असफलता सफलता की दिशा में पहला कदम

January 1997

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परीक्षा में असफल होने के कारण सीनियर सेकेण्डरी के छान ने आत्म हत्या की। रोजगार न मिलने के कारण अनेक नवयुवक मानसिक विक्षिप्तता के शिकार। विवाह न हो पाने के कारण चार लड़कियों ने अपनी जीवन-लीला समाप्त की। व्यापार में घाटे की वजह से करोड़पति व्यापारी सदमे से पागल हुआ। ऐसे न जाने कितने और भी होंगे जो अपने कार्य-क्षेत्र अथवा उद्देश्य की पूर्ति में असफल हो जाने पर घुटन-कुण्ठा और विक्षिप्तता के शिकार हो जाते हैं। यदा-कदा तो ये अपनी इन्हीं मनोवृत्तियों के चक्रव्यूह में फँसकर जीवन को भी गँवा बैठते हैं इस तरह के अनगिनत उदाहरणों का ब्यौरा हम रोजमर्रा के समाचार पत्रों में पढ़ते हैं और एक आह या सिसकी के साथ अपना सिर थाम लेते हैं। इसी के साथ मस्तिष्क में कुछ सवाल गूँजते हैं, क्या यही है जीवन? क्या इसका पर्याय सफलता के अलावा ओर कुछ नहीं?

जीवन में सफलता के महत्व से हम सभी परिचित हैं। लेकिन इसी को जीवन का पर्याय मान लेना और असफल होने पर समूचे जीवन को ही नकार देना न केवल स्वयं के प्रति, बल्कि समूची मनुष्यता के प्रति अन्याय है। जीवन का उद्देश्य इसकी शारीरिक मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक शक्तियों, का उत्तरोत्तर एवं निरन्तर विकास हैं यह क्रमिक एवं शाश्वत है। सफलता और असफलता तो क्षणिक हैं कोई भी व्यक्ति न तो स्थायी असफल होता है और न स्थायी सफल। जिस परीक्षा को पास कर हम खुशी में फूले नहीं समाते, अगले क्षण से हमारी अपनी नजर से समाते, अगले क्षण से हमारी अपनी नजर में ही उसका महत्व घटने लगता है और हम किसी नयी परीक्षा की तैयारी में लग जाते हैं। इसके अलावा हमें आज मिली सफलता किसी विशेष कार्य-क्षेत्र की हैं, न कि समूचे जीवन की। किसी एक क्षेत्र में असफल हुआ व्यक्ति दूसरे किसी अन्य क्षेत्र में गौरवपूर्ण उपलब्धियां अर्जित कर सकता है।

इन सब बातों के अलावा परिवर्तन के नियम से संचालित विश्व में दिन-रात सर्दी-गर्मी, धूप-छाँव की तरह सफलता-असफलता का क्रम भी सहज प्राकृतिक है। यहाँ स्थायी असफलता ना की काई चीज नहीं है। जो असफलता आज हमें दिखाई पड़ती है वह वस्तुतः अभीष्ट सफलता का एक सोपान मात्र होता है लेकिन एक ही बार में सब कुछ पा लेने की ललक बिना तनिक-सा भी असफल हुए पूर्ण सफलता की कल्पना करती है। इसी वजह से असफलता की सहज रूप से स्वीकार कर पाना असम्भव हो जाता है और कई तो प्रगति की दिशा में अपना प्रयास तक छोड़ बैठते हैं।? निराशा, कुण्ठा, घुटन, हताशा, विक्षिप्तता ऐसे ही व्यक्तियों की दुःखद नियति बन जाती है।

