बात तो कर ही रहे है, यकीन भी कर ले कि हम भैरव है।” “नहीं, महाराज जी मुझे यकीन नहीं, सामने क्यों नहीं आ सकते? वजह क्या है?” “तुझे बता तो दिया, तेरी आँखों में इतना गायत्री का तेज, चेहरे के सामने इतना ओजस और वर्चस्व छाया हुआ है कि उसके सामने रह सकना हमारे लिए मुमकिन नहीं है।” उनको बहुत आश्चर्य हुआ कि हमारी आँखों में गायत्री का इतना जबरदस्त तेज है, जिसकी वजह से भैरव हमारे सामने तक नहीं आ सकते? तो उन्होंने कहा-”महाराज फिर एक वरदान और माँगता हूँ मैं आपसे । आप दर्शन नहीं देना चाहते, तो मत दीजिए। आप एक इच्छा और पूरी कर दीजिए।” “आप यह जिज्ञासा पूरी कर दीजिए, कि मेरा गायत्री का तेरह वर्षों का जप और अनुष्ठान क्यों बेकार चला गया?” तो भैरव ने कहा-”तेरे इस सवाल का मतलब हम बता देंगे, चल आँखें बन्द कर।” आँखें बन्द कर लो, फिर उन्होंने एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा, तीसरे के बाद चौथा इस तरह तेरह जन्मों का दृश्य दिखाया। उसमें उन्होंने बुरे-बुरे कर्म किये थे। किसी में हत्या, किसी में चोरी, किसी में डाका, किसी में कुछ-किसी में कुछ। उनकी तेरह जन्मों में बड़ी घिनौनी जिन्दगी थी। उन्होंने कहा-”देख तेरह वर्ष का जो तेरा उपवास है, अनुष्ठान है, एक-एक वर्ष का उपवास-अनुष्ठान है, एक-एक जन्म के लिए पूरे हो गये। अब तू जा, चौदहवीं बार फिर अनुष्ठान कर। अबकी बार जो गायत्री का लाभ मिलना चाहिए था, मिल जाएगा।” माधवाचार्य प्रसन्न हो गये, फिर वह वापस चले आये, अपनी छोड़ी हुई साधना को फिर करने लगे। गायत्री उपासना चौदहवाँ वर्ष जो उन्होंने किया, उसका परिणाम मिला, गायत्री का साक्षात्कार हुआ। गायत्री महाशक्ति ने पूछा क्या वरदान चाहते हो? तो माधवाचार्य ने कहा-मैं कोई अजर-अमर ऐसा काम करके दिखा दूँ, जिससे दुनिया मुझे याद करती रहे। उन्होंने फिर ‘माधवनिदान’ नाम का प्रख्यात ग्रन्थ लिखा। इसे गायत्री ने माधवाचार्य के सिर पर अदृश्य रूप में प्रकट हो कर लिखवाया।

