रंगों में छिपे हैं बड़े-बड़े गुण

January 1989

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ऋग्वेद में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। वस्तुतः इस संसार में जो कुछ भी विकासक्रम चल रहा है— हलचलें दृष्टिगोचर हो रही हैं, उन सबका शक्तिस्रोत सूर्य— सविता देवता ही है। यदि उनका अस्तित्व न होता तो हमारी धरती एक अंधकारमय, निस्तब्ध, शीतल, निर्जीव पिंड के अतिरिक्त और कुछ न होती। जो कुछ भी हरीतिमा का मखमली कवच, जीव-जगत में स्पंदन विद्यमान है, वह सूर्य के ही कारण है।

संसार की अनेकानेक आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त सूर्य मनुष्य को आरोग्य भी प्रदान करता है। शास्त्रवचन है— 'आरोग्यं भास्करादिच्छेत्' अर्थात आरोग्य की सूर्य से याचना करें। सूर्यसंपर्क में रहने से आरोग्य सुरक्षित रखा जा सकता है और रोगों के उपद्रवों को भी सूर्य-किरणों की महाशक्ति के सहारे दूर किया जा सकता है।

सूर्य की किरणों में तीन रंग ही प्रमुख माने गए हैं। ये है पीला, लाल और नीला। विशेषज्ञों की मान्यता है कि पीला रंग वायुप्रधान, लाल रंग पित्त का तथा नीला रंग कफ का प्रतिनिधित्व करते हैं। आयुर्वेद में चिकित्सा उपचार का मूलभूत आधार भी शरीर में वात, पित्त और कफ की स्थिति को माना गया है और कहा गया है कि इन तीनों दोषों के प्रकुपित होने से ही विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं। उसमें तीनों दोषों के अलग-अलग रंग बताए गए हैं, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है। वात का रंग पीला, पित्त का लाल और कफ का नीला वर्ण माना गया है। इसके अतिरिक्त इनके मिश्रित रंग और उनके प्रभाव भी अलग-अलग होते हैं। वात-पित्त के सम्मिश्रण से नारंगी रंग, वात और कफ के मिश्रण से हरा एवं पित्त-कफ के मिलन से बैंगनी रंग उत्पन्न होने की बात कही गई है। त्रिदोषजन्य विकार से सन्निपात की उत्पत्ति मानी जाती है। उसमें प्रायः सभी रंग-प्रकंपनों की कमी हो जाती है, जिससे शरीर सफेद दिखाई देने लगता है। इस प्रकार इन तीनों दोषों और उनके मिश्रित स्वरूप को जानकर विशेषज्ञ संबंधित रंगीन रश्मियों के माध्यम से उसका उपचार कर सकते हैं। वेदों में कहा भी गया है— सूर्य-किरणों के दैनिक प्रयोग से मनुष्य वात, पित्त और कफ नामक त्रिदोषों से उत्पन्न होने वाले समस्त रोगों से छुटकारा पाकर सौ वर्षों तक जीता रह सकता है। निश्चय ही विभिन्न रंग मानव जीवन की गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। सूर्य की प्रकाश-किरणों के केवल सात रंगों का ही हमें ज्ञान है, किंतु उनके हल्के-भारी सम्मिश्रणों से प्रायः 10 लाख रंग बन सकते हैं। इनमें से विभिन्न जीव-जंतु अपनी−अपनी नेत्र-क्षमता के अनुरूप ही रंग देख सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे आगे के रंग-प्रकंपन हमारी आँखों की ग्राह्य क्षमता से बाहर हैं।

