एक साधक ने अपना जीवन आदर्श के ढाँचे में ढाला। पवित्रता और प्रखरता बढ़ने से वह नर नारायण समझा जाने लगा। उसकी आकृति मात्र नर की थी, पर अंतराल में विद्यमान प्रकृति नारायण जैसी थी।
कोई भी व्यक्ति नर से नारायण बन सकता है।