आप समझ गए ना, उनकी इच्छा कैसे पूरी हुई? आप यह बात नोट कीजिए, आपको पिछले वाले पापों से निजात पाने के लिए कुछ न कुछ करना ही होगा। क्या करना चाहिए? इस ओर ध्यान दीजिए। भविष्य के निर्माण की ओर ध्यान दें, यह तो बहुत अच्छी बात है, पर भूतकाल की भुला मत दीजिए। आप यह विचार कीजिए कि आपने कितनी गलतियाँ की, उनकी एक बार लिस्ट बना लीजिए। गलतियाँ दो तरह की होती है, एक गलतियाँ वह जो आपने दूसरों को नुकसान पहुँचाते के लिए की है और एक गलतियाँ वह, जो आपने अपने उन्नति में रुकावट डाल करके आलस्य और प्रमाद के रूप में की है। इन दोनों गलतियों को आप नोट कर लीजिए। आप नोट कर लेंगे और फेहरिस्त बना लेंगे, पता चलेगा कि कितना बड़ा जखीरा आप बुराइयों का, अपने सिर पर लाद के रखा है। इसको दूर करने कीक कोशिश कीजिए। क्या कोशिश करें, यही तो एक विकल्प है। एक काम कीजिए कि अपना जी खोल करके अपने मन की गाँठ को हल्का कर लीजिए, जैसे चीज खा जाते हैं, गन्दी चीज खा जाते हैं, तो उल्टी कराई जाती है। आप मुँह के रास्ते उल्टी कर दीजिए आपने जो कुछ भी पाप कर्म किए है, उन सब को एक बार जी खोल के कह दीजिए। किससे कहें? दूसरों के सामने तो मैं आपको सलाह नहीं दे सकता कि आप हर एक के सामने कहते फिरें, क्योंकि दूसरे आदमी इसका गलत फायदा उठाते हैं, नाजायज फायदा उठाते। हमको हजारों घटनाएँ याद हैं स्त्रियों से उनके पतियों ने कसम खिलाकर उगलवा लिया कि उनसे क्या गलती हो गई, फिर जिन्दगीभर के लिए उनकी ऐसी फजीहत की कि वह बेचारी सोचती रही कि सच्चाई अगर हम न बताते, तो नफे में रहते। दुनिया बड़ी निकम्मी है, दुनिया बड़ा पाजी है। आप हर आदमी से अपनी कमजोरियाँ कहते फिरें, ऐसा तो मैँ नहीं कहूँगा, लेकिन आपको मेरी एक सलाह है कि एक बार अपना जी खोलकर हमसे सब कुछ कह दीजिए। अपनी हर घटना को बता दीजिए, विस्तार से बता दीजिए, कही दुराव न हो, कही छिपाव न हो। आप क्या करेंगे? अरे भाई साहब! हमें क्या करना है। हर आदमी गलतियों से भरा पड़ा है। आपकी गलतियों में मुझे जायका लेने की, मजा लेने की, दिल्लगीबाजी करने की और बकवास करने की हमारे पास कहाँ फुरसत है? हमारे यहाँ तो केवल दुखी ही दुखी आते हैं। धोबी की दुकान है। हर आदमी मैला कपड़ा ले करके आता है और हम धोते रहते हैं। हमको न किसी से व्यंग्य करने की फुरसत है, न मजाक करने की फुरसत है, न घृणा करने की फुरसत है। केवल धोबी के तरीके से लोगों के कपड़े धोने की फुरसत है। केवल धोबी की फुरसत है, इसीलिए आपको अपने मन के पापों को एक बार ठीक कर लेना चाहिए। हमें न बता पाये तो माताजी को बता दीजिए हमारे प्रतीकों के समक्ष लिखकर रखकर फाड़ दीजिए।