रंग-चिकित्सा-विशेषज्ञों के अनुसार रंगों से विशेष प्रकार का वातावरण बनता है। वस्त्रों में, कमरे की दीवारों में, फर्नीचर में किस प्रकार के रंग लगे होते है, वे अपना प्रभाव उनका उपयोग करने वालों पर भी छोड़ते हैं। लाल रंग गरमी, उत्तेजना और चिड़-चिड़ापन उत्पन्न करता है। इससे स्नायुविकार उत्पन्न हो सकते हैं। इसके विपरीत नीला रंग शीतल और शांतिदायक होता है। गरमी वाले मौसम या स्थान में नीले रंग का उपयोग करने से आंखों के माध्यम से शरीर को भी राहत मिलती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हरे चश्मों का प्रयोग है। लाल काँच वाला चश्मा लगाकर निकला जाए तो चारों ओर आग बरसती दिखाई पड़ेगी और मस्तिष्क गरम होने लगेगा। इसके विपरीत हरा या नीला चश्मा लगाकर निकलने पर कड़ी धूप भी हलकी प्रतीत होती है और बदली-सी छाई लगती है।

कायिक संरचना में भाग लेने वाले तत्त्वों एवं शरीर की क्रियापद्धति पर रंगों का प्रभाव होता है। रंग-चिकित्सा विज्ञान का आधार भी यही है। सरदी-गरमी की मात्रा घटाने-बढ़ाने में भी रंग सहायक होते हैं। इसके अतिरिक्त उनका मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी कम नहीं है। हर रंग में कुछ विशेष भावनाएँ— उत्तेजित एवं शांत करने का गुण है। जो लोग जिस प्रवृत्ति की विशेषता अपने भीतर बनाए होते हैं, वे तदनुरूप रंग पसंद करते और चुनते हैं। इसी प्रकार जिन्हें जिस भावना से प्रेरित-प्रभावित करना होता है, उनके लिए उस रंग के आवरण-आच्छादन जुटाने का प्रबंध आवश्यक होता है। फूलों के बगीचे में परिभ्रमण करने, उन्हें घर-आँगन में लगाने, मेज पर गुलदस्ता सजाने से— रंगों से मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने की आवश्यकता पूर्ण होती है।

रंग-विशेषज्ञों का कहना है कि नीले रंग के साथ स्नेह-सौजन्य, शांति, पवित्रता जैसी प्रवृत्तियाँ जुड़ती हैं। लाल रंग उग्रता, उत्तेजना, संघर्ष का प्रतीक है। सफेद में सादगी, सात्त्विकता, सरलता की क्षमता है। चाकलेटी रंग में एकता, ईमानदारी, सज्जनता के गुण हैं तो पीले रंग में संयम, आदर्श, पुण्य, परोपकार का बाहुल्य है। हरे रंग में ताजगी, उत्साह, स्फूर्ति एवं शीतलता का प्रभाव है। काला रंग तमोगुणी है, उसमें निराशा, शोक, दुःख एवं बोझिल मनोवृत्ति का परिचय मिलता है। नारंगी जीवन में आत्मविश्वास तथा साहस की जानकारी देता हैं। गुलाबी रंग में आशाएँ, उमंगें और सृजन की मनोभूमि बनाने की विशेषता है।

सुप्रसिद्ध रंग-विशेषज्ञ एंथोनी एल्डर के अनुसार बहिर्मुखी जीवन लालिमाप्रधान होता है। अंतर्मुखी जीवन में नीलाकाश जैसी उदात्त मनःस्थिति होती है। पीले रंग को कर्मठता तत्परता और उत्तरदायित्व निर्वाह की भावचेतना का प्रतीक माना जा सकता है। हरे रंग को स्थिरता और बुद्धिमत्ता का प्रतिनिधि समझा गया है। एल्डर कहते हैं कि स्वभावगत विशेषताओं को घटाने-बढ़ाने के लिए उन रंगों का उपयोग या बहिष्कार करना चाहिए, जिनमें अभीष्ट विशेषताओं का समावेश है। प्रख्यात मनोरोग-चिकित्सक डाॅ. गोल्ड स्फेन ने विभिन्न रोगों से या कठिनाइयों से ग्रसित लोगों पर रंगों का प्रयोग किया है और उनके समाधान प्रस्तुत करने में सफल हुए हैं। उन्होंने विभिन्न रंग प्रयोगों का विवरण प्रकाशित करते हुए बताया है कि मात्र आकर्षण के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले रंगों का अतिरिक्त प्रभाव क्या होता है, या क्या हो सकता है? उनने अपने अनुभव से पाई अनेक घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया है, जिनमें से कुछ इस प्रकार है—