पाश्चात्य मनीषी डॉ0 वाल हाँक ने मानव मन की स्थितियों का अपनी पुस्तक “हाऊ टू डू व्हाट यू वान्ट टू डू” में गहन विश्लेषण किया हैं उनका मानना है जो बिना असफल हुए पूर्ण सफल होने का आग्रह करते हैं वे कभी भी अपनी क्षमताओं को पूरी तरह अभिव्यक्त नहीं कर पाते। क्योंकि वे धरती पर किसी यथार्थ वस्तु की अपेक्षा चन्द्रमा पर किसी कल्पित लक्ष्य पर तीर मारते हैं। इस मानवीय काया द्वारा हवा में करतब दिखाने वाले काल्पनिक सुपरमैन की भूमिका कल्पना में ही सम्भव है। यथार्थ में उसका कोई सरोकार नहीं हो सकता। ऐसे व्यक्तियों को उनका प्रमुख सुझाव यह है कि बहुत अच्छा करने की अपेक्षा यह अधिक महत्वपूर्ण है कि कुछ किया जाय। यह न भूला जाय कि प्रत्येक कार्य की एक छोटी-सी शुरुआत होती है। हजारों मील की यात्रा एक छोटे से पग से प्रारम्भ होती है व पर्वत शिखर तक पहुँचने का मार्ग उसके सबसे निचले भाग से होकर जाता है। यात्रा के पहले कदम पर काँटा चुभ जाने से अथवा पर्वत शिखर पर चढ़ने की शुरुआत में ही हलकी-सी ठोकर लग जाने से ही निराश हो जाना, यात्रा से मुँह मोड़ लेना, कर्तव्य से पलायन कर जाना न केवल अशोभनीय है बल्कि हास्यास्पद भी।

मनोवैज्ञानिक जियोफेरी बैटसन ने जीवन की समस्याओं पर पर्याप्त विवेचन करते हुए एक पुस्तक लिखी है आर्ट ऑफ लिविंग इस पुस्तक में उनका मानना है कि मनुष्य की अहं वृत्ति जीवन में कितनी सहायक है? यह तो नहीं कहा जा सकता। हाँ, इसकी बाधाएँ जीवन में पल-पल पर अनुभव करने को मिलती है। बैटसन के अनुसार, अहँ की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर कतिपय लोग काफी प्रबल पुरुषार्थ करते एवं सफलता अर्जित करते देखे जाते है! लेकिन ऐसे लोग प्रायः हवाई घोड़े पर यात्रा करने वाले होते हैं उनका यह हवाई घोड़ा जब कभी आसमान से गिरता है, उनकी समूची जिन्दगी चकनाचूर होकर बिखर जाती है। उनकी यही अहं की प्रतिष्ठा उन्हें असफल होने पर आत्महत्या का मार्ग सुझाती है। इसी के कारण उनका जीवन घुटन और अवसाद से घिर जाता है। अपने अनेक प्रयोगों, भिन्न-भिन्न मनोवृत्तियों वाले लोगों का विश्लेषण करने के बाद जियोफेरी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जीवन जीने का सर्वोत्तम तरीका है अपने अहं का किसी उच्चतर उद्देश्य के लिए समर्पण यदि ऐसा हो सका तो हर असफलता सफलता का नया मार्ग सुझाती है। क्योंकि जब जीवन का पर्याय सफलता नहीं उच्चतर उद्देश्य होता है उसे पूरा किए बिना जीवन को समाप्त करना अथवा घुटन और अवसाद से घिरकर जीवन से पलायन करना उचित नहीं प्रतीत होता। सतत् प्रयास ही व्यक्ति को अभीष्ट सिद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। स्वेटमार्डन ने लिखा है कि लोग भूल जाते हैं कि जीवन की उन्नति किसी एक प्रयत्न की सफलता पर आधारित नहीं होती, वह तो निरन्तर श्रम एवं प्रयत्न पर र्नीर करती है। जीवन की उन्नति के अवसर लगातार परिश्रम, निरन्तर अध्यवसाय तथा अचल निष्ठा से आते हैं। एक साथ सब कुछ पा लेने की ललक जिनमें होती है वे एक बार में शत-प्रतिशत सफल होना चाहते हैं मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह अपने आप में एक भ्रामक धारणा हैं एक पत्थर के बड़े टुकड़े को तोड़ने के लिए हथौड़े से कई प्रहार किए जाते हैं। लेकिन इसके छोटे-छोटे टुकड़े उसके अंतिम एक प्रहार में होते हैं। तो क्या इसका अभिप्राय यह हुआ कि अन्तिम चोट से पहले के सभी प्रयासों को विफल माना जाय। पर ऐसा तथ्यतः गलत है। एक ही बार में सब कुछ हासिल कर लेने की मनोवृत्ति वाले लोग अन्तिम चोट के पहले के प्रयासों को कितना ही विफल मानें, लेकिन इनकी अपनी महत्ता है। जो अपनी प्रत्येक चोट के साथ अन्तिम सफलता की भूमिका तैयार कर रहे थे।