यही ईसाई धर्म में भी होता है। ईसाई धर्म में जब आदमी मरने की होता है, जीवन की सारी की सारी बातें, बुरे से बुरी घटनाएँ पादरी के सामने कह देते हैं। पादरी प्रार्थना करता है-इन्होंने जी खोलकर कह दिया, पाप हल्का हुआ। भगवान तुम्हारे मन को शान्ति दे। आप भी जो अपने भीतर के संचित किए हुए पाप कर्मों को जी खोलकर कह दें। एक तो काम यह हुआ-दूसरा-आपने जो पाप कर्म किये थे, भविष्य में वह न करें, इसके लिए ऐसा दबाव डालिए, ताकि आपको यह ख्याल रहे कि हमने गलती की थी और अब गलती नहीं करेंगे। इसके लिए आप ऐसे ही हो जाएंगे जो पहले करते रहे है, फिर वैसा ही करने लगेंगे। जब आपको नफरत ही नहीं हुई, जब कोई प्रायश्चित ही नहीं हुआ, तब फिर यह कैसे विश्वास करें कि भविष्य में न करते की दृष्टि से एक काम जरूरी है कि आप आने आपको थोड़ा-सा कष्ट दें। चान्द्रायण व्रत इसी कष्ट का नाम है आपकी भी यहाँ तपश्चर्या का मतलब नहीं है कि आपको जो कष्ट मिले, हमने जिस पाप के प्रायश्चित के निमित्त किया था, वह पाप आइन्दा नहीं करेंगे। आइन्दा नहीं करने के लिए कष्ट उठाना पड़ता है? आइन्दा याद बनी रहे, इसलिए तपश्चर्या की जाती है पिछला जो हो गया है, गलती हो गई है, वह स्वतः दूर हो जाएगी, यह वहम निकाल दीजिए। इसका तो एक ही उपाय है कि आपने जो गड्ढा खोदा है, उसको पूरा करना चाहिए। गड्ढे को अगर पूरा नहीं करेंगे, तो गड्ढा बना रहेगा, आप खाई में गिरेंगे, आप खाई में गिरेंगे, आपकी टाँग टूट जाएगी और दूसरों की टाँग टूटेगी। इसका दूसरा कोई उपाय है ही नहीं सिवाय इसके कि आपने जो खाई खोदी है, उसको पूरा कीजिए, जो गढ्ढा बना दिया है, उसमें मिट्टी डालिए, उसे समतल बना दीजिए यही तो प्रायश्चित है और क्या प्रायश्चित हो सकता है? इस प्रायश्चित को हमारे यहाँ इच्छापूर्ति कहते हैं, क्षतिपूर्ति भी कहते हैं। आपने जो नुकसान किया है चुकाइए। बैंक से रुपया लेकर भाग गए है? हाँ, साहब पन्द्रह हजार ले करके भाग गये थे और हमारा वारंट है। आप ऐसा कीजिए बैंक वालों से मिलिए और खबर भेजिए। पन्द्रह हजार में से एक हजार रुपया हमने खर्च कर डाला। और चौदह हजार बचा है। चौदह हजार रुपया उसके रिफंड कर दीजिए, बाकी एक हजार रुपये की किश्तें कर लीजिए फिर आप पर जो मुकदमा चलने वाला है, दस साल की, आठ साल की जेल होने वाली है, शायद उससे आप बच जाएँगे। इसलिए क्या करना चाहिए कि आप उस खामियाजे का, इच्छापूर्ति का मतलब क्षतिपूर्ति होता है, जो प्रायश्चित का बहुत महत्त्वपूर्ण अंग होता है इसलिए कर्ज आपको चुकाना ही चाहिए। किसको चुकायें? जिसका नुकसान किया था, उसी को तो आप चुकायेंगे। नहीं ऐसी बात नहीं। सारा समाज को यह मानकर चलिए कि किसी भी हिस्से पर नुकसान पहुँचाता है, तो कोई बात नहीं, दूसरे तरीके से पूरा कर देंगे।

मान लीजिए आप किसी के कान पकड़ने की गुस्ताखी करें तब? तब उसके पैर छू करके प्रणाम कर लीजिए। अरे साहब! हमसे गलती हो गई, माफ कर दीजिए, पैर छू रहे है आपके। कान पकड़ा था तो कान छूना जरूरी नहीं है, आप पैर को छू सकते हैं। सारा समाज एक है। इसके किसी हिस्से को आपने नुकसान पहुँचाता है, तो आप उस नुकसान की पूरा करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के साथ में भलाई का सलूक कर सकते हैं। जो आदमी मर गया, जिसका आपने बेईमानी के साथ पैसा हजम कर लिया था, अब कैसे उसका पैसा चुकायेंगे, लेकिन कैसे चुकायेंगे?वह तो मर गया। किसी लड़की का चाल-चलन को ठीक कैसे करेंगे, नहीं साहब, हम तो क्षमा माँगेंगे। क्षमा माँगेंगे, लेकिन वह लड़की अब किसी घरवाली हो गई है और जिसके बेटे भी बड़े है, सास-ससुर भी है, वहाँ उनसे कहते फिरें, साहब हमने इस लड़की का चाल-चलन खराब किया था और अब हम माफी माँगते हैं। इस तरह आप भी पिटेंगे और वह लड़की भी मरेगी। जरूरी नहीं कि जिस आदमी का आपने नुकसान किया है, उसी को लाभ दें। सारा समाज एक है, इसलिए यहाँ एक बात सही है कि सारे के सारे संसार के तालाब में एक बड़ा ढेला फेंका तो लहरें पैदा हो जाती है। बुराई पैदा करने का मतलब एक व्यक्ति को ही नुकसान पहुँचाना नहीं है, बल्कि सारे समाज को नुकसान पहुँचाना है। बुरी आदतें आपने एक को सिखा दी, शराब पीना आपने एक को सिखा दिया, वह फिर दूसरे को सिखायेगा। दूसरा तीसरे को सिखायेगा, तीसरा चौथे को सिखायेगा यह तो एक लहर है। बुराइयों की भी एक लहर है। आपने बुराइयों की भी एक लहरें पैदा की थी, अब उसका प्रायश्चित एक ही हो सकता है कि आप अच्छाइयों की लहरें पैदा करके वातावरण ऐसा बनायें, जिससे कि उसका खामियाजा पूरा हो सके। खाई पाटी जा सके, उस छेद को बन्द किया जा सके।