एक अन्य घटना में पैन अमेरिकन एयरवेज में सामने एक संकट आया, जिसमें यात्रियों को आकाशीय बीमारी मितली की शिकायत बढ़ गई। कारणों की खोज की गई तो इसका प्रमुख कारण रंग को पाया गया। वायुयान के अंदर चाकलेटी रंग से पुताई की गई थी, अतः उसे बदला गया और उसके स्थान पर हरा रंग कराया गया। फलतः उभरी हुई शिकायतें भी दूर हो गईं।

इसी प्रकार एक कारखाने के श्रमिकों को अधिक प्यास लगने और अधिक बार पेशाब जाने की शिकायत बढ़ गई। फलतः बीच-बीच में काम छूटता और उत्पादन कम होता। इस नई व्यथा का कारण विशेषज्ञों को बुलाकर तलाश कराया गया, तो प्रतीत हुआ कि कमरे काले रंग के पुते हुए थे। वह रंग हटाकर हरा रंग पुताया गया तो उस व्यथा से सहज छुटकारा मिल गया। एक दूसरे कारखाने में मजदूर जिन लोहे के बक्सों को ढोते थे। उनके अधिक वजनी होने की शिकायत करते थे। जब उनका रंग बदलकर हरा करा दिया गया तो सभी की शिकायतें दूर हो गईं और अपेक्षाकृत बक्से हलके लगने लगे।

लंदन की थेम्स नदी के पुल पर से कूदकर आत्महत्या करने वालों की संख्या जिन दिनों असाधारण रूप से बढ़ गई थी, उन दिनों इसका कारण तलाशने वालों में से कुछ विशेषज्ञों ने यह सलाह दी थी कि पुल पर लगाए गए काले रंग को हटाकर उसे बदल दिया जाए। वैसा करने पर देखा गया कि आत्महत्याओं की संख्या आश्चर्यजनक रूप से घट गई।

रंग चिकित्सा वैज्ञानिकों ने विभिन्न अनुसंधानों के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि रंगों का मानव स्वास्थ्य एवं स्वभाव पर असाधारण रूप से प्रभाव पड़ता है। इस संबंध में अनेक अस्पतालों में कमरों के परदों के रंगों में हेर-फेर करके उनका प्रभाव देखा गया तो परिणाम सामने आया कि लाल रंग गरमी-उत्तेजना बढ़ाता है तथा नीला और हरा रंग ठंडक पहुँचाता है।

रंगों के माध्यम से रोगियों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने, उनकी मनोदशा बदलने में आड्रियन हिल नामक प्रसिद्ध चित्रकार ने असाधारण सफलता पाई है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'आर्ट वर्सेज डिसीज' (कला बनाम रोग) में रंगीन चित्रकला को स्वास्थ्य-संवर्द्धन और रोग-निवारण के लिए महत्त्वपूर्ण माध्यम बताया है। पुस्तक में उनने अपनी अस्पताल में व्यतीत की गई लंबी अवधि का वर्णन किया है, जिसमें लिखा है कि,  "इन दिनों मुझे पीड़ा, असमर्थता, निराशा और ऊब के अतिरिक्त कोई साथी दीखता न था। डाॅक्टर और नर्स के अपना-अपना काम करके चले जाने पर निरंतर साथ रहने को कोई तैयार न था। निदान के लिए  मैने समीपवर्त्ती मेज पर रखे हुए रंग-बिरंगे तथा विभिन्न आकार-प्रकार के फूलों को रुचिपूर्वक देखना आरंभ किया। कितने कोमल और कितने उमंग भरे थे वे सब। बच्चों जैसी मुस्कान बखेरते देख उन सबको तो मेरा मन बहुत हलका हो गया और उन्हीं की बिरादरी में सम्मिलित हो गया। इस नए सहचरत्व में नया जीवन मिला और मन की मुरझाई दूब हरी-भरी हो गई। मेरे स्वास्थ्य सुधार में इस नई रंग-बिरंगी बिरादरी ने डाॅक्टरों और औषधियों से किसी प्रकार कम सहायता नहीं की।"