अतः कोई सफल होता है या असफल, यह पूरी तरह व्यक्ति की मनोवृत्ति एवं उसकी धारणाओं पर निर्भर करता है जो एकाकी सफलता को ही पाना चाहते हैं, वे प्रायः स्वयं को एक असफल व्यक्ति मान बैठते हैं। दुःख हताशा, निराशा, हीनता उनकी नियति बन जाती हैं उनका जीवन किन्हीं अनजाने अँधेरा में खोता चला जाता है।

जीवन में सफलता का मूल मंत्र है, हर असफलता को सफलता के प्रथम पग के रूप में स्वीकार करना। इस स्वीकारोक्ति के साथ सतत् प्रयास में निरत रहा। प्रयास कितना ही अधूरा, छोटा या अपूर्ण क्यों न हो, यदि यह सतत् जारी रहा तो प्रत्येक चरण में हुई भूलों से कुछ सीखते हुए सुधार का क्रम भी चलता रहेगा और अनंतः समय आने पर पूर्णता का लक्ष्य भी प्राप्त हो जाएगा।

“स्काई इज द लिमिट” के लेखक एवं सुविख्यात मनोवैज्ञानिक डॉ0 वायने डायर का कथन है तुम तब तक असफल नहीं हो जबकि तुम अपने ध्येय की प्राप्ति में प्रयासरत हो। ध्येय को पाने से पहले यदि तुम्हें असफलता दिखाई दे तो वह झूठी है, दिखावटी है, बनावटी है उसे अस्वीकार कर दो। हाँ इस अनुभव से कुछ सीख सको तो सीख लो और लक्ष्य के अगले पड़ाव की ओर आगे बढ़ते रहो। बिना ऐसे अनुभवों के कुछ सीखा नहीं जा सकता। संसार में अब तक जो भी सफल व्यक्ति हुए है उन सभी को भरी असफलताओं का सामना करना पड़ा हैं लेकिन वे प्रत्येक असफलता से कुछ सीखते हुए अन्त में अभीष्ट सफलता प्राप्त कर सके। इस संदर्भ में थामस एडीसन का उदाहरण अतीव प्रेरक हैं उनसे एक बार पूछा गया कि बैटरी की खोज में हुए 2500 असफल प्रयासों के बाद उन्हें कैसा लगा? उन्होंने जो उत्तर दिया वह हम सबके लिए महत्वपूर्ण है। “असफलता! मैं तो असफल हुआ ही नहीं।” अब मैं बैटरी न बनाने के 2500 उपायों को जानता हूँ।