आप इस प्रायश्चित की तैयारी कीजिए। आपने क्या-क्या नुकसान पहुँचाया, उसका मूल्याँकन कीजिए आपने कितने लोगों का समय खराब किया, दिल दुखाया, कितने आदमियों की आर्थिक हानि पहुँचाई, कितने आदमियों के चाल-चलन खराब किये। इन सारी बातों को एक कागज पर नोट कर लीजिए और आप उसी के समान लाभ, ब्याज दे सकते हो तो क्या कहना! आपने जो कर्जा लिया है, उसे ब्याज समेत चुकाइये। नुकसान पहुँचाना है, उसे ब्याज समेत चुकाइए और अगर ब्याज समेत नहीं चुका सकते, तो कम से कम उतना तो फायदा कीजिए, उतनी तो सेवाएँ कीजिए, उतना तो पुण्य कीजिए, जितना कि आपने पाप कमाया है। पाप और पुण्य को बराबर कर देना है। यदि ज्यादा हो सके तो, फिर ज्यादा कर दीजिए। फिर वह ब्याज चुकाने वाली ईमानदारी में शामिल हो जाएगा। ऐसा करने से आपके पुण्य का पलड़ा भारी हो जाएगा और अगले जन्म में काम आयेगा। फिलहाल इतना न कर सकें तो आपको किसी न किसी रूप से यहाँ इस शिविर में आ करके यह विचार करना चाहिए कि हमने पिछले दिनों जो गलतियाँ की है और आज तक जो करते रहे है, इसका इस समय तो हम प्रायश्चित करते हैं, इसका इस समय तो हम प्रायश्चित करते हैं, दण्ड भुगतने है, थोड़ा-सा अपने-आपको कठिनाई में डालती है,

बात स्वतंत्रता आन्दोलन के दिनों की है, काँग्रेस से देशवासियों से गाँधी दिवस मनाने और तिलक स्वराज्य फण्ड के लिए चन्दा जमा करने की अपील की। लाहौर में पुलिस का कड़ा प्रबन्ध था। अतः कोई व्यक्ति जब तक हिम्मत न कर सका तब वहाँ महिलाओं ने सभा की, भाषण दिये, यह देखकर सारा लाहौर गाँधी दिवस मनाने उमड़ पड़ा।

कसम खाते हैं भविष्य में एक ऐसा न करने की। यह तो करना ही करना चाहिए, देंगे, तब आपके पाप दूर हो जाएँगे और आपको उपासना के मार्ग में, आत्मिक के मार्ग में पग-पग पर जो रुकावटें आती है, उनके आने का सिलसिला बन्द हो जाएगा। रुकावटें आप पार कर लेंगे, तो उन्नति आपकी कोई कठिन नहीं है, भगवान बनना आपके लिए कठिन नहीं है। शर्त एक ही है कि आपने आने पिछले पाप और गुनाहों की जो खाई इकट्ठी कर ली है, पर्वत इकट्ठे कर लिए है, उसको घाटें पाटें। लेविल एक ही करें और फिर आप रास्ता चलते चले जाएँ। यह करना बहुत आवश्यक है। इस शिविर में आप यह बात विशेष रूप से ध्यान में रखें। बस हारी बात समाप्त। ॐ शान्ति


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