अस्पताल से छुट्टी पाने के बाद उसने अपने पुराने प्रकृति पर्यवेक्षण वाले रुझान को कला में सम्मिलित करने और आजीविका का आधार बनाने का निश्चय किया, फलतः सतत अभ्यास से न केवल प्रकृति चितेरा बना, वरन अन्य स्तर की कलाकृतियाँ बनाने में भी समर्थ हुआ।

उसने अपनी चित्र चिकित्सा— 'आर्ट थैरेपी' चलाई। जिसका आधार रंगों को दृश्य रूप में प्रस्तुत करके रोगियों की मनोदशा में परिवर्तन करना था।

यह समझने-समझाने में देर नहीं लगी कि मानसिक परिवर्तन का किस प्रकार स्वास्थ्य सुधार के साथ संबंध है। रोगी भरती हुए और अच्छे होते गए। उसने अन्य अस्पतालों को भी अपनी सेवाएँ दीं और विशेषतया विकृत मनःस्थिति वाले रोगियों को रंग-उपचार से प्रभावित करने का सिलसिला शुरू किया। इस प्रयास में आशाजनक सफलता मिली। सन् 1942 में आड्रियन हिल की आर्ट थैरेपी की ख्याती अपने चरम सीमा पर पहुँच गई। उसके चिकित्सा उपचार-प्रक्रिया की माँग बढ़ती गई, जिसकी पूर्ति वह रेडियो पर अपने भाषण प्रसारित कर करने लगे। लोग इसे बड़े चावपूर्वक सुनते, नोट करते और लाभ उठाते।

ठीक ऐसा ही प्रसंग एक यहूदी चित्रकार का भी है। उसका नाम था— हिमन सिनाल। वह सर्वप्रथम बाल मनोरंजन के लिए रंग-बिरंगे चित्र बनाता था और उनमें पेड़-पौधों-फूलों और पशु-पक्षियों की आकृतियाँ बनाकर रंगों से सुसज्जित करता था। जब उसकी आकृतियाँ बालकों में लोकप्रिय हुई, तो उसने बड़ों के लिए भी इस कला का लाभ देने का निश्चय किया। उसने सैकड़ों रंग-बिरंगे चित्र बनाए। वे कलाप्रधान नहीं थे, वरन विभिन्न मनुष्यों की मानसिक स्थिति का समाधान-संवर्द्धन करने के लिए उन्हें बनाया गया। रंग समायोजन की उसकी प्रमुख विशेषता थी। उसका यह अभिनव प्रयोग लोगों की मनोदशा सुधारने में बहुत सफल रहा।

निश्चित ही सूर्य का संपर्क मानवमात्र के स्वास्थ्य के लिए हितकारी है, क्योंकि सभी वर्ण अपने प्राकृतिक रूप में उसमें विद्यमान होते हैं। शरीर की आवश्यकतानुसार रंगीन काँचों के माध्यम से रुग्ण अंग पर उसी रंग की सूर्य-किरणें भी बरसाई जा सकती है।

सूर्य का— सविता का ध्यान आध्यात्मिक प्रगति का द्वार तो खोलता ही है, साथ ही जीवनी शक्ति भी बढ़ाता है व प्रकृति विशेष के अनुसार प्रयुक्त होने पर रुग्णता को मिटाकर अंदर निहित प्रसुप्त केंद्रों की जागृति में भी सहायक सिद्ध होता है। सर्वसुलभ इस चिकित्सा का लाभ उठाकर निश्चित ही शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक तीनों ही क्षेत्रों में प्रगति संभव हैं।


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