विश्वविख्यात गणितज्ञ आइन्स्टीन अपने विद्यार्थी जीवन में सबसे अधिक कमजोर गणित में थे। इसी विषय में उन्हें प्रायः असफलता उनकी सफलता का साधन बनी और वे गणित के क्षेत्र में कुछ अद्भुत एवं अद्वितीय करने में सफल रहे। सुविख्यात योद्धा एवं भारतीय इतिहास के महानायक हेमचन्द्र विक्रमादित्य अपने प्रारम्भिक जीवन में एक छोटे से दुकानदार थे, उन्हें तलवार थामी, तो हर असफलता उनके लिए सफलता की सीढ़ी बन गयी। सुविख्यात कवयित्री एवं विदुषी महादेवी वर्मा अपने वैवाहिक जीवन में असफल रहीं। लेकिन इससे निराश और हताश होने की जगह उन्होंने अपने को साहित्य साधना एवं समाज सेवा में पूरी तरह समर्पित कर दिया और अनेकों की प्रेरणा स्त्रोत बनी। अतः देखा जाय जात तो जीवन में पूर्ण असफलता नाम की कोई चीज नहीं है। जब हम स्वयं को एक असफल व्यक्ति मान बैठते हैं तो हम अपनी उन्नति की समस्त सम्भावनाओं के द्वारा बन्द कर देते हैं।

डॉ0 चोपड़ा अपनी पुस्तक “हाउ टू एचीव टोटल सक्सेस इन लाइफ” में लिखते हैं कि हम सफलता की अपेक्षा असफलता से अधिक सीखे है क्योंकि प्रत्येक असफलता यह स्पष्ट करती चली जाती है हमें क्या नहीं करना चाहिए था और क्या करना बाकी रह गया है। दीर्घकालीन या स्थायी असफलता का सबसे बड़ा कारण यह भ्रामक मान्यता है, जो असफलता को एक खराब चीज मानती है व इससे बचने का सुझाव देती है। इससे बचने के प्रयास में व्यक्ति कुछ भी प्रयास नहीं करते व अन्ततः अपनी असफलता को सुनिश्चित करते जाते हैं।

थ्योरी ऑफ सक्सेस फोर्सेस में वे कहते हैं कि असफलता सफलता की एक अति सशक्त प्रेरक शक्ति है। प्रत्येक असफलता के साथ एक ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है जो, सफलता को अधिक सुनिश्चित करती है। एक शिशु का उदाहरण देते हुए उन्होंने उसे अधिक स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार एक शिशु चलने के अपने प्रथम प्रयास में असफल रहता है। लेकिन प्रत्येक बार गिरने के साथ ही वह कुछ सीखता जाता है और समस्त असफलताओं से वह स्वयं को सन्तुलित करना व बिना गिरे चलना सीख जाता है। अतः सफल होने के लिए हमें असफलता को आवश्यक प्रेरक शक्ति के रूप में ही स्वीकार करना होगा। यदि हम असफलता से भागने की कोशिश में जीवन से पलायन करने की कोशिश करते रहे तो हम सफलता से भी उतना ही दूर चले जाएँगे।

थ्वलियम जम्स अपनी पुस्तक ““ विल टू बिलीव में लिखते हैं कि “असफलता का भय एक ऐसा भूत है जो मनुष्य के भीतर की सारी शक्ति को खींच लेता है व उसकी रचनात्मकता का समाप्त कर देता है। अपनी शक्ति खो देने पर व्यक्ति असमर्थ हो जाता है। यह भय मस्तिष्क पर पर्दा डाल देता है तथा मन को कायर बना देता है। अतः जीवन में प्रगति के लिए अनिवार्य है कि असफलता के भ्रामक भूत को मन से भगा दे। इसे सफलता की दिशा में एक आवश्यक सोपान मानते हुए इससे आवश्यक शिक्षण ले।” ऐसा किया जा सका तो फिर किसी को किसी भी परिस्थिति में निराशा, घुटन व कुण्ठा के अँधेरों में न भटकना पड़ेगा और न ही उसे जिन्दगी से पलायन करने की सूझेगी। उल्टे ऐसी स्थितियों में उसे सफलता की नयी राहें मिलेंगी और जीवन प्रकाश पथ पर सतत् और अविराम बढ़ता रहेगा।


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