तृष्णा (Kahani)

January 1997

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एक कुत्ता मुँह में रोटी दबाये, नहीं के किनारे-किनारे जा रहा था। उसे अपनी परछाई दिखाई दी। मन आया कि इस पानी में चल रहे कुत्ते की रोटी भी क्यों न छीन ली जाय? वह आक्रमण के लिए पानी में कूद पड़ा और परछाई को काटने के लिए जैसे ही मुँह खोला, वैसे ही मुँह की रोटी भी बह गई। इसे कहते हैं तृष्णा, जो पास है उसे भूलकर और पाने की इच्छा रखने वाले का विपत्ति में फँसना।


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