जड़ें गहरी और मजबूत हों

January 1989

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जिनकी जड़ें सड़ गईं, उन खोखले पेड़ों को आँधी का एक झोंका उखाड़ फेंकने के लिए पर्याप्त है। जब वे गिरते हैं, तब औंधे मुँह गिरते है और फिर उठने का अवसर कभी भी प्राप्त नहीं करते। इसके विपरीत जिनकी जड़ें गहरी और मजबूत हैं, वे तूफानों का सहज ही सामना करते रहते हैं। आँधी प्रचंड हो, तो भी उनकी कुछ शाखाएँ ही टूटती हैं, तना फिर भी अप्रभावित ही रहता है। वह भी टूट जाए तो जड़ें फिर नये अंकुर देती हैं और टूटे हुए वृक्ष जैसा ही एक नया वृक्ष चंद दिनों में फिर बनकर खड़ा हो जाता है। टूटा हुआ तना यदि थोड़ा भी जुड़ा रहा तो उसमें भी नई डालियाँ लहलहाने लगती हैं, यह सारे चमत्कार मजबूत जड़ों के हैं। पेड़ की जिंदगी, सुरक्षा और प्रगति एवं शोभा उन्हीं पर निर्भर रहती है।

मनुष्य की जड़ें उसकी मनोवृत्तियाँ हैं। हिम्मत, निष्ठा, लगन, श्रमशीलता, स्फूर्ति जैसी अंतःवृत्तियों को जड़ों की संज्ञा दी जा सकती है। वे मजबूत होंगी तो जीवन-संग्राम में आए दिन आते रहने वाले आँधी-तूफानों का आसानी से सामना किया जा सकेगा। यदि विपरीत परिस्थितियों ने कुछ अवरोध या व्यवधान उपस्थित किए, तो उस आगत विपत्ति को भी सहन कर लिया जाएगा। क्षतिपूर्ति का भी मार्ग निकाल लिया जाएगा। मनस्वी व्यक्तियों को भी अन्यान्य व्यक्तियों की तरह कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, पर वे उन्हें हँसी-खेल समझकर निबटते रहते हैं और मन पर उदासी की छाप नहीं पड़ने देते, जबकि दुर्बल मन वाले व्यक्ति तनिक-सी कठिनाई को देखकर भयभीत हो उठते हैं। आगत विपत्ति से पूर्व मात्र आशंका ही उनके धैर्य को तोड़ देती है।

शरीर से परिपुष्ट दीखने से ही कोई व्यक्ति बलिष्ठ नहीं हो जाता। शक्तिवान वे हैं, जिनमें मनोबल की अभीष्ट मात्रा मौजूद है। दुर्बल काया लेकर कर्मक्षेत्र में उतरे ऐसे महापुरुषों की संख्या अगणित है, जिन्होंने अपने मनोबल के कारण अपने को ऊँचा उठाया और अगणित लोगों के भविष्य का निर्माण किया। गांधी जी जैसे दुर्बलकाय, किंतु मनोबल के धनी व्यक्ति कितने महत्त्वपूर्ण काम कर सकने में समर्थ हुए हैं, ऐसे उदाहरणों से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। आद्य शंकराचार्य जैसे भयानक भगंदर व्रण से रुग्ण व्यक्ति भी अपने छोटे-से जीवन में चकित कर देने वाली सफलताएँ प्राप्त करते रहें हैं। शरीर बल की नहीं, मनोबल की महत्ता को ही यह उदाहरण प्रतिपादित करते हैं। शरीर बल और मनोबल की तुलना करनी हो तो विशालकाय हाथी और मनस्वी सिंह के मल्ल युद्ध का प्रतिफल हमें सहज ही वस्तुस्थिति समझा सकता है।

हमें जीवन की जड़ों को मजबूत बनाना चाहिए और उन्हें सींचने में दत्तचित्त रहना चाहिए। शरीर को मजबूत और निरोग बनाने के लिए जितना ध्यान रखा जाता है, साधन जुटाया जाता हैं, उससे अधिक प्रयत्न यह रहना चाहिए कि हमारी मनःस्थिति की दृढ़ता बढ़ती चली जाए। हिम्मत कम न पड़े, परिश्रम में उदासी न आए, आशा की ज्योति धूमिल न पड़े। कठिनाइयाँ सामने आने पर उनसे लड़ने की बहादुरी इतनी अधिक बनी रहे कि संघर्षों से निबटना एक मनोरंजक खेल भर बनकर रह जाए।

अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति में हमारी आशा और चेष्टा इतनी बलवती होनी चाहिए कि परीक्षा के लिए समय-समय पर आते रहने वाले आँधी-तूफान अपना कुछ बिगाड़ न सकें। जड़े जितनी गहरी होंगी, सफल जीवन की अभिव्यंजना का उतना सुखद रसास्वादन उपलब्ध रहेगा।


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